ब्लू बेबी सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे की त्वचा नीली पड़ने लगती है। इसका कारण शरीर में ऑक्सीजन की कमी होता है। यह समस्या अधिकतर प्रदूषित पानी में मौजूद नाइट्रेट के कारण होती है। समय रहते इलाज न हो तो यह जानलेवा भी हो सकती है।
डॉक्टर के अनुसार
आइए डॉ. फजल नबी (बाल रोग विशेषज्ञ, जसलोक अस्पताल) से ब्लू बेबी सिंड्रोम बीमारी के लक्षण और बचाव के बारे में जानते हैं।
शिशु के नीले पड़ने के लक्षण
शरीर की त्वचा नीली दिखना, सांस लेने में दिक्कत, थकान, चिड़चिड़ापन और वजन न बढ़ना इस बीमारी के लक्षण हैं। अगर ये दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।
अन्य गंभीर संकेत
बार-बार बेहोश होना, क्लब्ड फिंगर्स (उंगलियों का अजीब आकार), सुस्ती और विकास में रुकावट जैसे संकेत ब्लू बेबी सिंड्रोम की गंभीरता को दर्शाते हैं।
डॉक्टर कैसे पहचानते हैं बीमारी?
डॉक्टर शारीरिक लक्षणों, परिवार के इतिहास और खानपान की आदतों की जांच करते हैं। त्वचा की रंगत, दिल की धड़कन और फेफड़ों की आवाज भी चेक की जाती है।
जरूरी मेडिकल जांचें
ब्लड टेस्ट, छाती का एक्स-रे, ECG, इकोकार्डियोग्राम और कार्डिएक कैथीटेराइजेशन जैसी जांचें ब्लू बेबी सिंड्रोम की पुष्टि के लिए की जाती हैं। इनसे हृदय और फेफड़ों की स्थिति स्पष्ट होती है।
इलाज क्या है?
मेथिलीन ब्लू दवा दी जाती है जो खून को ऑक्सीजन देने में मदद करती है। एस्कॉर्बिक एसिड और ऑक्सीजन थेरेपी भी उपचार का हिस्सा होती हैं, खासकर गंभीर मामलों में।
बचाव कैसे करें?
गर्भावस्था के दौरान अल्कोहल, धूम्रपान और अवैध दवाइयों से बचें। इससे जन्मजात हृदय दोष की आशंका कम होती है और ब्लू बेबी सिंड्रोम का खतरा टलता है।
डॉक्टर की निगरानी में रहकर ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी जटिलताओं से बचा जा सकता है। हेल्थ से जुड़ी और जानकारी के लिए पढ़ते रहें onlymyhealth.com