एंट्रोवायरस छोटे वायरस होते हैं जो रीबोनुक्लेइक ऐसिड (आएनए) और प्रोटीन से बनता है। तीन भिन्न पोलियोवायरस के अलावा, कई नॉन-पोलियो ऐंट्रोवायरस होते हैं जो इंसानों में बीमारी पैदा कर सकते हैं। जिसमें कोक्सैकी वायरस, ऐकोवायरस और अन्य ऐंट्रोवायरस शामिल हैं। ऐंट्रोवायरस गैस्ट्रोइन्टेस्टनल ट्रैक्ट के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है, और नर्वस सिस्टम पर हमला करता है।
ऐंट्रोवायरस डी68 ने बहुत बच्चों को अपना शिकार बनाया है। सीडीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 40 से ज्यादा देशों में इसके मामलों की पुष्टि हो चुकी है। काफी बच्चों को इस बीमारी के साथ अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। साथ ही, कुछ ऐसे मामले भी हैं जो लकवा मारने के हैं, और जो शायद ऐंट्रोवायरस के साथ जुड़े हुए हैं। कुछ मौतें भी हुई हैं, हालांकि ये अब तक साफ नहीं हो पाया है कि ये मौतें इसी वायरस की वजह से हुई हैं या फिर इसके साथ जुड़ी समस्याओं से।
ऐंट्रोवायरस डी68 कोई नया वायरस नहीं है। पहली बार इसका पता 1962 में चला था लेकिन तब से इसके मामले न के बराबर ही सामने आए। जब तक एंट्रोवायरस की पहचान होती है तब तक कई नए ऐंट्रोवायरस बन चुके होते हैं। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप पर हर ऐंट्रोवायरस की संरचना एक जैसी दिखती है लेकिन उनके स्वभाव में कितनी भिन्नता या समानता है कोई नहीं जानता। अमेरिका में हर साल गर्मियों के आखिर और सर्दियों की शुरूआत में इसके बहुत सारे मामले सामने आते हैं।
कैसे फैलता है ऐंट्रोवायरस
ऐंट्रोवायरस संक्रमित व्यक्ति के नजदीकी संपर्क से फैलता है। इसके अलावा, वायरस से संक्रमित किसी वस्तु या जगह को छू कर उस हाथ को मुंह, नाक या आंख में लगाने से भी ये वायरस फैल सकता है। ये वायरस बच्चों को आसानी से अपनी चपेट में ले लेता है। संक्रमित व्यक्ति के खांसी या छीक मारने से ही पास खड़े बच्चे तक ये वायरस पहुंच जाता है।
टॉप स्टोरीज़
कैसे करें सुरक्षा
ऐंट्रोवायरस के खतरे को टालने के लिए कुछ सुरक्षा के उपाय अपनाए जाने जरूरी हैं।
1) किसी अच्छे साबुन से बच्चे के हाथ 20 सेकेंड तक धुलवाएं। इसके अलावा, अगर कोई छोटा बच्चा है, जिसकी देखभाल आप करते हैं तो उसका डायपर बदलने के बाद याद से हाथ धो लें।
2) बिना धुले हाथों से आंखों, नाक और मुंह को छूने से बचें।
3) जो लोग इस वायरस से संक्रमित हों उन्हें चूमने, गले लगाने से बचें। संक्रमित लोगों के साथ खाने के बर्तन भी सांझा न करें। ऐसा करने से आप तक वायरस पहुंच सकता है।
4) अगर आपका बच्चा बीमार है तो उसे उसके हाथ की बजाय, कंधे और बाजू की तरफ खांसने के लिए कहें। इससे उसके आसपास के लोग संक्रमण से बच जाएंगे।
5) जब बीमार महसूस करें तो घर में रहें। अगर आपका बच्चा संक्रमित है तो उसे स्कूल भेजने से दूसरे बच्चों को भी संक्रमण हो सकता है। बच्चे को स्कूल न जाने दें, अपने डॉक्टर की सलाह लें।
फ्लू से अलग है ऐंट्रोवायरस
ये बात याद रखें, कि ऐंट्रोवायरस फ्लू से अलग होता है। कई बार ऐसा भी होता है कि लोग ऐंट्रोवायरस के संक्रमण को फ्लू ही समझ लेते हैं। गलत इलाज से मामला बिगड़ सकता है। इसलिए दोनों की पहचान की पुष्टि कर लें। ये फ्लू का मौसम है। फ्लू से बचने के लिए 6 महीने से लेकर सारी उम्र तक के बच्चों को जितनी जल्दी हो सके फ्लू वैक्सीन लगवा लें।
अगर आपके बच्चे को अस्थमा या सांस संबंधी कोई दूसरी समस्या है तो, ऐंट्रोवायरस डी68 की वजह से उसे सांस लेने में तकलीफ हो सकती है या फिर वो जोर-जोर से सांस लेगा। अगर ऐसा होता है तो बच्चे को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। अगर बच्चे को हल्का जुकाम, खांसी या फिर बुखार है तो घबराएं नहीं वो कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा।
Image Source - Getty Images
Read More Articles on Miscellaneous in Hindi