
शरीर में प्रोटीन की कमी से बुढापे में मसूडों की बीमारी हो सकती है। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है कि आप-अपने घर के बूढ़े-बुजुर्गों को बार-बार डेंटल चेकअप के लिए ले जाएं और उनके खान-पान पर ध्यान दें।
स्वास्थ्य का निर्धारण करने के लिए उम्र एक प्रमुख या एकमात्र कारक नहीं हो सकता है। हालांकि, कुछ चिकित्सीय स्थितियां, जैसे कि हाथ और उंगलियों में गठिया, ब्रश करना या फ्लॉसिंग दांतों को खराब सकता है।मसूडों की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन प्रोटीन की कमी के कारण ज्यादातर मसूडों की समस्या बुढापे में ही होती है। हालांकि यदि शरीर में डेल-1 प्रोटीन का स्तर कम है तो बुढापे में पेरियोडोंटाइटिस नामक मसूडों की बीमारी हो सकती हैं। इसमें मसूडों से खून निकलता है और दांतों के आसपास की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इस बीमारी में मुंह के कीटाणुओं के प्रति अवरोधक तंत्र ज्यादा सक्रिय हो जाता है। इस उम्र में शरीर में बाकी चीजों की कमी भी रहती है। शरीर में कैलशियम और अन्य विटामिन आदि की भी कमा हो जाती है। दवाएं मौखिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती हैं और आपके दंत चिकित्सा उपचार में बदलाव कर सकती हैं।
प्रोटीन की कमी से मसूडों की अन्य बीमारियां –
पेरियोडोंटाइटिस-
यह मसूडों की सबसे गंभीर बीमारी है जो कि 35 की उम्र के बाद लोगों को होती है। पेरियोडोंटाइटिस की समस्या ज्यादातर प्रोटीन की कमी के कारण भी होती है लेकिन, जिंजिवाइटिस का अगर उपचार न किया जाए तो यह गंभीर रूप लेकर पेरियोडोंटाइटिस में बदल जाती है। पेरियोडोंटाइटिस से पीड़ित व्यक्ति में मसूड़ों की अंदरूनी सतह और हड्डियां दांतों से दूर हो जाती हैं और दांतों के बीच ज्यादा गैप बन जाते हैं। दांतों और मसूड़ों के बीच स्थित इस छोटी-सी जगह में गंदगी इकट्ठी होने लगती है, जिससे मसूड़ों और दांतों में संक्रमण फैल जाता है। यदि ठीक से उपचार न किया जाए तो दांतों के चारों ओर मौजूद ऊतक नष्ट होने लगते हैं और दांत गिरने लगते हैं।
जिंजिवाइटिस-
यह मसूड़ों की सबसे आम समस्या है। इसमें मसूड़े सूखकर लाल हो जाते हैं और कमजोर पड़ जाते हैं। कई लोगों में दांतों के बीच में उभरा हुआ तिकोना क्षेत्र बन जाता है जिसे पेपीले कहते हैं। इसका मुख्य कारण सफेद रक्त कोशिकाओं का जमाव, बैक्टीरिया का संक्रमण और प्लॉंक हो सकता है। जिंजिवाइटिस से बचने के लिए जरूरी है कि मुंह की साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाए। यह प्रोटीन की कमी के कारण होता है।
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पायरिया-
अगर ब्रश करने या खाना खाने के बाद मसूड़ों से खून बहता है तो यह पायरिया के लक्षण हैं। इसमें मसूड़ों के ऊतक सड़कर पीले पड़ने लगते हैं। इसका मुख्य कारण दांतों की ठीक से सफाई न करना है। गंदगी की वजह से दांतों के आसपास और मसूड़ों में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। पायरिया से बचने के लिए जरूरी है कि मुंह की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए। कुछ भी खाने के बाद ब्रश करने की आदत डाल लीजिए।मसूड़ों की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। लेकिन प्रोटीन की कमी से बुढापे में मसूडों की बीमारी का खतरा बढ जाता है। प्रोटीन की कमी से हर चार में से तीन लोग मसूड़ों की बीमारी से पीड़ित होते हैं। इससे बचने के लिए प्रतिदिन 1000 मिलीग्राम प्रोटीन और विटामिन का सेवन करना चाहिए हैं। मसूडों की समस्या से निपटने के लिए अपने चिकित्सक से संपर्क कीजिए।
दांतों के रंग में बदलाव-
बढ़ते हुए उम्र के साथ दांतों के रंग में भी बदलाव आ जाता है। दांत काले पड़ जाते हैं या पीले हो जाते हैं। इसकी वजह से मुंह का स्वाद भी कम हो जाता है। इसके अलावा दांतों की जड़ का भी नुकसान हो जाता है। यह दांत की जड़ को नुकसाल पहुंचाने वाले एसिड के संपर्क में आने के कारण होता है। दाँत से दांत निकलते ही दांत की जड़ें खुल जाती हैं। ऐसे में दांतों के अगले भाग में ज्यादा नुकसान होता है और दांत टूट जाते हैं।
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ओरल हाइजीन टिप्स
- प्राकृतिक दांतों को बचाए रखने के लिए दैनिक ब्रशिंग और फ्लॉसिंग मुंह के स्वास्थ्य में बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। मुंह के स्वास्थ्स की नजरअंदाज करने से दांतों की सड़न और मसूड़ों की बीमारी होती है। इसलिए दांतों को बनाएं रखने के लिए जरूरी है कि-
- फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट से दिन में कम से कम दो बार ब्रश करें
- एक दिन में कम से कम एक बार फ्लॉस करें
- दिन में एक या दो बार एंटीसेप्टिक माउथवाश से कुल्ला करें
- महीने में बार-बार डेंटेल चेकअप के लिए जाते रहें।
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