घर में ही मौजूद कैंसर के इन 6 कारकों से पायें छुटकारा
कैंसर घर में मौजूद कारकों से भी हो सकता है। इन कारकों को ठीक से प्रयोग ही कैंसर से बचा सकता है। घर में प्रयोग होने वाले कारकों में भी विषैले रसायन होते है। इस बारे में विस्तार से जानने के लिए इस स्लाइडशो को पढ़े।

घर से ज्यादा सुरक्षित हमें कुछ नहीं लगता। पर क्या आप जानते है कि घर में कि प्रयोग होने वाली छोटी- सी व्सतु आपकों कैंसर जैसी गंभीर बीमारी दे सकती है। घर के प्रयोग में आने वाली कई प्लासिटिक, रबर, शैंपू आदि में मौजूद फर्मैल्डहाइड, नाइट्रोबेंजीन और मीथेल क्लोराइड जैसी विषैली गैसें होती है। इस स्लाइड शो में घर में प्रयोग आने वाली जानलेवा वस्तुओं के बारें में पढ़े:-
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नैफ्थेलीन और पारा डाइक्लोरोबेंजीन खतरनाक रसायन हैं। इन रसायनों के संपर्क में रहने से चूहों को कैंसर की आशंका है तो इंसानों को भी इस रोग से पीड़ित होने का खतरा बढ़ जाता है। एयर प्रेशनर के लिये प्रयोग होने वाले मटेरियल में कई ऐसे हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, जो कैंसर की वजह हैं। एक वैज्ञानिक ने भी इस पर टिप्पणी करते हुए कहा- कपड़ों को कीड़ों से बचाने के लिये नैप्थेलीन की गोली का प्रयोग होता है। एयर प्रेशनर में भी। अत: एयर प्रेशनर का प्रयोग संभलकर करें।
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मोमबत्तियों से निकलने वाले धुएं का परीक्षण किया है.उन्होंने पाया कि पैराफ़ीन की मोमबत्तियों से निकलने वाले हानिकारक धुएं का संबंध फेंफड़े के कैंसर और दमे जैसी बीमारियों से है.हालांकि शोधकर्ताओं ने ये भी माना कि मोमबत्ती से निकलने वाले धुएं का स्वास्थ्य पर हानिकारक असर पड़ने में कई वर्ष लग सकते हैं.ब्रिटेन के विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान, मोटापा और शराब सेवन से कैंसर होने का खतरा ज़्यादा है. विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि मोमबत्तियों के कभी-कभी इस्तेमाल से लोगों को ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.
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यह एक रंगहीन या हल्के पीले रंग का रसायन है, जो कच्चे तेल, गैसोलिन और सिगरेट के धुएं से पैदा होता है। यह वाष्पीकृत होकर हवा में घुल जाता है। कुछ उद्योगों में बेंजीन को अन्य रसायनों के निर्माण के लिए भी उपयोग किया जाता है।कई महीने तक लगातार सांस के जरिए बेंजीन जब शरीर के भीतर जाती है तो इससे लंग कैंसर, ब्लड कैंसर और स्किन कैंसर भी हो सकता है। चूंकि बेंजीन के कारण शरीर में ऑक्सीजन की पर्याप्त पूर्ति नहीं होती है, इसलिए श्वसन तंत्र संबंधी समस्याएं भी होने लगती हैं।
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साबुन, शैंपू और टूथपेस्ट के अत्यधिक इस्तेमाल से कैंसर और लिवर संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। दरअसल इनमें पाया जाने वाला एक रसायन ट्राइकोल्सन इसके लिए जिम्मेदार बताया गया है। यह चेतावनी एक हालिया शोध में दी गई है। दुनियाभर में ट्राइकोल्सन का इस्तेमाल होता है।
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बदबू से बचने के लिए महिलाएं अंडरगारमेंट के नीचे त्वचा पर डियोडरेंट लगाती है। ब्रिटिश शोधकर्ताओं के मुताबिक यह उपाय कैंसर को जन्म दे सकता है। एल्यूमीनियम साल्ट के अतिरिक्त अन्य खतरनाक रसायन भी डियोडरेंट में होते हैं। डियो में ही नहीं, अल्यूमीनियम साल्ट कॉस्मेटिक, कीटनाशक और डिटरजेंट तथा आफ्टर सेव लोशन से भी होता है। यह तत्व ‘स्ट्रोजन’ नामक प्राकृतिक महिला हार्मोन की जगह ले लेता है। यह त्वचा में जज्ब हो जाता है। कैंसर पैदा होने का खतरा इससे बढ़ जाता है।
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प्लास्टिक में कई नुकसानदेह केमिकल होते हैं जो गर्म होने पर रिसकर पानी और खाने में मिल जाते हैं। पानी और खाने के रास्ते ये खतरनाक केमिकल हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं। प्लास्टिक से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है। ये डाईऑक्सिन पानी में घुलकर हमारे शरीर में पहुंचता है। जानकारों का कहना है कि डाइऑक्सिन हमारे शरीर में मौजूद कोशिकाओं पर बुरा असर डालता है। इसकी वजह से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
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घर में पाई जाने वाली इन चीजों के उपयोग को खत्म नहीं किया जा सकता है। इन वस्तुओं के उपयोग में सावधानी जरूर रखीं जा सकती है। वस्तुओं की खरीद के समय इस बात का ध्यान रखा जाएं कि वो अच्छी क्वालिटी का हो। साथ ही प्रयोग की मात्रा को ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। इन बातों का ठीक सें ध्या रखने से हम कैंसर के खतरे को कम कर सकते है।
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