गर्भावस्था के दौरान हाइरपटेंशन यानी उच्च रक्तचाप का सीधा असर भ्रूण पर पड़ता है। यदि महिला प्रेग्नेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की चपेट में आती है तो इससे भ्रूण का विकास बाधित हो सकता है। यदि किसी महिला में ब्लड प्रेशर 140/90 या उससे अधिक है तो उसे हाइपरटेंशन है। गर्भवती महिला के ब्लड का प्रेशर 180/110 है तो स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान मुख्यत: दो प्रकार के हाइपरटेंशन होते हैं - क्रोनिक हाइपरटेंशन और गेस्टेशनल हाइपरटेंशन। इन दोनों का असर मां और बच्चे पर अलग-अलग होता है। लेकिन गेस्टेशनल हाइपरटेंशन प्रीएक्लेम्पशिया का नेतृत्व कर सकता है। इस स्थिति में प्रेग्नेंसी की स्थिति और भी जटिल हो सकती है। आइए हम आपको उच्च रक्तचाप का भ्रूण पर होने वाले असर के बारे में जानकारी देते हैं।
क्रोनिक हाइपरटेंशन
महिला में क्रोनिक उच्च रक्तचाप गर्भधारण करने से पहले विकसित होता है। कुछ मामलों में इसकी जानकारी महिला को पहले हो जाती है वह दवाइयों का प्रयोग करके इसका इलाज कर सकती है। लेकिन ज्यादातर मामलों में महिला को क्रोनिक हाइपटेंशन का पता गर्भधारण करने के बाद पहली तिमाही में चलता है। क्रोनिक हाइपरटेंशन भ्रूण के विकास को प्रभावित करता है। इससे विकास कर रहे भ्रूण को उचित पोषण व ऑक्सीजन नही मिल पाता है। क्रोनिक उच्च रक्तचाप गर्भनाल को प्रभावित करता है। कुछ मामलों में तो प्लासेंटा क्षतिग्रस्त हो जाती है। गर्भनाल के जरिए ही भ्रूण को उसके विकास के लिए जरूरी पोषक तत्व और ऑक्सीजन मिलता है। यदि गर्भावस्था के दौरान क्रोनिक हाइपरटेंशन पर नियंत्रण नही किया गया तो प्रीटर्म बर्थ, मृत प्रसव होने की संभावना बढ़ जाती है।
गेस्टेशनल हाइपरटेंशन
गेस्टेशनल हाइपरटेंशर को गर्भावधि उच्च रक्तचाप भी कहते हैं। यह गर्भधारण करने के 20 सप्ताह बाद विकसित होता है। गर्भावस्था के दौरान गेस्टेशनल हाइपरटेंशन भी भ्रूण को पूरी तरह प्रभावित करता है। इस स्थिति में भी भ्रूण का विकास प्रभावित होता है। गर्भावधि हाइपरटेंशन में प्लासेंटा की क्षति होने की संभावना ज्यादा होती है। इससे भी मृत प्रसव और अपरिपक्व जन्म का जोखिम होता है। गेस्टेशनल हाइपरटेंशन से प्रीएक्लेम्पशिया या इक्लेम्पशिया के विकास की संभावना बढ़ जाती है। यह गर्भावस्था की एक किस्म की जटिलता है जिसमें उसे झटके आने शुरू हो जाते हैं।
प्रीएक्लेम्पशिया और इक्लेम्पशिया
ये दोनों स्थितियां मां और भ्रूण दोनों के लिए बहुत घातक साबित हो सकती हैं। हालांकि प्रीएक्लेम्पशिया एक्लेम्पशिया की तुलना में कम गंभीर समस्या है। इस स्थिति में महिला को उच्च रक्तचाप के अलावा उसके यूरीन में प्रोटीन मिल जाता है। यूरीन का टेस्ट करके इसका निदान आसानी से हो जाता है। इस स्थिति में भ्रूण में बहुत अधिक मात्रा में लैक्टिक एसिड बनता है और वह गर्भ में ही बेहोश हो सकता है, इसके कारण बच्चे की हालत और गंभीर हो जाती है। इक्लेम्पशिया में मां और बच्चा दोनों की मौत हो सकती है।
उपचार और बचाव
गर्भावस्था के दौरान क्रोनिक और गेस्टेशनल उच्च रक्तचाप का कोई अचूक इलाज नही है, लेकिन कुछ बातों को ध्यान में रखकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। खाने में नमक की बहुत कम मात्रा लीजिए। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त आराम करना चाहिए। गर्भावस्था के दौरन चिकित्सक की सलाह से दवाओं के द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
भविष्य की समस्यायें
गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप का असर डिलीवरी के बाद भी मां और बच्चे दोनों पर पड़ता है। मां से ज्यादा इसका असर बच्चे पर पड़ता है, इससे बच्चे का दिमाग अविकसित, विकलांगता, मिर्गी, बहरापन और अंधापन जैसी समस्यायें हो सकती हैं। बड़ा होने के बाद ऐसे बच्चे में मधुमेह, हृदय रोग और हाइपरटेंशन होने का खतरा बना रहता है।
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