हेवी वेट लिफ्टिंग से पहले इन 4 चीजों में निपुण होना है जरूरी
जब भी आप वेट लिफ्टिंग करें तो इससे पहले वेट लिफ्टिंग के इन चार सिद्धांतो को ज़रूर दिमाग में रखें। तो चलिए जानें क्या हैं हेवी वेट लिफ्टिंग से पहले सीखने वाली ज़रूरी चीज़ें।

जिम में दो तरह के वेट लिफ्तर होते हैं, तजुर्बेकार (veterans) और ईगो लिफ्टर (ego lifters). जहां एक ओर वेटरन्स वेट ट्फ्टिंग की मूल तकनीकों के महिर होते हुए धीरे-धीरे वज़न बढ़ाते हैं, ईगो लिफ्टर वेट ट्फ्टिंग की मूल तकनीकों तरजीह ना देते हुए सिर्फ ज्यादा वज़न उठाने को आतुर रहते हैं। इसलिए वेटरन्स मासल्स का साइज़ बढ़ाने में सफल रहते हैं और ईगो लिफ्टर चोटों की वजह से अच्छा प्रदर्षन नहीं कर पाते हैं। मसल्स बनाने का ये मतलब कतई नहीं है कि बेतुके ढंग से जितना ज्यादा हो सके, वज़न उठाया जाए। बल्कि वास्तव में यह वज़न उठाने के विभिन्न सिद्धांतों का एक संतुलित समायोजन होता है। तो जब भी आप वेट लिफ्टिंग करें तो इससे पहले वेट लिफ्टिंग के इन चार सिद्धांतो को ज़रूर दिमाग में रखें। तो चलिए जानें क्या हैं हेवी वेट लिफ्टिंग से पहले सीखने वाली ज़रूरी चीज़ें। -
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इस बात में कोई शक नहीं कि मसल ग्रोथ के मामले में जिम्मेदार कारकों की सूची में फॉर्म (खड़े होने व वेट लिफ्टिंग करते समय स्थिति) पहले स्थान पर आती है। अगर फॉर्म ही सही नहीं होगी तो वज़न बढ़ाने का तो मतलब ही पैदा नहीं होता है। उदाहरण के लिए बाइसेप कर्ल करते हुए अगर बहुत ज्यादा वज़न लगाया जाए तो यह कंधे के जोड़ पर अधिक दबाव डालता है न कि बाजु के ऊपरी हिस्से पर। तो ऐसे में कंधे पर ही ज्यादा प्रभाव पड़ता है न कि बाजुओं की मांसपेशियों पर। तो ईगो (अहम) को किनार करिए और वज़न को कम कीजिए और फॉर्म को सही करते हुए सही मांसपेशियों पर काम कीजिए।
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जिस गति से वेट लिफ्टिंग के रिपिटेशन किए जाते हैं, वह भी मासंपेशियों पर बहुत असर डालता है। इसलिए सलाह भी दी जाती है कि पोज़िटिव मूवमेंट (जब बेंच प्रेस पर बार को ऊपर ले जाया जाता है) को एक सेकंड में पूरा करना चाहिए, जबकि नेगेटिव मूवमेंट (जब बार को नीचे लाया जाता है) को करने में तीन सेंकेड तक लेने चाहिए। इस प्रकार मसल्स पर बेहतर काम हो पाता है।
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वॉल्यूम अर्थात मात्रा मसल्स पर किए गए काम से सीधी तौर पर संबंधित होती है। तीन बातें वॉल्यूम के लिए योगदान करती हैं, पहली एक सेट में रिपिटेशन, दूसरी एक एकेसरसाइज में सेट की संख्या, प्रत्येक मसल ग्रुप के हिसाब से एक्सरसाइज की संख्या। इसलिए इसका निर्धारण सोच समझ कर करें।
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एक्सरसाइज के बीच का आराम का समय हम जितना कम रखते हैं, मसल्स पर उतना ही ज्यादा लोड पड़ता है। सेट्स के बीच आराम का समय कम रखने से हार्ट रेट तेज़ हो जाता है, जिससे वसा ऑक्सीकरण में सहायता होती है और यह एक एक अच्छी बात है।
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