नौकरी का तनाव और इंसान

बेरोजगारी इंसान को जिंदा जलाती है लेकिन रोजगारी इंसान को धीरे-धीरे जलाती है। मतलब बेरोजगारी में तो इंसान रो भी ले और सबको अपना दुखड़ा सुना भी दे। लेकिन नौकरी की परेशानी तो इंसान किसी को बोल भी नहीं सकता और बोल भी दे तो कोई समझता नहीं। दरअसल नौकरी ही कई बार इंसान के दुख का कारण बन जाती है जिससे इंसान तनाव में चला जाता है। सबसे बड़ी समस्या तो तब होती जब नौकरी के इस तनाव बनती समस्या को कोई समझता नहीं है। इन परिस्थितियों में अगर इंसान किसी से बोलने भी जाए तो भी लोग ये कहते होते हुए उसे टाल देते हैं कि बैठे-बैठाए अच्छी नौकरी मिल गई है तो पच नहीं रही है। ऐसे में हमने नौकरी से होने वाले तनाव के पीछे कारणों को खोजने की कोशिश की।
काम का बढ़ता बोझ

जैसे-जैसे कंपनी में आप पुराने होते जाते हैं कंपनी की उम्मीदें आप से बढ़ जाती हैं और आपकी भी कुछ महत्वाकांझाएं बनने लगती हैं। ऐसे में काम का बोझ बढ़ना तो लाज़मी है। काम का बढ़ता बोझ और आपकी बढ़ती उम्र में जब सामंजस्य नहीं बनता तो नौकरी तनाव का रुप धारण करने लगती है।
सैलेरी में भेदभाव

नौकरी में तनाव बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है - सैलेरी में भेदभाव। कई बार ऐसा होता है कि आपके बाद आए कर्मचारी आपसे ज्यादा कमाते हैं और आप कुछ नहीं कर पाते। इन परिस्थितियों में आप मन ही मन उस नए कर्मचारी से चिढ़ने लगते हैं और अपनी कम सैलरी पर दुख भी जताते रहते हैं। ऐसे में दुख, तनाव रुपी मवाद तो बनेगा ही।
सख़्त नियम और कम छुट्टियां

प्राइवेट सेक्टर में सरकारी नौकरियों की तरह रियायतें नहीं होती। इसलिए हर किसी का सपना होता है- सरकारी नौकरी। प्राइवेट नौकरी की सबसे बड़ी खामी होती है- उनके सख्त नियम और कम छुट्टियां। केवल एक दिन का आराम और समय पर ऑफिस आना-जाना, समय से ज्यादा लंच नहीं लेना, आदि चीजें काम के पर्यावरण को काफी सख्त और क्रूर बना देती हैं। उसमें भी कम छुट्टियां इंसान की इन परेशानियों को और बढ़ा देती हैं। खासकर तो तब, जब आपका कोई जाननेवाला सरकारी छुट्टी लेकर आराम फरमा रहा होता है और आप गधे की तरह कंपनी में काम कर रहे होते हैं। ऐसे में इंसान चिड़चिड़ा तो बनेगी है।
प्रमोशन के कम मौके

कहा जाता है कि, प्राइवेट सेक्टर में बहुत पैसा है या कुछ भी नहीं। लेकिन ये बहुत पैसा है कहां और किसके पास? कितने प्रमोशन के मौके आते हैं और चले जाते हैं मालुम भी नहीं चलता। साल में एक बार अप्रेज़ल होता है वो भी इतना कम की ऑटो के भाड़े में निकल जाए। ऐसे में बढ़ती महंगाई और तीन साल पहले की सैलरी में संतुलन बैठाए तो, कैसे बैठाए इंसान?