मछलियां

मछलियां यूं तो अच्छी वसा और प्रोटीन से भरपूर होती हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ मछली खाने की सलाह देते हैं। मछली में वसा और प्रोटीन होने के साथ साथ हृदय सम्बंधी बीमारी से लड़ने की क्षमता भी होती है। यही नहीं मछलियां दिमाग तेज करती है और स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाए रखती है। आप बिना झिझक यह कह सकते हैं कि मछलियां हमारे स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। लेकिन यदि आप मछली को मर्करी, एंटीबायोटिक और हानिकारक रसायन से संसर्गित करते हैं तो इसकी सभी खूबियां बुराइयों में बदल जाती है। अतः स्वस्थ रहने के लिए नीचे दी गई सूची का इस्तेमाल करें ताकि आपको पता चले कि कौन कौन सी मछली आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।
आयातित कैटफिश और फाम्र्ड ईल

आयातित कैटफिश में तमाम ऐसे एंटीबायोटिक मिलाए जाते हैं जो खाने में डालना मना है। अतः आयातित कैटफिश का इस्तेमाल खाने के लिए कतई नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह फाम्र्ड ईल भी है। फाम्र्ड ईल में मर्करी की मात्रा अत्यधिक डाली जाती है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि पारा यानी मर्करी हमारे स्वास्थ्य के लिए नकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं। सो, यदि आप फिट रहने को तरजीह देते हैं तो जरूरी है कि आयातित कैटफिश के साथ साथ फाम्र्ड ईल से भी दूरी बनाए रखें।
किंग मैकरल और ओरेंज रफी

किंग मैकरल एक किस्म की छोटी समुद्री मछलियां है। माना यह जाता है कि समुद्री मछलियां हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकर है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। किंग मैकरल में मर्करी की मात्रा बहुत ज्यादा पायी जाती है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ किंग मैकरल से दूर रहने की सलाह देते हैं। इसी तरह ओरेंज रफी भी इसी सूची में शुमार है। इसमें भी भी मर्करी की मात्रा अत्यधिक पायी जाती है जो कि स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है। यही नहीं ओरेंज मछलियां ओवरफिश्ड भी होती हैं।
चीलियन सी बास और शार्क

जहां एक ओर चीलियन सी बास भी मर्करी का बेहतरीन स्रोत माना जाता है यानी मनुष्य स्वास्थ्य के लिए चीलियन सी बास किसी भी मायने में स्वास्थ्यवर्धक नहीं है। चीलियन सी बास सिर्फ मर्करी से ही भरा हुआ नहीं है वरन यह ओवफिश्ड भी होती है, वहीं दूसरी ओर शार्क को भी विशेषज्ञ न खाने की सलाह देते हैं। हालांकि इस मछली को पकड़ना किसी चुनौती से कम नहीं माना जाता है। लेकिन सच्चाई यही है कि शार्क खाने के लिहाज से कतई सही नहीं है। यह मछली भी अन्य हानिकाकर मछलियों की तरह मर्करी से भरपूर है। शार्क खाना काफी हद तक समुद्री इको सिस्टम को भी प्रभावित कर सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि समुद्र में शार्क की कमी होगी तो जिन मछलियों को शार्क खाती हैं मसलन जेली फिश और काउनोस रेस संख्या में बढ़ जाएंगी। जिन मछलियों को जेली फिश खाती हैं, उनकी संख्या कम हो जाएगी। नतीजतन समुद्री इकोसिस्टम पूरी तरह से हिल जाएगा। यही कारण है कि विशेषज्ञ शार्क को खाने से मना करते हैं।
आयातित और स्वार्डफिश

विशेषज्ञों के मुताबिक आयातित झींगा से भी दूरी बनाए रखना हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित माना जाता है। असल में आयातित झींगा में एंटीबायोटिक के साथ साथ रासायनिक अवशेष भी पाए जाते हैं। इसके अलावा स्वार्डफिश भी तमाम बड़ी प्रजातियों की माफिक मर्करी से भरपूर है। यही कारण है कि स्वार्डफिश को भी खाने से मना किया जाता है। सो, झींगा और स्वार्डफिश दोनों ही स्वास्थ्य के लिए सही नहीं माने जाते।
टाइलफिश और ट्यूना मछली -

टाइलफिश की विभिन्न प्रजातियां पायी जाती हैं। बावजूद इसके विशेषज्ञ महिलाओं और बच्चों को टाइलफिश नहीं खाने की सलाह देते हैं। दरअसल यह महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। इसके इतर ट्यूना मछलियों के खाने के नियम जरा पेचिदा है। अल्बाकोर ट्यूना में कम मात्रा में मर्करी पायी जाती है। अतः सीमित मात्रा में इसे खाया जा सकता है। यही नियम ट्यूना स्टीक्स पर भी लागू होता है। लेकिन यदि आप इसके स्वाद के खासा दीवाने नहीं हैं तो इससे दूर रहने में ही भलाई है।