डिस्लेक्सिया एक मानसिक समस्या है जिसे डेवलपमेंटल रीडिंग डिसऑर्डर भी कहते हैं। इसमें बच्चे को पढ़ने, लिखने और शब्दों को समझने में कठिनाई होती है। यह समस्या आमतौर पर स्कूल जाने की उम्र में सामने आती है।
डॉक्टर के अनुसार
आइए किडजेनिक्स चाइल्ड क्लीनिक के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर निखिल मेहरोत्रा से विस्तार में जानते हैं डिस्लेक्सिया के बारे में।
डिस्लेक्सिया के प्रकार
डिस्लेक्सिया कई प्रकार का होता है- जैसे अटेंशनल, लेटर आइडेंटिटी, लेटर पोजिशन, फोनलॉजिकल और सीमेंटिक ऐक्सेस डिस्लेक्सिया। हर प्रकार में बच्चे को अलग-अलग स्तर की पढ़ाई से जुड़ी परेशानी होती है।
अटेंशनल और लेटर आइडेंटिटी डिस्लेक्सिया
अटेंशनल डिस्लेक्सिया में बच्चा अक्षर और शब्द पहचान नहीं पाता। लेटर आइडेंटिटी में बच्चा शब्दों का उच्चारण और पहचानने में भी परेशानी महसूस करता है। यह समस्या पढ़ाई में बाधा बनती है।
लेटर पोजिशन और फोनलॉजिकल डिस्लेक्सिया
इसमें बच्चा शब्दों को उल्टा-पुल्टा पढ़ता या लिखता है। फोनलॉजिकल डिस्लेक्सिया में दिखने में समान शब्दों को भी पहचानने और पढ़ने में कठिनाई होती है। इससे पढ़ने की गति धीमी हो जाती है।
डिस्लेक्सिया के लक्षण
बच्चों को चीजें याद रखने, शब्द समझने, बोलने या किसी बात पर ध्यान लगाने में दिक्कत होती है। ये लक्षण 3 साल की उम्र के बाद धीरे-धीरे सामने आने लगते हैं।
डिस्लेक्सिया के कारण
यह समस्या दिमाग की चोट, स्ट्रोक, मानसिक सदमा, कम वजन, देर से बोलना या समय से पहले जन्म जैसे कारणों से हो सकती है। ये सभी कारण मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करते हैं।
इलाज और देखभाल
डिस्लेक्सिया का इलाज मनोचिकित्सक की सलाह से किया जाता है। इलाज में थेरेपी और कुछ दवाएं शामिल हो सकती हैं। माता-पिता का साथ, धैर्य और सही मार्गदर्शन सबसे ज्यादा जरूरी होता है।
डिस्लेक्सिया का जल्द पता चलना बहुत जरूरी है। इससे बच्चे की पढ़ाई, समझने और याद रखने की क्षमता में सुधार लाया जा सकता है। हेल्थ से जुड़ी और जानकारी के लिए पढ़ते रहें onlymyhealth.com