
कई घरों में ऐसा होता है कि जब घर में मेहमान आते हैं तो बच्चे शैतानी ज्यादा करते हैं। ऐसे में माता-पिता भी बच्चों को उस समय डांट नहीं पाते। लेकिन कई बार बच्चों की शैतानियां रिश्तेदारों के सामने नजर झुकाने का सबब बन जाती हैं। माइंडफुल टीएमएस जीके2 में क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक प्रज्ञा मलिक का कहना है कि किसी भी बच्चे के लिए घर एक प्राइमरी स्कूल होता है। जहां से सोशल इंटरेक्शन शुरू होता है। आज के समय में बच्चों के लिए केवल स्कूली पढ़ाई जरूरी नहीं है बल्कि इंटेलिजेंस क्वॉन्टेंट (IQ), सोशल क्वान्टेंट ( SQ), इमोशनल क्वॉन्टेंट (EQ) भी जरूरी है। बच्चों का इमोशनल और सोशल क्वान्टेंट घर से ही विकसित होना शुरू होता है। मनोवैज्ञानिक प्रज्ञा मलिक से जानते हैं ऐसी कुछ 9 टेक्निक्स जिनसे आप अपने बच्चे में अच्छी आदतें डाल सकते हैं।
ईमानदारी

बच्चों को ईमानदारी सिखाने से उनमें क्षमता बढ़ती है। ऐसे बच्चे अच्छे फैसले ले पाते हैं। अगर उन्हें बचपन से सिखाया जाता है कि झूठ बोलना ठीक नहीं है, अपना काम ईमानदारी से करो। तो ऐसे बच्चों में बचपन से ऐसे विचार डालें जाते हैं, जिस वजह से उन्हें कभी झूठ बोलने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
बड़ों की बात मानना
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घर या समाज के नियम मानना जरूरी है। यह बात बच्चों को समझानी जरूरी है। ये नियम क्यों जरूरी हैं, यह बच्चों को जरूर बताएं। ताकि वे आपसे बहस न करें। आपकी बात मान लें। बड़ों की बात मानने से बच्चों में सुरक्षा का भाव आता है। इसे वेलबींग फीलिंग भी कहा जाता है।
नमस्ते बोलना

किसी अतिथि के आने पर उसे नमस्ते बोलना बच्चों में अच्छी आदत को दिखाता है। नमस्ते बोलकर वह रिश्तेदारों से संवाद शुरू कर सकता है। इसे बेसिक कॉन्फीडेंस स्किल बोलते हैं। बच्चे में दूसरों से बात करने की समझ विकसित होती है। प्रार्थना करने से बच्चे में सकारात्मक विचार भी पनपते हैं। साथ ही ध्यान की क्षमता भी बढ़ती है। नकारात्मक विचार भी दूर होते हैं। बड़ों के सामने सिर झुकाकर नमस्ते करने से बच्चे का इंप्रेशन दूसरों के सामने अच्छा पड़ता है।
थैंक्यू या सॉरी बोलना

थैंक्यू या सॉरी बोलना इमोशनल क्वान्टेंट को डेवलेप करने का सबसे आसान तरीका होता है। जिसमें हम बच्चे को इमोशनली मैच्योर बनाते हैं। इससे हम बच्चों को सिखाते हैं कि दूसरों का सम्मान कैसे करना है।
दूसरों की मदद करना

छोटा हो या बड़ा, सभी की मदद कराना सिखाकर आप बच्चों में अच्छी आदत डाल सकते हैं। इससे बच्चे रिलेशनशिप भी बिल्डअप करता है। रिलेशनशिप को मेंटेन करना भी सिखता है। इससे बच्चे में आत्मिश्वास भी आता है। साथ ही उसमें नई सोच भी विकसित बनती है।
समय की कद्र करना

बच्चों को समय के साथ काम करना सिखाया जाता है। जिसमें माता-पिता बच्चों को सिखा सकते हैं कि अगर 9 बजे मेहमान आने वाले हैं तो उसे 8 बजे तक अनपा होमवर्क खत्म कर लेना है, ताकि वह समय के साथ उनके साथ भी रह पाए। ऐसे समय का प्रबंधन करने से बच्चे आगे भी समय के साथ चलते हैं। ऐसे बच्चे समय से हार नहीं मानते। अगर बच्चा समय के साथ काम करता है तो वह उस काम में भी अच्छा होगा।
शेयरिंग

बच्चों को शेयरिंग सिखाना चाहिए। इससे बच्चे दूसरों की भी कद्र करना जानते हैं। इसे करने से रिश्ते में मजबूती आती है और बच्चे में भी एहसास कराना होता है कि कोई चीज सिर्फ किसी एक के लिए नहीं है, बल्कि सभी के लिए है। साथ ही वह रिश्तों की कद्र करना जानता है।
धैर्यशील बनाएं

हर चीज जल्दीबाजी में करने से क्या दिक्कत होती है, यह बच्चों को बताना चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि बच्चों को सही और गलत का अंतर बताएं। इससे बच्चे जिद्दी नहीं होते। ऐसे में बच्चे किसी चीज की वैल्यू भी समझते हैं।
बड़ों से बात करना सिखाएं

बच्चों को सिखाएं कि बड़ों से कैसे बात करनी है। इससे बच्चे को यह समझ आता है कि किस इंसान से कैसे शब्दों से बात करनी है। इस तरह की टेक्निक से बच्चे इंटरेक्शन करना सीखते हैं। इससे बच्चों में आत्मविश्वास बनता है।