जानें क्यों मनचाउसेन सिंड्रोम से ग्रस्त लोग बीमारी को करते हैं पसंद
मनचाउसेन सिंड्रोम में मरीज खुद को बीमार बता कर तरहतरह के ट्रीटमेंट कराता रहता है और दूसरों से प्यार औऱ सहानुभूति की इच्छा रखता है। ये एक मनोरोग होता है।

मनचाउसेन सिंड्रोम एक तरह का मानसिक रोग होता है जिसमे व्यक्ति खुद को बिना वजह बीमार समझता है। रोगी तरह तरह के झूठे लक्षणों को बताकर परिवारजन औऱ डॉक्टर से ध्यान, सहानुभूति और आश्वासन चाहता है। वो अपनी बीमारी को साबित करने के लिए अपने मन से बीमारियों के लक्षणों के बारे में बताता है। इस सिंड्रोम का ही एक विलक्षण प्रतिरूप है मनचाउसेन सिंड्रोम बाई प्रॉक्सी। इस रोग में व्यक्ति अपने बच्चे या बीवी में किसी रोग के लक्षण दिखाकर या पैदा कर इलाज और ऑपरेशन करवाता है।आगे की स्लाइडशो में आप इससे जुड़े लक्षणों के बारे में पढे।
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रोग के लक्षणों में नाटकीयता, अतिश्योक्ति, लक्षण असामान्य, इलाज से गंभीर होना या बदलना,अवस्था में सुधार के बाद पुनरावृत्ति,मेडिकल टम्र्स, भाषा व कुछ हद तक रोग का ज्ञान,टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव होने पर नए लक्षण और नए टेस्ट के लिए तत्परता,डॉक्टरों, अस्पतालों व क्लिनिकों की फेहरिस्त बड़ी शेखी के साथ बताना आदि होते है।
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ऐसा मनोरोगी लत की तरह एक से दूसरे डॉक्टर के पास अपनी बीमारी के बारें में सलाह लेते रहते है। हाथ में रोग संबंधी मोटी फाइल लिए, अस्पतालों के चक्कर काटते हैं। इस रोग को हॉस्पिटल अडिक्सन सिंड्रोम, थिक चार्ट सिंड्रोम या हॉस्पिटल हॉपर सिंड्रोम भी कहा जाता है। ऐसे मनोरोगी चाहते है कि डॉक्टर उसकी तरफ ध्यान दें, विश्वास कर उसका इलाज करें क्योंकि उसके रोग काल्पनिक होते हैं इसलिए लक्षणों का कारण नहीं मिलता।
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ऎसे मानसिक रोगी के काल्पनिक रोगों के लक्षणों में पेटदर्द, हाथ-पांव का काम ना करना, ठीक से दिखाई ना देना, पेशाब में जलन आदि होते हैं। रोगी जोर देता है कि उसे रोग है, तकलीफ है और टेस्ट,जांच करी जाए। टेस्ट में किसी भी लक्षण की पुष्टि नहीं होने पर रोगी डॉक्टर बदल देता है। दूसरे डॉक्टर, दूसरे अस्पताल में जाता है, काल्पनिक कष्ट भोगता है, पैसा खर्च करता है व परेशान होता है।
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ऎसे आत्मभ्रमित मनोरोगी को यह प्रदर्शित कर आत्मतुष्टि मिलती है कि बडे से बड़ा डॉक्टर खर्चीली जांचों के बावजूद भी रोग नहीं पकड़ पाया, इलाज गलत किया। अपने रोग के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित कर, चिंता, सहानुभुति व उनकी दिलचस्पी में उसे आदर भाव, आत्मतुष्टि मिलती है। कई साल लग जाते हैं इस रोग विहीनता की पुष्टि होने में, रोगी को समझाने में कि उसके रोग काल्पनिक हैं।
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