यक़ीनन मोटापा पूरी दुनिया के लिए भारी संकट बन चुका है। दुनियाभर में सरकारों से अपील की जा रही है वे मोटापे की समस्या को दूर करने के लिए संगठित कदम उठाएं। ऐसा इस लिए हो रहा है क्योंकि पिछले तीन दशकों में विकास की राह पर चल रहे देशों में मोटापा एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है। वहीं मोटापे और कुपोषण के दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ने के पीछे जंक फूड को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा है। कुछ वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने यह चेतावनी जारी की थी। लेकिन मोटापे से जुड़े कुछ अन्य पहलू भी हैं, जैसे इसके साथ लोगों की भिन्न प्रकार की मानसिकता, इस समस्या से निजात पाने के लिए उठाए जा रहे कदमों की ज़मीनी हक़ीकत तथा इस समस्या पर मनोवैज्ञानिकों की राय तथा एकस्पर्ट्स के मत। तो चलिए आज विश्व स्तर पर समस्या बन चुके मोटापे से जुड़े इन सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
मोटापा से जुड़े मनोवैज्ञानिक पहलू
मोटापा जितनी शारीरिक समस्या है ठीक उतनी ही मानसिक समस्या भी है। क्योंकि मोटापे से जुड़े मनोवैज्ञानिक पहलु भी महत्वपूर्ण होते हैं इसलिए इससे ग्रस्त व्यक्ति को बाकी इलाजों के अलावा मनोवैज्ञानिक इलाज की भी बेहद ज़रूरत होती है। वहीं जहां एक ओर मोटापे के कारण शरीरिक समस्याएं होती हैं, यह मानसिक रूप से भी किसी व्यक्ति को आहत करता है। मोनाश यूनिवर्सिटी द्वारा ताइवान में 6 से 13 वर्ष के लगभग 2000 स्कूली बच्चों को लेकर एक सहयोगपूर्ण अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में इस बात की जांच की गई कि रिश्तों से जुड़ी समस्याएं, उदासी या पढ़ाई करने में सक्षम न होने की भावना इस तरह की मानसिक समस्याओं का मोटापे से संबंध है या नहीं।
स्केल फॉर असेसिंग इमोशनल डिस्टर्बंस (एसएईडी- भावनात्मक अशांति का मूल्यांकन करने का परिमाण) प्रणाली का उपयोग करते हुए मोनाश यूनिवर्सिटी के नेशनल हेल्थ रिसर्च इंस्टिट्यूट, ताइवान, चाइना मेडिकल यूनिवर्सिटी, ताइवान और नेशनल डिफेंस मेडिकल सेंटर, ताइवान के शोधकर्ताओं ने, भावनात्मक अशांति से मोटापा एवं लिंगभेद के संबंध की जांच की। एसएईडी यह एक परिमाण है, जो उन बच्चों को पहचानने के लिए बनाया गया है, जिन्हें स्कूल में भावनात्मक या उनके साथ हो रहे परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
इसके बाद देखा गया कि बचपन में होने वाले मोटापे की वजह से शारीरिक स्वास्थ्य पर होने वाले नकारात्मक परिणाम सर्वज्ञात हैं, क्योंकि यह परिणाम बच्चों की मनोवैज्ञानिक तथा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जुड़ते जाते हैं। स्कूल प्रिंसिपल वाह्लक्विस्ट ने इस संदर्भ में कहा था कि, बचपन में होने वाले मोटापे से बच्चों की मनोवैज्ञानिक समस्याएं जुड़ी होती हैं, लेकिन इस मोटापे से उनकि पढ़ाई से संबंधित भावनात्मक समस्याओं के रिश्ते के बारे में (विशेष रूप से लिंगभेद के अनुसार बदलनेवाली समस्याओं के बारे में) बहुत कम जानकारी मौजूद है।
खासतौर पर भारत में बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है, और समाज और माता-पिता का ध्यान इससे जुड़ी मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर नहीं होता है। हालांकि इस तरह की सामाजिक स्थितियों में भावनात्मक अशांति और मोटापा यह दो चीजें किस तरह से जुड़ी होती हैं, इस विषय पर सीमित जानकारी उपलब्ध हैं। ठीक ऐसा ही बड़े लोगों के साथ भी होता है।
क्या कहते हैं आंकड़े
तेज़ी से विकास की राह पर आगे बढ़ रहे देशों में पिछले कुछ दशकों में प्रति व्यक्ति आय दर से भी ज़्यादा तेज़ी से मोटापे के शिकार लोगों की गिनती बढ़ रही है। एक अनुमान के हिसाब से चीन में 10 करोड़ लोग मोटापे के शिकार हैं। वहीं ब्राज़ील में बड़ों के मुकाबले बच्चे ज़्यादा तेज़ी से मोटापे का शिकार हो रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक ब्राज़ील में 5 से 9 साल तक की आयु के 16 प्रतिशत लड़के और 12 प्रतिशत लड़कियां मोटापे का शिकार हैं। अमरीका की तरह ही मौक्सिको में हर सात में से एक व्यक्ति मोटापे का शिकार है। भारत का भी कुछ ऐसा ही हाल है।
देखिये इस समस्या से निजात पाने का कोई सीधा सा जवाब नहीं है, लेकिन हां विश्वस्तर पर तेजी से बढ़ती जा रही इस समस्या के लिए की मायनों में सामाजिक सुधार की ज़रूरत है। जिसमें मोटापे की इस समस्या के खिलाफ़ न सिर्फ स्वस्थ्य से संबंधित कदम उठाने होंगे, बल्कि इसके प्रति जुड़ी शर्म की हीन भावना को मिटाते हुए मनोवैज्ञानिक तौर पर भी इसका इलाज करना होगा।
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