
मानव के शरीर में मौजूद पांच ज्ञानेंद्रियों में से एक कान भी होते हैं। इन्हें भी बाकी ज्ञानेंद्रियों की तरह विशेष देखभाल की जरूरत होती है और देखभाल में किसी प्रकार की लापरवाही बरतने पर इन्हें नुकसान पहुंच सकता है।
मानव के शरीर में मौजूद पांच ज्ञानेंद्रियों में से एक कान भी होते हैं। इन्हें भी बाकी ज्ञानेंद्रियों की तरह विशेष देखभाल की जरूरत होती है और देखभाल में किसी प्रकार की लापरवाही बरतने पर इन्हें नुकसान पहुंच सकता है। आमतौर पर भी कान में कई समस्याएं हो सकती हैं जिनमें से कानों का संक्रमण भी एक है जिसके प्रति लापरवाही बरतने से गंभीर परिणामों के रूप में सुनने की क्षमता भी जा सकती है। तो चलिये जानें कि कान के संक्रमण में देखभाल व इससे बचाव क्या हैं।
कान के दो भाग होते हैं। बाहरी कान और भीतरी। बाहरी कान जो हमें दिखाई देता है और उसकी बनावट हमारे चेहरे के अनुसार होती है। साधारणतया कान की चमड़ी बाहर की तरफ बढ़ती है, और मैल आदि को बाहर फेंकती जाती है। भीतरी कान का हिस्सा जो हमें दिखाई नहीं देता, परंतु उसमें भी कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें से एक है कान का संक्रमण।
कान में संक्रमण
यूं तो कान से जुड़ी बीमारी का उम्र से कोई विशेष लेना-देना नहीं है, क्योंकि यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। फिर भी 50 वर्ष की उम्र से अधिक व्यक्तियों में, विशेषतौर पर सर्दियों और बरसात के मौसम में कान से जुड़ी समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं। इसलिए सर्दियों और बरसात के मौसम में बुजुर्गों को कान के प्रति ज्यादा सजग रहना चाहिए और उनकी विशेष देखभाल करनी चाहिए।
मध्य कान का संक्रमण (ए.एस.ओ.एम)
देखा गया है कि मध्य कान का संक्रमण आमतौर पर ऊपरी नाक या गले की बीमारियों के कारण अधिक होता है। यह संक्रमण ईएनटी नालिका द्वारा कान में पहुंचने वाले स्त्रावों के कारण होते हैं। बच्चों में अक्सर साधारण जुकाम या गला खराब होने मात्र से भी कई बार कान का संक्रमण हो जाता है। बच्चों में ऐसा अधिक इसलिए होता है क्योंकि उनमें ईएनटी नालिका छोटी और सीधी होती है।
कारण और रोग की जानकारी
मध्य कान के संक्रमण आमतौर पर पीप पैदा करने वाले बैक्टीरिया और कभी कभी वायरस के कारण हो जाते हैं। इसके प्रारम्भ में, कान में भारीपन, दवाब, हल्का दर्द होता है। कुछ मामलों में उल्टी और बुखार भी हो सकता है। ऐसे में यदि समय पर इलाज न हो तो संक्रमण बढ़ भी जाता है और कान में पीप के कारण टीस भरा दर्द हो सकता है। इलाज न हो तो एक दो दिनों में कान का पर्दा भी फट सकता है। इलाज होने पर आमतौर पर दो तीन दिनों तक पीप निकलती है और फिर कान सूख जाता है। उसके बाद धीरे-धीरे कान का पर्दा भी ठीक होने लगता है।
- रोग के ठीक होने के लिए कान को साफ रखना ज़रूरी है।
- दिन में दो बार नाक से भाप लेने से ईएनटी नासिका खुली रहती है।
- कान और नाक में सूजन को रोकने के लिए सीपीएम की गोलियां देनी चाहिए।
- साफ करने के बाद कान को रूई से सुखा लें। कान में एन्टीमाईक्रोबियल दवाई न डालें।
- रूई की फाहे को पीप सोखने तक कान में रखे रहें। उसके बाद उसकी जगह एक साफ फाहा रख दें। फाहे से मक्खियां दूर रहती हैं। मक्खियों को कभी भी कान में न घुसने दें क्योंकि वो अण्डा देकर खतरनाक झिल्ली पैदा कर देती है।
- कान में से पीप निकालने के लिए एक नुक्सान देह रिवाज़ है चुल्लू भर पानी कान में डालना। इससे कान में गन्दा पानी जाकर संक्रमण बढ़ता है।
कान के आकस्मिक संक्रमण भी आमतौर पर एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं। पर्दे में छेद होने से ठीक होने में देरी हो जाती है। कान के पर्दे को ठीक होने में कम से कम दो से तीन हफ्ते लग जाते हैं।
इसके अलावा कान को किसी नुकीली चीज से खुजलाने से या कान छेदने से कान में संक्रमण हो सकता है। कुछ वस्तुएँ जैसे क्रीम, इत्र कान में उपयोग में आने वाली दवाइयों की एलर्जी से भी संक्रमण होता है। कान लाल हो जाता है, खुजली आती है एवं दर्द हो सकता है। लोगों को इन चीजों का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।
थोड़ी सी लापरवाही कान के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। यदि कान में मैल जम जाए और ठीक से सफाई नहीं की जाए तो मैल की परत धीरे-धीरे पत्थर जैसा रूप धारण कर लेती है। इससे कान का रास्ता बंद हो जाता है तथा रोगी को दर्द के साथ ऊंचा भी सुनाई देने लगता है। ऐसे में यदि शुरुआत से ही कुछ बातों का ध्यान रख लिया जाए तो आप समस्या से दो-चार होने से बच सकते हैं।
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