मेलानोमा के बारे में अनजान तथ्य
आपने मेलानोमा के बारे में सुना होगा, आपको मालूम होगा कि गोरे रंग वाले लोगों को यह बीमारी होने का खतरा अधिक होता है। लेकिन शायद आप इससे जुड़ी कई अन्य बातें न जानते हों।

मेलानोमा के बारे में अनजान तथ्य
आपने मेलानोमा के बारे में सुना होगा, लेकिन संभव है कि आप इसके बारे में सब कुछ न जानते हों। स्किन कैंसर जागरुकता महीने में हम आपको मेलानोमा यानी स्किन कैंसर से जुड़ी ऐसी ये बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में शायद आपने पहले न सुना हो। आप यही जानते और मानते हैं कि जिन लोगों की त्वचा का रंग साफ होता है और वे सनस्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करते, उन्हें यह बीमारी होने का खतरा अधिक होता है।

सबसे अधिक प्रचलित कैंसर !
मेलानोमा सबसे कम प्रचलित कैंसर हो सकता है। लेकिन, अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्माटॉलॉजी (एएडी) के अनुसार नवयुवाओं यानी 25 से 29 वर्ष की आयु के व्यस्कों में यह पाया जाने वाला यह कैंसर का सबसे सामान्य प्रकार है। और इसके साथ ही 15 से 29 वर्ष की आयु के लोगों में होने वाला यह दूसरा सबसे सामान्य कैंसर है। जानकारों का मानना है कि इसका बड़ा कारण टैनिंग बेड का इस्तेमाल हो सकता है।

यह सभी को प्रभावित करता है
यह बात सही है कि जिन लोगों की त्वचा में अधिक पिगमेंट होते हैं, उन्हें स्किन कैंसर होने का खतरा कम होता है। क्योंकि उनकी त्वचा पर अधिक सुरक्षा होती है। लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं कि वे सनस्क्रीन का इस्तेमाल न करें। बेसल सेल और क्वूआमोस सेल कैंसर स्किन कैंसर के सबसे सामान्य प्रकार है। और इनका सूरज की किरणों में समय बिताने से सीधा-सीधा संबंध है। हालांकि गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों में कैंसर होने का खतरा सबसे कम होता है। लेकिन, अगर उन्हें कैंसर हो भी जाए, तो सामान्यत: वह हथेलियों और तलवों में होता है। स्किन कैंसर से बचने के लिए रोज सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। यह बहुत जरूरी है। इसे अपनी आदत बनायें, वैसे ही जैसे आप दांतों में ब्रश करते हैं।

पहले से मौजूद तिल में नहीं होता
कुछ लोग मानते हैं कि तिल का बिगड़ा रूप मेलानोमा में बदल जाता है, जबकि कुछ विशेषज्ञों की राय इससे अलग है। विशेषज्ञ यह मानते हैं कि आपके शरीर पर कई तिल हो सकते हैं। संभव है कि उनमें कोई परेशानी न हो, लेकिन यह भी संभव है कि आपको स्किन कैंसर किसी और हिस्से में हो जाए।

कम तिल में भी संभव
जी हां, जरूरी नहीं कि स्किन कैंसर केवल उन्हीं लोगों को हो, जिन्हें तिल है। मेलानोमा के संभावित लक्षणों में तिल के आकार, रंग और रूप में बदलाव होना भी शामिल होता है। यदि आपके साथ ऐसा हो रहा है, तो इस बात की आशंका काफी अधिक है कि आप मेलानोमा से पीडि़त हैं। लेकिन, ऐसे लोग जिन्हें बहुत अधिक तिल न हों उन्हें भी स्किन कैंसर होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

हो सकता है तिल न हों
मेलानोमा से पीडि़त लोगों को तिल हो ही, यह जरूरी नहीं। यह हाथ-पैर के नाखूनों के नीचे स्थित छोटी सी खरोंज सा भी नजर आ सकता है। अकसर लोग इस खरोंच को नजरअंदाज कर देते हैं। वे इसे कैंसर नहीं मानते। और फिर समय पर इलाज न करवाने के कारण यह बीमारी शरीर के अन्य हिस्सों जैसे फेफड़ों और मस्तिष्क तक को प्रभावित कर सकती है। कुछ दुर्लभ मामलों में मेलानोमा आंखों को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसे लोग जिन्हें एक आंख से कम दिखाई देता हो या उस पर दबाव महसूस होता है, उन्हें मेलानोमा की जांच करवा लेनी चाहिए।

सूरज के सामने आना जरूरी नहीं
ऐसा माना जाता है कि शरीर का जो हिस्सा सूरज की रोशनी के अधिक संपर्क में रहता है, उसे ही स्किन कैंसर होने की आशंका अधिक होती है। लेकिन, यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। बेशक, सूरज की रोशनी में अधिक संपर्क में रहने वाले हिस्सों को कैंसर होने का खतरा अधिक होता है, लेकिन उंगलियां, पंजे, बगल, कूल्हे और यहां तक कि जनानांग भी कैंसर से प्रभावित हो सकते हैं।

यह स्किन कैंसर का सबसे खतरनाक रूप है
बेसल और क्यूआमॉस सेल कैंसर मेलानोमा के मुकाबले अधिक प्रचलित हैं। इनमें मरीज के बचने की संभावना अधिक होती है। एएडी के मुताबिक अमेरिका में हर घण्टे मेलानोमा से एक मौत होती है। एक अनुमान के अनुसार सिर्फ अमेरिका में 2014 इस बीमारी से 9700 लोगों के अपनी जान गंवाने की आशंका है।

सही समय पर इलाज बचाये जान
यदि इस बीमारी का समय रहते पता चल जाए, तो इसका इलाज करना आसान होता है। एएडी के मुताबिक यदि इस बीमारी को स्टेज तीन तक पहुंचने से पहले रोक लिया जाए, तो 98 फीसदी मरीजों को ठीक किया जा सकता है।

यह केवल धूप में अधिक समय बिताने वालों को ही नहीं होता
ऐसे लोग जिनका इस बीमारी का पारिवारिक इतिहास है, उन्हें यह बीमारी होने की आशंका अधिक होती है। शोध में यह बात साबित हो चुकी है कि जिन लोगों के नजदीकी रिश्तेदार, जैसे माता-पितप, भाई अथवा बहन को यह बीमारी हो, तो उन्हें यह बीमारी होने का खतरा 10 से 15 फीसदी तक बढ़ जाता है। इसलिए किसी भी कैंसर की तरह इसमें भी पारिवारिक चिकित्सीय इतिहास जानना जरूरी होता है।
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