आपको बीमार बना सकती है डॉक्टर की बातें

अगर आपका डॉक्‍टर आपसे शिष्‍टता से मिले, तो आप जल्‍द स्‍वस्‍थ हो सकते हैं। लेकिन अगर डॉक्‍टर का बर्ताव आपके प्रति अच्‍छा नहीं हो तो आपकी तबीयत बिगड़ भी सकती है। ऐसा ही कुछ बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के डिस्कवरी प्रोग्राम के प्रेजेंटर ज्यॉफ वाट्स ने घुटनों की समस्या के बारे में डॉक्टर मार्क पोर्टर से बात करके महसूस किया। इस बातचीत में डॉक्‍टर की बातों से मरीज के लिए केवल नेगेटिव बातें ही निकलीं।डॉक्‍टर से बात करके मरीज इतना डर गया क्‍योंकि डॉक्‍टर ने उनसे कहा कि घुटने ऑस्टियो-आर्थराइटिस के चलते घिस जाते हैं और दवाओं से कुछ फायदा तो होता है लेकिन इससे आंतों को नुकसान होता है। इसके बाद वाट्स इतना परेशान हो गया कि वाट्स ने ये जानने की कोशिश की कि ऐसा होने का पता किन शारीरिक लक्षणों से लगता है?
कब बढ़ती है चिंता?

घुटने को लेकर चिंता तब ज्‍यादा बढ़ती है जब डॉक्‍टर समस्‍या के बारे में इस तरह से बात करते हैं और मरीज को लगने लगता है कि ये बर्बाद हो चुके है। प्रयोगों से यह भी पता चला है कि लोगों को किसी भी साइड इफेक्ट के बारे में चेतावनी देने से मुश्किल और बढ़ जाती है। उन्हें उल्टी, थकान, सिर दर्द और दस्त की शिकायत हो सकती है, भले उन्हें बाद में ऐसी दवाईयां दी जाएं, जिनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।
जादुई असर का मंत्र

हालांकि इनमें अच्छी खबर ये है कि दिमाग और शरीर का कनेक्शन और डॉक्टरों का अच्छा व्यवहार इलाज में जादुई असर डाल सकता है। एक अध्ययन के अनुसार डिप्रेशन से पीड़ित मरीज को डॉक्टर के सहानुभूति पूर्वक दवा देने पर बेहतर परिणाम मिलते हैं। जबकि ज्यादा एक्टिव दवाई भी डॉक्टर अगर तटस्थ भाव से देता है, तो उसका असर कम होता है।एक्सेटर मेडिकल स्कूल की पॉल डायपे कहती हैं, 'स्व-उपचार एक वास्तविकता है। हम सबमें ऐसी क्षमता होती है कि जिससे कई स्थितियों में हम खुद का उपचार कर सकते हैं। यह दूसरे लोगों से बातचीत करने से भी सक्रिय होता है!'
हर शब्द के मायने

पोर्टर के अनुसार इलाज के दौरान मरीजों के साथ सहानुभूति पूर्वक बात करने से मरीज पर बेहतर असर पड़ता है। इलाज के बारे में बताते समय अगर चिकित्सक दवाईयों के पॉजिटिव इफेक्ट के बारे में बताए, निगेटिव साइड इफेक्ट को कमतर करके बताए तो बेहतर होता है।हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टेड कापटचूक कहते हैं, 'हर शब्द मायने रखता है, हर नजर मायने रखती है।' कापटचूक के अनुसार, ये अवसर जैसा है और इसे खोना नहीं चाहिए। कापटचूक कहते हैं, 'इससे डॉक्टर और नर्स पर बोझ बढ़ेगा, ऐसा मैं नहीं मानता। मेरे ख्याल से उन्हें इसे इलाज का हिस्सा बनाना चाहिए। स्वास्थ्य सेवा में ऐसी जागरूकता की शुरुआत होनी बाकी है।'Image Source : Getty