नुकसानदेह भी हो सकता है सोशल मीडिया
सोशल मीडिया ने हमारी जिंदगी आसान बनायी है। लेकिन, इसके साथ ही इसकी लत के कई नुकसान भी हो सकते हैं। यह आपकी जिंदगी में कई परेशानियों का सबब भी बन सकता है।

सोशल मीडिया ने दूरियां पाटने का काम किया है। आप दूर बैठे अपने दोस्तों और परिवारजनों से पल में बात कर सकते हैं। अपडेट साझा कर सकते हैं। नये लोगों से बात कर सकते हैं। कितना कुछ कर सकते हैं। हालांकि, हमें इसके नुकसान भी हैं। यह हमें खुद से ही कहीं दूर कर देता है। हम सारा-सारा दिन नजरें गढ़ाये बस इस दुनिया से दूर किसी दूसरी दुनिया में खोये रहते हैं। आइये जानें सोशल मीडिया के ऐसे ही कुछ नुकसान।
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तकनीक के कारण लोगों तक पहुंच पहले से काफी आसान हो गयी है। लेकिन, इसका एक नुकसान यह भी है कि यह हमें अकेलेपन में डाल सकती है। सोशल मीडिया वेबसाइटों पर दुनिया भर की जानकारी भरी पड़ी होती है। और इन्हीं जानकारियों को खंगालने में हमारा काफी वक्त गुजर जाता है। तकनीक के कारण फौरन मैसेज भेजना भी पहले की अपेक्षा आसान हो गया है। आप फौरन दोस्तों के स्टेटस पर लाइक और कमेंट कर अपनी आभासी मौजूदगी दर्ज करा देते हैं। ऑनलाइन ज्यादा जुड़ने से हम असली दुनिया से दूर होते जा रहे हैं।
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सोशल मीडिया आपको कभी अकेला नहीं छोड़ता। आप भले ही किसी कतार में हों, लेकिन हमेशा फेसबुक खंगालने में लगे रहते हैं। नयी तस्वीर खींचते ही उसे इंटाग्राम पर अपलोड करते हैं। अपने साथी के साथ होते हुए भी आप ऑनलाइन दुनिया खंगालने में लगे रहते हैं। एक दूसरे की आंखों में आंखे डालने के बजाय आपकी नजरें ट्विटर पर होती हें। इसका क्या फायदा। सोशल मीडिया आपके निजी जीवन में बहुत अंदर तक प्रवेश कर चुका है। हमारे पास खुद के लिए वक्त नहीं होता। दूसरों के लिए वक्त निकालना तो बहुत दूर की बात है। हम कभी-कभी अकेले होने का सुकून खो देते हैं।
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आपके पास दोस्तों के कम और टेलीमार्केट से ज्यादा फोन आते हैं। व्हाट्सअप ने फोन करने की जरूरत को भी खत्म दिया है। एक दूसरे की पोस्ट को लाइक और शेयर करना ही 'जुड़े रहने' का नया तरीका है। हो सकता है कि संवाद के ये नये तरीके पहले की तुलना में ज्यादा आसान हों, लेकिन इससे रूबरू बैठकर बात करने की कला को काफी नुकसान पहुंचा है। किसी कला से कम नहीं अपनी बात दूसरे तक पहुंचाना। और जैसे-जैसे संवाद के लिए तकनीक पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे मुलाकात कर बात करना मुश्किल होता जा रहा है।
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सोशल मीडिया पर कितने दोस्त हैं आपके। 300, 400, हजार या फिर उससे भी ज्यादा। लेकिन, उनमें से कितनों से आप असल जिंदगी में वाकिफ हैं। कितनों से कभी मिले हैं आप। कितनों से फोन पर ही कभी बात हुई है। यकीन के साथ कहा जा सकता है कि इनकी संख्या आपके आभासी दोस्तों की आधी भी नहीं होगी। सोशल मीडिया ने दोस्ती की परिभाषा को ही हल्का कर दिया है। हम ऐसे लोगों के निजी जीवन के बारे में भी बहुत कुछ जानने लगते हैं, जिनसे शायद हम असल जीवन में कभी मिल भी न पायें। भावनायें की महत्ता बहुत कम हो गयी है इस सोशल मीडिया के दौर में । सोशल मीडिया हमें यह तो बता देता है कि आखिर हमारे 'दोस्त' क्या कर रहे हैं, लेकिन असल में वे कैसे इनसान है यह हम नहीं जान पाते।
