जानें कान के संक्रमण में एंटीबॉयटिक से क्यों बेहतर है घरेलू उपचार
अगर कान के संक्रमण के लिए आप किसी भी तरह के एंटिबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सतर्क हो जाएं। बिना चिकित्सक के सलाह के एंटिबायोटिक का इस्तेमाल ना करें।

हमारे कान की प्रमुख इंद्रियों में से एक है कान। कान की ठीक तरह से सफाई न करना या फिर दूसरी समस्याओं के कारण कान में संक्रमण हो जाता है। ऐसे में कान के उपचार के लिए एंटीबायटिक दवाओं के प्रयोग अधिकतर किया जाता है। सामान्यतया बच्चों में अगर कान का संक्रमण हो जाये तो पैरेंट्स उपचार के लिए लोग घरेलू नुस्खों का प्रयोग करते हैं। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसमें एंटीबॉयटिक दवायें अधिक कारगर होती हैं या फिर घरेलू नुस्खे। इस स्लाइडशो में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।

अगर कोई बच्चा कान के संक्रमण की वजह से अधिक बीमार हो जाये और उसकी उम्र 2 साल से कम हो तो, इसके कारण उसके दानों कानों में एक साथ संक्रमण हो जाता है और हल्के दर्द के साथ बुखार भी हो जाता है। यह खतरनाक भी है, क्योंकि इसके कारण उसे दूसरी समस्यायें भी हो सकती हैं।

यदि कानों में हुए संक्रमण के उपचार के लिए बच्चे को चिकित्सक के पास ले जाया जाता है, तो वह कुछ दिनों तक इसके खुद ठीक होने का इंतजार करते हैं। अगर कुछ दिनों बाद भी संक्रमण ठीक नहीं होता है तो चिकित्सक एंटीबॉयटिक लेने की सलाह देते हैं।

यदि किसी बच्चे को कान में संक्रमण के लिए एंटीबॉयटिक का प्रयोग किया जाता है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण होता है कि दवा का प्रयोग दिशा-निर्देश के अनुरूप ही किया जाये। अगर बच्चे को दूसरी बीमारी भी है और उसका उपचार हो रहा है तो एंटीबॉयटिक दवाओं के दुरूपायोग के कारण प्रतिरोधी बैक्टीरिया पैदा हो सकते हैं।

यदि किसी दवा का सही तरीके से प्रयोग न किया जाये तो उसका कोई-न-कोई साइड इफेक्ट होता है, बच्चों में इसकी संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि बच्चों की इम्यूनिटी बहुत कमजोर होती है। अगर बच्चे को अधिक एंटीबॉयटिक दिया जाये तो इसके कारण दस्त आना, दाने या किसी प्रकार के चकत्ते पड़ना आदि की समस्या हो सकती है। ऐसे में एंटीबॉयटिक दवाओं की जगह घरेलू नुस्खों का प्रयोग अधिक फायदेमंद माना जाता है।
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