
सुख और दुख एक साथ नहीं आते हैं और न ही एक जैसा माहौल हमेशा रहता है, व्यक्ति के जीवन में कभी खुशी तो कभी गम जरूर आते हैं, लेकिन कई मामलों में खुशियों को लेकर गलतफहमी में आप में जीते हैं।
सभी का जीवन एक जैसा नहीं होता है, किसी के हिस्से में अधिक खुशी तो किसी के हिस्से में दुख ही दुख होता है। हमारे आसपास कई तरह के लोग रहते हैं, कुछ अधिक खुश तो कुछ गमगीन रहते हैं। लेकिन कई बार हम बनावटी सुख के लिए जीवन की सच्ची खुशियों का त्याग करते हैं और यही हमें बाद में दुख देते हैं। दूसरों को देखकर ही हम अपनी खुशियों और दुखों का निर्धारण कर लेते हैं और कई तरह की गलतफहमियां भी पाल लेते हैं। इस लेख में जानिये कि आज से पहले खुशियों को लेकर कितनी गलतफहमियों में थे आप।
मिथ - खुशियां या गम पैदाइशी हैं
हमें यही लगता है कि आज जो भी हमारी हालत है उसके लिए हमारा नसीब ही जिम्मेदार है, और हम इसे बिलकुल भी नहीं बदल सकते हैं। अगर हम दुखी हैं तो अपने माता-पिता को कोसते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अपनी खुशी और गम के लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार होते हैं। विपरीत परिस्थितियों और विपरीत माहौल में भी हम अपने लिये खुशी के लम्हें न केवल निकाल सकते हैं बल्कि इन लम्हों में खुद को खुश भी रख सकते हैं।
मिथ - दुख और सुख स्थायी होता है
लोगों को यही लगता है कि दुख और सुख स्थायी होते हैं। कुछ लोग यहां केवल सुखी जीवन यापन के लिए पैदा होते हैं और कुछ लोग केवल दुखों को सहने के लिए पैदा होते हैं और यह उनके साथ जीवन पर्यंत चलता रहता है। जबकि वास्तव में यह सही नहीं है, जब भी हमारे पास जीत के कुछ क्षण होते हैं हम तुंरत खुश हो जाते हैं और उसका श्रेय भी स्वयं को देते हैं। लेकिन जब हमारी इच्छायें पूरी नहीं हो पाती तब हम दुखी रहने लगते हैं।
मिथ - व्यवहार बदल सकता है मनोभाव नहीं
यह बिलकुल भी भ्रामक है और अगर आप भी इसके शिकार हैं तो आप गलत हैं। जिस तरह से आपके मनोभाव आपके व्यवहार को बदल सकते हैं उसी तरह आपका व्यवहार भी मनोभाव को बदल सकता है। आप अपनी भावनाओं के अनुसार अपने व्यवहार का निर्धारण नहीं कर सकते हैं और न ही अपने व्यवहार के कारण अपनी भावनाओं को काबू कर सकते हैं। अगर आपके मन में अच्छे विचार आयेंगे तो आपका व्यवहार भी बदल जायेगा और आप खुश रह सकेंगे, अगर आपका व्यवहार अच्छा होगा तो नकारात्मक विचार आने की संभावना भी नहीं रहेगी।
मिथ - खुशियों के बीच तनाव नहीं आता है
खुश रहकर आप काफी हद तक तनाव को अपने से दूर रख सकते हैं लेकिन तनाव को हमेशा के लिए खुद से अलग नहीं कर सकते हैं। हालांकि यह सच है कि खुशहाल लोगों की जिंदगी में तनाव नहीं होता है, लेकिन यह उससे कहीं अधिक कड़वा सच है कि तनाव दूर करने के लिए ही लोग खुश रहने के बहाने ढूंढते हैं। इसलिए खुश रहकर जीवन यापन कीजिए न कि तनाव के साथ बनावटी खुशी के साथ।
मिथ - सकारात्मक विचार से ही जीत मिलती है
सकारात्मक विचारों से ग्रस्त लोगों को देखकर आपको लगता है कि ये ऐसे लोग हैं जो जीवन में न तो हारे होंगे और न ही किसी बात से निराश होंगे। जबकि वास्तविकता यह है कि आसपास का माहौल और जीवन में मिले अनुभव (अच्छे और बुरे दोनों तरह के) ही व्यक्ति के व्यवहार को निर्धारित करते हैं और उनके आधार पर ही वह खुद को ढाल भी लेता है। लोग खुद को जीवन के कड़वे अनुभवों से निकालकर सकारात्मकता की तरफ ले जाते हैं और खुशहाल जीवनयापन करते हैं।
जब व्यक्ति की महात्वाकांक्षाएं सीमित होती हैं, तो वह आनंदपूर्वक जीवन जीता है, लेकिन जब उसकी इच्छायें असीमित हो जाती हैं तब वह गलत रास्ते पर चलता है और दुखों और कष्टों को सहता है। इसलिए थोड़े में ही संतुष्ट रहकर खुद को खुश रखने की कोशिश कीजिए।
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