क्या इंफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार है एसटीडीज

संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क स्थापित करने पर एक व्यक्ति से दूसरे को होने वाले संक्रमण को एसटीडीज या यौन संचारित रोग कहते है। 15 से 24 वर्ष की आयु के युवा वर्ग के इनसे ग्रस्त होने का अधिक जोखिम होता हैं।

जानकारी के अभाव के कारण एसटीडीज का संक्रमण दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। एसटीडीज से जुड़ें रोगों का पूरी तरह से इलाज न होने गंभीर परिणाम हो सकते हैं, विशेषकर महिलाओं में। ये रोग सरवाइकल कैंसर, नपुंसकता, फोड़े और अन्य कई गंभीर समस्याओं का कारण भी बन सकता है।

यूरीन और सेक्स करते समय दर्द, सेक्स करने के बाद खून आना, योनि से पीले रंग का स्राव और तेज बदबू, योनि के आस-पास बालों में खुजली, गुदा से स्राव और पेट में दर्द आदि। महिलाओं में एसटीडीज के आम लक्षण है। पेशाब या सेक्स करते समय दर्द, लिंग अथवा गुदा से स्राव, जननांगों या गुदा के आस-पास फोड़े, घाव और दाने और एक या दोनो ही अंडकोषो में दर्द पुरुषों में एसटीडी के आम लक्षण हैं।

यदि एसटीडी के कोई भी लक्षण नज़र आते हैं, तो इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए तुरन्त डाक्टर से मिलने एसटीडी क्लीनिक जाना चाहिए। समय पर इलाज होने पर अधिकांश एसटीडीज ठीक हो जाते हैं। लेकिन यदि इनका समय पर इलाज नहीं कराया जाएं तो बहुत से एसटीडीज इंफर्टिलिटी का कारण बन सकते है।

क्लैमाइडिया एक एसटीडी रोग है जो क्लैमाइडिया ट्रैकोमेटिस नामक जीवाणु से होता है। इस रोग से यूरीन नली, योनि या गर्भग्रीवा के आस-पास का क्षेत्र, गुदा या आंखों को संक्रमित कर सकता है। इसका इलाज आसान है लेकिन समय रहते यदि इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह इंफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है।

गोनोरिया, निसेरिया गोनोरीए नामक बैक्टीरिया से होता है। यह गले, मूत्र नली, योनि और गुदा को संक्रमित कर सकता है। अच्छी खबर यह है कि इसका भी आसानी से इलाज किया जा सकता है। लेकिन गोनोरिया का इलाज समय पर न होने पर इंफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है। गोनोरिया जब बढ़ता है तो डिंबवाही नलिकाओं में घाव कर देता है और डिंब के गर्भाशय में जाने वाले रास्ते को बंद कर देता है। जिससे कुछ समय बाद इस संक्रमण प्रजनन में असमर्थ बना देता है।

ट्राइकोमोनिएसिस एसटीडी को ‘ट्रिक’ के नाम से भी जाना जाता है। यह एसटीडी, महिलाओं और पुरुषों, दोनों को ही प्रभावित करता है लेकिन महिलाओं में इनके लक्षण दिखने की संभावना अधिक होती है। ट्रिक संक्रमण का इलाज आसानी से किया जा सकता है। लेकिन यदि महिलाओं का इलाज न कराया जाए तो कुछ मामलो में वह प्रजनन में असमर्थ हो सकती हैं।

रेट्रग्रेड इजैक्यूलेशन तब होता है, जबकि वीर्य मूत्राशय में पीछे की ओर जाने लगता है। यह स्थिति इजैक्यूलेशन के समय, पूरे वीर्य या उसके अंशिक भाग को मूत्राशय में पीछे की ओर जाने को बाध्य करता है। ऐसा होने पर वीर्य की एक बूंद भी लिंग के बाहर नहीं आती है। रेट्रग्रेड इजैक्यूलेशन से इंफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है लेकिन यह वीर्य के निर्माण या संभोग करने की क्षमता के खत्म नहीं करता है।

आमतौर पर एक्यूट एपिडिडिमिटिस अंडकोष और वृषण के एक तरफ लालिमा, गर्मी और सूजन का कारण बनता है। बार-बार संक्रमण और इलाज न करवाने की स्थिति में एक्यूट एपिडिडिमिटिस एसटीडीज होते है। यह संक्रमण शुक्राणु गतिशीलता और शुक्राणुओं की संख्या को नुकसान पहुंचाता है जिससे इंफर्टिलिटी की समस्या होती है।

बैक्टीरियल वेजिनोसिस जिसको बी वी भी कहते है। इस संक्रमण में योनि के जीवाणु का सामान्य बिगड़ जाता है और हानिकारक जीवाणु बढने लगते है। आमतौर पर इसका असर महिलाओं पर ज्यादा होता है। बी वी एसटीडीज का इलाज नहीं करवाने पर वैसे तो कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं होती लेकिन कई बार इससे इंफर्टिलिटी की समस्या हो जाती है।
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