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कितनी खुशी होती थी जब किसी दोस्त का फोन आता था। और दूर के किसी रिश्तेदार की पाती पढ़ते हुए आपके चेहरे के भाव लगातार बदलते रहते। हर लाइन के साथ होठों पर मुस्कान या आंखों में नमी तैर जाती। लेकिन, अब दोस्ती फोटो और स्टेटस पर कमेंट और लाइक तक सिमट कर रह गयी है। पहले प्यार होता था तो छुपछुपकर बातें होती थीं, अब रिलेशनशिप स्टेटस देखकर ही पता चल जाता है। और बदलते वक्त में यह स्टेटस भी बदलने में ज्यादा वक्त नहीं लेता। सोशल मीडिया ने अंतरंग रिश्तों और डेटिंग के मायने बदल दिये हैं। लाजमी सा हो गया है प्यार का खुल्लम-खुल्ला इजहार। भले ही प्यार न हो, लेकिन कई बार अपने एक्स को जलाने के लिए भी नये रिश्ते के बारे में जताया जाता है। यानी रिश्तों का आनंद नहीं रिश्तों की जलन ज्यादा मायने रखती है।
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फेसबुक पर लाइक करने को हम कुछ ज्यादा ही तवज्जो नहीं देते! लगातार लाइक बटन दबाते रहना किसी नशे से कम नहीं। सोशल मीडिया पर खुशी और सत्यापन वाली बात को ज्यादा पसंद करते हैं। हमारे भीतर सोशल मीडिया इस हद तक घुस जाता है कि हम जरा सी आहट होते ही फोन पर निकालकर देखते हैं कहीं कोई नया अपडेट तो नहीं आया। 2012 की हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में यह बात सामने आई कि स्वयं प्रकटीकरण का असर कोकीन और अन्य नशीली दवाओं जैसा ही होता है। दोनों ही चीजों से हमारे मस्तिष्क का समान हिस्सा सक्रिय होता है। इस बात को यूं ही खारिज मत कीजिये। एक प्रयोग करके देखिये। नियम बनाइये कि आप दिन में खास वक्त से ज्यादा फेसबुक इस्तेमाल नहीं करेंगे। और यकीन जानिये इसमें कामयाब होने की संभावना बहुत कम होगी। इन साइट्स को एडिक्शन के लिहाज से ही तैयार किया गया है।
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कितनी ही बार अपनी फीड को देखते हुए आपको अवसाद हो जाता है। अगर आपको किसी बात का दुख है तो लोगों को हंसते-मुस्कुराते देखकर आपको अवसाद हो जाता है। आप दुखी महसूस करने लग सकते हैं। और सोचिये शनिवार रात आप काम कर रहे हैं, और आपके दोस्त पार्टी की तस्वीर डाल रहे हैं, तो उस समय आपको कैसा लगता है। जाहिर सी बात है, आपको खुशी तो नहीं होगी। कई बार लोग इन सब बातों से खुद को कमतर मानने लगते हैं। जैसे-जैसे हम इस आभासी दुनिया की गिरफ्त में आते जाते हैं हम हकीकत से दूर होते हैं। हम उन कामों से दूर होने लगते हैं जो हमें खुशी देते हैं। अगर आपको भी ऐसा लगता है कि आपकी खुशी और गम आभासी दुनिया पर निर्भर हो चुका है, तो अपनी इस आदत से जल्द छुटकारा पाने के कदम उठायें।
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