वस्कुलर डिजीज

वस्कुलर डिजीज से लड़ने के लिए सदियों से जोंक के लार का इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल जोंक के लार में सौ से ज्यादा बायोएक्टिव तत्व होते हैं जो कि वस्कुलर डिजीज के लिए लाभकर है। हिरुडिन इनमें से एक तत्व है। हिरुडिन एंटीकोग्यूलेशन एजेंट की तरह काम करता है। कैलिन भी जोंक के लार में पाया जाने वाला तत्व है। यह रक्त को गाढ़ा करने में मदद करता है। बहरहाल जोंक के लार में ऐसे तत्व भी होते हैं जो हमारे रक्त प्रवाह को बेहतर करते हैं जिससे हमारे स्वास्थ्य अच्छा रहता है। जिन वस्कुलर डिजीज मरीजों पर जोंक थैरेपी का इस्तेमाल किया जाात है, वे आसानी से इसके लिए स्वास्थ्यलाभ कर पाते हैं।Image Source-Getty
कार्डियोवस्कुल डिजीज

20वीं सदी से ही कार्डियोवस्कुल डिजीज से लड़ने के लिए जोंक थैरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल जोंक के लार में पाया जाने वाला हिरुडिन एंजाइम कार्डियोवस्कुलर डिजीज के लिए लाभकर है। जैसा कि पहले ही जिक्र किया गया है इसमें एंटीकोग्यूलेशन एजेंट होते हैं जो कि इस बीमारी के लिए प्रभावशाली होते हैं। इसके अलावा चिकित्सक जोंक थैरेपी हृदय सम्बंधी बीमारियों से जुड़े मरीजों के लिए भी सलाह स्वरूप देते हैं।Image Source-Getty
गंजेपन को दूर करना

जोंक थेरेपी रक्तसंचार बेहतर करने के लिए भी जाना जाता है। यही कारण है कि जोंक थैरेपी को सिर पर जहां बाल कम है, जैसे स्थान पर लगाया जाए तो वहां बाल आने की उम्मीद बढ़ जाती है। दरअसल जोंक थैरेपी से शरीर में पौष्टिकता बढ़ती जो बालों के लिए आवश्यक है। यही नहीं यह बालों को जड़ों से मजबूत करते हैं जिससे बालों को उगने में आसानी होती है। जो लोग डैंड्रफ या फंगल संक्रमण के कारण गंजेपन से जूझ रहे हैं, उनके लिए जोंक थैरेपी एक रामबाण इलाज है। जोंक का लार फंगल संक्रमण को खत्म करने में मदद करता है।Image Source-Getty
अर्थराइटिस

समूचे विश्व में जोंक की संभवतः 600 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं। लेकिन इनमंे से महज 15 जोंक की प्रजातियां ही ऐसी हैं जो चिकित्सकीय जगत में इस्तेमाल की जाती है। ये कभी अर्थराइटिस के लिए इस्तेमाल की जाती हैं तो कभी अन्य बीामरियों को खत्म करने में मदद करती हैं। अर्थराइटिस को ठीक करने के जोंक थैरेपी एक सहज और आसान तरीका है। इसका डंक मच्छर के काटने के समान ही लगता है। जोंक के लार में ऐसे तत्व होते हैं जो जलन और जोड़ों के दर्द को कम करने में लाभकर है। चिकित्सकीय जोक मरीज के शरीर में तकरीबन एक घंटे तक चिपके रहते हैं। प्रक्रिया पूरी होने के बाद मरीज रिलैक्स महसूस करता है। जोंक हटाने के बाद अंग विशेष को साफ किया जाता है। जोंक थैरेपी सामान्यततः 6 से 8 माह में दोहराया जाता है। इसके अलावा यह मरीज की स्थिति से भी तय होता है कि यह थैरेपी उस पर कितनी बार इस्तेमाल की जाए।Image Source-Getty
डायबिटीज

जोंक के लार में पाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण तत्व है हिरुडिन। यह तत्व रक्त में थक्के जमने नहीं देता। जबकि डायबिटीज के मरीजों का रक्त गाढ़ा होता है जिससे रक्त में थक्के जमने की आशंका बढ़ जाती है। अतः हिरुडिन उनके लिए बेहद जरूरी तत्व है। रक्त में थक्के जमने से या फिर इससे जुड़ी अन्य समस्याओं से मरीज की मृत्यु तक हो सकती है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि डायबिटीज के मरीजों के लिए जोंक थैरेपी कितनी कारगर हो सकती है। यही नहीं हिरुडिन में रक्त को फीका करने की क्षमता भी होती है मतलब साफ है कि इसके जरिये रक्त के थक्के जमने की आशंका में गिरावट आती है जिससे शरीर में रक्त प्रवाह सहजता से हो पाता है। साथ ही हृदय पर इसका कम प्रभाव पड़ता है।Image Source-Getty