दानवीर कर्ण से सीखें ये प्रेरणादायक सीख

कर्ण ने अपने महान गुणों और आदर्शों के साथ कभी समझौता नहीं किया। कर्ण के वक्तित्व से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है, जैसे कि विपरीत परिस्थितियों में कैसे धीरज और धैर्य से काम लें आदि।

Rahul Sharma
Written by:Rahul SharmaPublished at: Dec 30, 2016

कर्ण के जीवन से सीखें ये गुण

कर्ण के जीवन से सीखें ये गुण
1/4

हमारे ग्रंथ हमें काफी कुछ सिखाते हैं। खासतौर पर महाभारत और इसके चरित्रों से हम जीवन से जुड़े कई अहम सीख लेते हैं। महाभारत का एक ऐसा ही महान और गुणीं चरित्र है कर्ण, जिसे सूर्यपुत्र कर्ण, महारथी कर्ण, दानवीर कर्ण, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कर्ण आदि नामों से भी पुकारा जाता है। हालांकि इस महान महाभारत के इस योद्धा का दुर्भाग्य ने अन्त तक साथ नहीं छोड़ा, कर्ण ने अपने महान गुणों और आदर्शों के साथ कभी समझौता नहीं किया। कर्ण के व्यक्तित्व से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है, जैसे कि विपरीत परिस्थितियों में कैसे धीरज और धैर्य से काम लें, या अपने वचन पर कैसे कायम रहें आदि। तो चलिये आज हम भी कर्ण की कुछ ऐसी ही विशेषताओं के बारे में बता करते हैं और अपने जीवन में कुछ सफल बगलाव लाने का प्रयास करते हैं।

प्रतिभाओं का धनि कर्ण

प्रतिभाओं का धनि कर्ण
2/4

कर्ण महाभारत के सबसे प्रतिभावान व्यक्तित्वों में से एक व्यक्तित्व है। यही कारण है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले स्वयं इंद्र ने उनसे उनका कवच मांगा फिर कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बन कर अर्जुन द्वारा कर्ण के वध में सहायता की, ऐसा इसलिये क्योंकि कर्ण अर्जुन से ज्यादा बलवान, बुद्धिमान और प्रतिभाओं के धनि थे, और अकेले अर्जुन के वश में कर्ण को हराना न था। धनुर्धर कर्ण एक महान धनुर्धर थे जिनके गुरु खुद परशुराम थे। यही वजह है कि कर्ण अर्जुन से ज्यादा अच्छे धनुर्धर थे। इससे हमें साख मिलती है कि आपको अपने कार्यक्षेत्र में अच्छी पकड़ होनी चाहिये। बिना काम में निपुंणता के विजयी बनना संभव नहीं।

दयावान, वचनबद्ध और नैतिकता वाले कर्ण

दयावान, वचनबद्ध और नैतिकता वाले कर्ण
3/4

कर्ण न सिर्फ बलवान बल्कि बहुत ही दयावान व्यक्ति थे। किसी की मदद करने के लिए कर्ण सदैव तत्पर रहते थे। पिता सूर्य द्वारा दिये के कवच और कुण्डल को युद्ध से पहले इंद्र ने दान में मांगा और कर्ण ने सब कुछ जानते हुए भी इंद्र को इन्हें दे भी दिया। श्री कृष्ण ने जब कर्ण को कहा कि वे दुर्योधन को छोड़ पांडवों की ओर से युद्ध करें और इसके लिये उन्हें पूरा राज्य और द्रौपदी मिल जायेगी। लेकिन कर्ण ने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे दुर्योधन को धोखा नहीं दे सकते थे। इससे हमें सीख मिलती है कि विनम्रता और दया कैसे किसी इंसान को साधारण से महान बना सकते हैं और वचनबद्धता कैसे किसी पुरुष को महापुरुष बना सकती है।

दानवीर और आदर्ष पुत्र थे कर्ण

दानवीर और आदर्ष पुत्र थे कर्ण
4/4

जब कर्ण जीवन के अंतिम समय में थे तब सूर्य और इंद्र ने भिकारी का रूप लिया और कर्ण के सामने दान मांगे पहुंचे। इस पर कर्ण ने उनसे कहा की अब उनके पास देने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन भिखारी का रूप धरे सूर्य और इंद्र ने जब उनसे उनका सोने का दांत मांगा तो कर्ण ने तुरंत अपना दांत तोड़ कर उन्हें दे दिया। वहीं जब कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले कुंती कर्ण के पास सत्य बताने गयी और सबसे बड़े होने के चलते उन्हें पांडवों की ओर से युद्ध करने और युद्ध के बाद राजा बनने को कहा तो कर्ण ने कहा कि वे अपने दोस्त दुर्योधन को धोखा नहीं दे सकते। लेकिन कर्ण ने कुंती को वचन किया कि वे युद्ध में केवल अर्जुन का ही वध करेंगे।

Disclaimer