थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता। यह रोग ऑक्सीजन की आपूर्ति को प्रभावित करता है। आइए डॉक्टर सौम्या मुखर्जी से जानते हैं ये समस्या क्यों होती है और यह कितना खतरनाक है?
थैलेसीमिया के प्रकार
हीमोग्लोबिन चेन में दोष के कारण अल्फा थैलेसीमिया और बीटा थैलेसीमिया दो प्रकार होते हैं, जिनकी गंभीरता जीन म्यूटेशन पर निर्भर करती है।
थैलेसीमिया के मुख्य कारण
यह रोग माता-पिता से आनुवांशिक रूप में प्राप्त होता है। हीमोग्लोबिन की संरचना में बदलाव या म्यूटेशन से यह समस्या पैदा होती है।
थैलेसीमिया के सामान्य लक्षण
थकान महसूस होना, त्वचा का पीला पड़ना, बच्चों की ग्रोथ में रुकावट, पेट फूलना और पेशाब में पीलापन इसके आम लक्षण हैं।
बच्चों पर प्रभाव
थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों की हड्डियों की बनावट असामान्य हो सकती है और उनकी वृद्धि धीमी हो जाती है, जिससे उनका शारीरिक विकास प्रभावित होता है।
संभावित जोखिम
इस रोग से ग्रसित लोगों में आयरन की अधिकता और इंफेक्शन की आशंका बढ़ जाती है, जिससे हृदय और किडनी पर दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
निदान कैसे होता है?
ब्लड टेस्ट, हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस और जेनेटिक टेस्ट के माध्यम से थैलेसीमिया का सटीक निदान किया जाता है।
उपचार के विकल्प
गंभीर मामलों में बार-बार खून चढ़ाना, आयरन निकालने के लिए चेलेशन थेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट का सहारा लिया जाता है।
शादी से पहले जेनेटिक टेस्ट करवाकर थैलेसीमिया की आशंका को पहचाना जा सकता है। समय रहते जागरूकता ही बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। सेहत से जुड़ी और जानकारी के लिए पढ़ते रहें onlymyhealth.com