कपालभाति प्राणायाम

इसके लिए पालथी लगाकर सीधे बैठें, आंखें बंदकर हाथों को ज्ञान मुद्रा में रख लें। ध्यान को सांस पर लाकर सांस की गति को अनुभव करें और अब इस क्रिया को शुरू करें। इसके लिए पेट के निचले हिस्से को अंदर की ओर खींचे व नाक से सांस को बल के साथ बाहर फेंके। यह प्रक्रिया बार-बार इसी प्रकार तब तक करते जाएं जब तक थकान न लगे। फिर पूरी सांस बाहर निकाल दें और सांस को सामान्य करके आराम से बैठ जाएं। कपालभाति के बाद मन शांत, सांस धीमी व शरीर स्थिर हो जाता है। इससे खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर रक्त शुद्ध होने लगता है।Image Source-Getty
अनुलोम-विलोम प्राणायाम

अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांसखींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र सेसांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्रसे सांस को बाहर निकालते हैं। इस क्रिया को पहले 3 मिनट तक करे और बाद में इसका अभ्यास 10 मिनट तक करे। इस प्रणायाम को आप खुली हवा में बैठकर करे।रोज़ाना इस योग को करने से फेफड़े शक्तिशाली बनते है।इससे नाडिया शुद्ध होती है और शरीर स्वस्थ, कांतिमय और शक्तिशाली बनता है।Image Source-Getty
सूर्यभेदी प्राणायाम

सुखासन या पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएं। आंखें बंद रखें। बाएं हाथ को बाएं घुटने पर ष्ज्ञान मुद्रा में रखें, फिर दाएं हाथ की अनामिका से बाएं नासिका के छिद्र को दबाकर बंद करें। फिर दाई नासिका से जोर से श्वास अन्दर लें। अपनी क्षमता अनुसार श्वास रोकने का प्रयास करें। फिर दाएं नासिका के छिद्र को बन्द कर बाएं नासिका छिद्र से श्वास निकाले। प्रारम्भ में इसके कम से कम 10 चक्र करें और धीरे-धीरे जब आप अभ्यस्त हो जाएं तो इसके चक्र बढ़ा लें। शुरू-शुरू में अभ्यासी इस प्राणायाम को करते वक्त सिर्फ दाई नासिका से सांस लें और बाई नासिका से निकाले। सांस रोकने का अभ्यास न करें। इस प्राणायाम के अभ्यास से दमा, वात, कफ रोगों का नाश होता है। Image Source-Getty
बाह्य प्राणायाम

सामान्य स्थिति में बैठकर गहरी सांस लें। अब पूरी सांस को तीन बार रोकते हुए बाहर छोड़ें। शरीर से हवा पुश करने के लिए अपने पेट और डायाफ्राम का इस्तेमाल करें। लेकिन, ध्यान रखें श्वांस छोड़ना आपके लिए किसी भी स्थिति में असहज न रहे। अपनी ठोडी को अपने सीने से स्पर्श करें और अपने पेट को पूरी तरह से अंदर और थोड़ा ऊपर की ओर खींच लें।अपनी क्षमता के हिसाब से इस स्थिति में बैठे रहें। फिर अपनी ठोडी धीरे से ऊपर उठाएं और धीरे-धीरे में सांस लें। फेफड़ों को पूरी तरह से हवा से भर लें। तीन बार इस प्रक्रिया को दोहराएं।Image Source-Getty
महाप्राण ध्वनि

हवा को संस्कृत में प्राण कहते हैं । इसी आधार पर कम हवा से उच्चरित ध्वनि ‘अल्पप्राण’ और अधिक हवा से उतपन्न ध्वनि ‘महाप्राण’ कही जाती है। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण महाप्राण है । इसमें विसर्ग की तरह ‘ह’ की ध्वनि सुनाई पड़ती है । सभी उष्म वर्ण महाप्राण हैं। ‘हम्म्म्म’ मंत्र का उच्चारण करते हुए गहरी और लंबी श्वास लें और बाहर छोड़ें। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए दस से पंद्रह मिनट तक यह आसन करें।Image Source-Getty