
Why do people get sad at night: दिनभर की भागदौड़, मीटिंग्स, लोगों से बातचीत, ट्रैफिक और लगातार चलती जिम्मेदारियों के बीच आपका दिमाग एक मशीन की तरह चलता रहता है, लेकिन जैसे ही रात होती है और माहौल धीरे-धीरे शांत होने लगता है, अचानक सब कुछ बदल जाता है। वही इंसान, जो दिनभर बिजी दिखता है, रात के समय अकेले में अचानक ज्यादा भावुक, भारी या उदास महसूस करने लगता है। यह सिर्फ आपके साथ नहीं, बल्कि लाखों लोगों के साथ होता है, लेकिन आखिर ऐसा क्यों होता है कि रात गहराते ही मन भी भारी होने लगता है? इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमने मेट्रो हॉस्पिटल, नोएडा की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट डॉ. मनीषा सिंघल (Dr. Manisha Singhal, Consultant - Clinical Psychologist & Psychotherapist, Metro Hospital, Noida)
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रात में उदासी क्यों महसूस होती है? - Why do people tend to get sad at night
साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट डॉ. मनीषा सिंघल बताती हैं, ''रात में दिमाग ज्यादा एक्टिव हो जाता है क्योंकि बाहरी डिस्ट्रैक्शन कम हो जाते हैं। ऐसे में व्यक्ति खुद की भावनाओं पर ज्यादा फोकस करता है और छोटी-छोटी चिंताएं भी बड़ी लगने लगती हैं।'' यही कारण है कि ओवरथिंकिंग बढ़ जाती है और उदासी गहरी महसूस होती है।
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1. हार्मोनल बदलाव
रात के समय शरीर में मेलाटोनिन बढ़ता है, जो नींद का हार्मोन है। यह दिमाग को धीमे मोड में ले जाता है, लेकिन साथ ही भावनाएं भी गहरी महसूस होती हैं। कुछ लोगों में रात के समय सेरोटोनिन का लेवल कम होने लगता है, जिससे मन उदास या खाली-सा महसूस होता है। डॉ. मनीषा सिंघल कहती हैं, ''हार्मोनल बदलाव का सीधा असर मूड पर आता है। जिन लोगों में पहले से एंग्जायटी या डिप्रेशन का इतिहास है, वे रात में ज्यादा भावुक या चिंताग्रस्त हो सकते हैं।''
2. दिनभर की थकान
शारीरिक और मानसिक थकान दोनों ही रात के समय चरम पर होती हैं। जब शरीर थका रहता है तो भावनात्मक सहनशीलता (Emotional Resilience) कम हो जाती है, यानी छोटी-सी बात भी भारी मानसिक बोझ लगने लगती है। डॉ. मनीषा सिंघल के अनुसार, ''दिनभर की थकान, स्ट्रेस और इमोशनल लोड रात में अचानक भारी महसूस होने लगता है। थकान मस्तिष्क की कॉपिंग क्षमता को कम कर देती है और व्यक्ति को उदासी ज्यादा तीव्र लगती है।''
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3. सोशल मीडिया का प्रभाव
रात में अक्सर लोग अकेले में सोशल मीडिया स्क्रॉल करते हैं। दूसरों की परफेक्ट जिंदगी देखकर व्यक्ति अपनी जिंदगी से तुलना करने लगता है। यह तुलना हीनभावना, अकेलापन और उदासी को बढ़ा सकती है। डॉ. मनीषा बताती हैं कि रात का समय पहले ही संवेदनशील होता है, ऐसे में निगेटिव कंटेंट, ब्रेकअप पोस्ट या इमोशनल वीडियोज मूड पर तेज असर डालते हैं।
डॉक्टर की सलाह
सोने से 1 घंटे पहले मोबाइल और स्क्रीन से दूरी बनाएं, हल्की स्ट्रेचिंग या ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें, अपनी भावनाओं को लिखें, कैफीन और भारी भोजन से बचें, नींद का फिक्स टाइम रखें और जरूरत पड़ने पर मनोवैज्ञानिक से काउंसलिंग लें।
निष्कर्ष
रात की उदासी किसी एक कारण से नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और हार्मोनल कारकों से पैदा होती है। जैसा कि साइकोलॉजिस्ट डॉ. मनीषा सिंघल बताती हैं, यह एक आम अनुभव है और सही रूटीन, भावनात्मक जागरूकता और स्वस्थ नींद पर ध्यान दिया जाए तो इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। जरूरत बस इतनी है कि हम अपने मन की आवाज को समझें और उसे संभालने का समय दें।
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FAQ
क्या उदासी और डिप्रेशन एक ही चीज हैं?
उदासी एक अस्थायी भावना है, जो कुछ समय बाद सामान्य हो जाती है, लेकिन डिप्रेशन लंबे समय तक रहने वाली गहरी उदासी, निराशा और एनर्जी की कमी की स्थिति है, जिसके लिए डॉक्टर की सलाह जरूरी होती है।क्या नींद पूरी न होने से उदासी बढ़ती है?
नींद की कमी दिमाग के उन हिस्सों को प्रभावित करती है जो भावनाओं को कंट्रोल करते हैं। इसलिए कम नींद उदासी, चिड़चिड़ापन और ओवरथिंकिंग बढ़ा सकती है।क्या सोशल मीडिया आपको उदास कर सकता है?
रात में अकेले सोशल मीडिया स्क्रॉल करने से दूसरों की जिंदगी से तुलना बढ़ती है, जिससे हीनभावना, अकेलापन और उदासी गहरी हो सकती है।
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Dec 07, 2025 14:58 IST
Published By : Akanksha Tiwari