"हम हैं कंधा जब लड़की दुखी होती है तो हमारे पास आती है"

तनु वेड्स मनु रिटर्न मूवी का ये डॉयलग तो आप सबको याद होगा ही। इस डॉयलॉग ने लड़कों की इस कैटेगरी को अच्छी तरह से डिफाइन कर दिया था। और इस डॉयलाग को सुनने के बाद हर किसी को लगा था कि वाकई में लड़कों की ऐसी भी कोई कैटगरी होती है। तो आइए जानते हैं कि क्या खासियत है इस कैटेगरी के लड़कों की। कहीं आप भी तो इस कैटेगरी में नही?
कंधा यानी बैकअप पार्टनर

कंधा शब्‍द का इस्‍तेमाल पहली बार तनु वेड्स मनु रिटर्न में सुनने को मिला था, लेकिन रिसर्च बताते हैं कि इस बात से ताल्‍लुक रखने वाले शब्‍द पहले भी थे जिन्‍हें हम बैकअप पार्टनर, स्टैंडबाई पार्टनर या फिर रिप्लेसमेंट पार्टनर। ये सारे नाम उन्‍हें दिए जाते हैं जो किसी का पार्टनर नही है बल्कि वह किसी पार्टनर के खाली जगह को भरने का काम करता है। जबकि ऐसे लोग भी लाइफ पार्टनर बनने की काबिलियत रखते है, लेकिन ऐसा नही हो पाता है।
बैकअप रिलेशनशिप

अक्सर ऐसा होता है कि करियर बनाने के चक्‍कर में कई लोग सही पार्टनर नही चुन पाते हैं वह एक के बाद एक कई लड़कियों को डेट तो करते हैं लेकिन उन्‍हें अपना नही बना पाते हैं। उनका रिलेशनशिप स्‍टेबल नही हो पाता है। और इसी में उनकी उम्र निकल जाती है। ऐसे में वह अपने ही किसी खास दोस्‍त में कंधा तलाशने लगते हैं। यानी एक बैकअप पार्टनर की तलाश करने लगते हैं।
कब होती है कंधे की जरूरत

आजकल के रिश्‍तों में तनाव असुरक्षा जैसी बातें आम हो गई हैं। इस वजह से लोगों में एकाकीपन भी बढ़ गया है ऐसी स्थिति में लोग पार्टनर की तलाश में रहते हैं, जिनसे वह अपनी बातें कह सकें। जरूरत पड़ने पर उनकी मदद ले सकें। ऐसे रिश्‍ते ज्‍यादातर जरूरत पर ही बनते हैं। हालांकि इसमें लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप की संभावना ज्यादा होती है।
दिल को देते हैं सुकून

कहीं न कहीं बैकअप पार्टनर भी दिल को सुकून देते हैं। कल क्‍या हो जाए यह किसी को पता नही होता है। जैसे लोग हर काम का विकल्‍प रखते हैं वैसे ही रिश्‍तों में भी विकल्‍प मौजूद रहता है। और इन रिश्‍तों में भी लव इंट्रेस्‍ट होना आम बात है, ये बात एक खुली किताब की तरह होती है। भले ही लोग एक्‍सेप्‍ट न करें। Image Source : Getty