काली या भूरी? जानें, आंखों का कौन का रंग है स्वस्थ शरीर का संकेत
आखें आपके दिल का ही नहीं सेहत का भी हाल बताती है। कभी ध्यान से देखिये इनमें आपको थके होने का पता चलेगा और दूसरी बीमारियों का भी, आइए हम आपको बताते हैं कैसे ये आपके सेहत के राज खोलती हैं।

सुबह उठकर आप फ्रेश फील नहीं करते, यही नहीं, आपको छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आ जाता है, तो यह लक्षण स्लीप सिंड्रोम के हैं। कई लोगों को नींद न आने से ऐसी दिक्कतें आने लगती हैं। रुटीन सही न रहना, चाय व कॉफी अधिक पीना, ज्यादा ऐल्कॉहॉल लेना, इंटरनेट, लेट नाइट पार्टी, सोने का समय फिक्स न रखना वगैरह से भी स्लीप डिसऑर्डर होता है। इन सबका पता आपकी आंखों से चल जाता है कि आप बीमार है या नहीं।
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रैपिड आई मूवमेंट ज्यादातर उन लोगों का होता है जिनमें धैर्य नहीं होता है। वे बहुत जल्दी निर्णय लेने मे भरोसा रखते है। शोध बताती है कि रैपिड आई मूवमेंट और नर्वस सिस्टम के बीच एक पारस्परिक संबंध होता है। ये फैसला करते समय आखों के घूमाव-फिराव मे स्थिरता लाते है।
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प्लाडिंग आई मूवमेंट में आखों का संबंध दिमाग से कम होता है। अक्सर हम किताब पढ़ते समय उसे एक सिरे से दूसरे सिरे तक पढ़ते जाते है पर हमारा दिमाग उसको स्टोर नहीं करता है। ना हीं दिमाग उसका आकलन करने की कोशिश करता है। इसे प्लाडिंग आई मूवमेंट कहा जाता है। सामान्यत हम जब कुछ पढ़ते है तो दिमाग उसका आकलन कर उसे समझने मे आसान बनाता है।
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स्लो आई मूवमेंट थकान का संकेत होता है। जो लोग रांउड द क्लॉक काम करते है अक्सर उनकी आखों का मूवमेंट धीरे होता है। दरअसल ये थकान का असर होता है। शरीर को ठीक से आराम ना मिल पाने के कारण उसका कार्य प्रभावित होने लगता है।
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गहरी नींद यानी नॉन-पिड आई मूवमेंट स्लीप और कच्ची नींद, जिसे सपनों वाली नींद भी कहते हैं। अगर नॉन-पिड आई मूवमेंट स्लीप 6 घंटे की भी आ जाए, तो बॉडी रिलैक्स हो जाती है, लेकिन 9-10 घंटे की कच्ची नींद के बावजूद बॉडी थकी ही रहती है।
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नींद ना आने की कई वजहें हैं। रुटीन सही न रहना, चाय व कॉफी अधिक पीना, ज्यादा ऐल्कॉहॉल लेना, इंटरनेट, लेट नाइट पार्टी, सोने का समय फिक्स न रखना वगैरह से भी स्लीप डिस्ऑर्डर होता है। हालांकि खासतौर पर लोगों में चार तरह के स्लीप डिस्ऑर्डर देखने में आते हैं।
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स्लीप डिस्ऑर्डर बेसिकली तनाव, चिंता और डिप्रेशन की वजह से होता है। इसके अलावा, शरीर में होने वाला दर्द भी नींद न आने की वजह होता है। दरअसल, अवेयरनेस ना होने की वजह से लोग खर्राटे लेना और अच्छी नींद ना आना जैसी प्रॉब्लम्स को मामूली चीज समझ लेते हैं और डॉक्टर को नहीं दिखाते।
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सोने का समय फिक्स रखें। सही टाइमिंग्स ना होने की वजह से भी अच्छी नींद नहीं आती। कभी-कभी टाइमिंग्स का बिगड़ना तो चल जाता है, लेकिन ऐसी हैबिट होने पर नुकसान ही पहुंचता है। इसके अलावा, दिन में बहुत घंटे सोना भी रात को अच्छी नींद ना आने की एक वजह है।
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इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।