जानें किन दवाओं के सेवन से हो सकता है डिमेंशिया
डिमेंशिया एक मानसिक रोग है और इसके कई प्रकार हैं जिनमें से अल्जाइमर प्रमुख है। इस स्लाइड शो में हम जानेंगे कि कैसी दवाएं हमें डिमेंशिया की ओर ले जाती हैं।

हम अपने जीवन में कई तरह की दवाओं का रोज सेवन करते हैं, कभी डॉक्टर की सलाह से तो कभी अपनी मर्जी से लेकिन हम नहीं जानते इन्हीं में से कई दवाएं हमें डिमेंशिया का शिकार बना सकती हैं। डिमेंशिया एक मानसिक रोग है और इसके कई प्रकार हैं जिनमें से अल्जाइमर प्रमुख है। इस रोग में मनुष्य की मानसिक समझ धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है और भूलने की बीमारी से लेकर अन्य कई मानसिक बीमारियां उसे घेरने लगती हैं। आगे की स्लाइड्स में हम जानेंगे कि कैसी दवाएं हमें डिमेंशिया की ओर ले जाती हैं-
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बहुत से लोगों को विभिन्न तरह की एलर्जियां होती हैं और उसके लिए वह डाॅक्टर की सलाह पर कई तरह की दवाओं का सेवन करते है लेकिन आपको अपने डॅक्टर से इस बारे में बात-चीत करनी चाहिए कि उस दवा में एंटीहिस्टामाइन तत्व की मात्रा अनियंत्रित तो नहीं है जो कि आमतौर पर इस तरह की दवाओं का सामान्य अंग होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन, सियाटेल के एक शोध में यह पाया गया कि इस तरह की दवाओं का तीन वर्ष से लगातार सेवन कर रहे लोगों में डिमेंशिया होने की संभावना सामान्य लोगों की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक होती है।
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जब कभी आप लंबी उड़ान तय करके एक देश से दूसरे देश की यात्रा करते हैं तो नींद में खलल पड़ जाता है ऐसे समय में डाॅक्टर से पूछताछ करके कभी-कभी नींद की गोली लेना कोई ज्यादा नुकसानदायक नहीं है लेकिन अगर यह आपकी रोज की आदत में शुमार है तो आपको सचेत होने की जरूरत है क्योंकि न्यूयाॅर्क के माउंट सिनाई स्कूल ऑफ मेडिसिन के एक शोध में यह पाया गया कि 65 की उम्र पार कर चुके 10 प्रतिशत लोग ऐसे जिन्हें लगता है कि वे डिमेंशिया के शिकार हैं वास्तव में वह नींद की गोलियों के साइड इफैक्ट से जूझ रहे होते हैं।इसलिए बेहतर यह होगा कि आप अभी से अपनी दिनचर्या सुधारें और नींद के लिए योग पर निर्भर रहें। योग इस काम में बेहतर विकल्प हो सकता है।
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माउंट सिनाई स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोध में ही यह पाया गया कि नींद की गोलियां हमारे शरीर और मस्तिष्क को निष्क्रिय बनाती हैं और लोगों की इसकी लत लग जाती है। वह इसे विटामिन की गोलियों की तरह लेना शुरू कर देते हैं जिससे दीर्घावधि में बहुत नुकसान होता है। इनमें पाए जाने वाले जोल्पिडम, डायजेपम, क्लोनाजेपम, एल्पराजोलम और लोराजेपम जैसे सॉल्ट नींद को बढ़ावा देते हैं लेकिन हमें डिमेंशिया की ओर ले जाते हैं।
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एंटीकॉलिनर्जिक एक ऐसा अवयव है जो यूरीन, अस्थमा और डिप्रेशन से जुड़ी कई आम दवाओं में पाया जाता है। यह आपके नर्वस सिस्टम में बहने वाले एक द्रव एसेटाइलकोलीन के प्रवाह को अवरूद्ध करता है और इससे आपके सोचने की शक्ति पर व्यापक असर पड़ता है। इंडियाना यूनिवर्सिटी के एक शोध में पाया गया कि ऐसी दवाओं का ज्यादा सेवन करने वाले लोगों का मस्तिष्क सिकुड़कर छोटा होता जाता है और जब ऐसे लोगों से सोचने संबंधी काम करने को कहा जाता है तो उनकी क्षमता उनसे कम होती है जो इस दवा का प्रयोग नहीं करते हैं। हालांकि इस बात पर शोधार्थी सहमत नहीं है कि यह डिमेंशिया के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है लेकिन उसके बहुत से कारणों में से एक अवश्य है। इसलिए बेहतर है कि डॉक्टर की सलाह से ऐसी दवाओं का सीमित इस्तेमाल किया जाए।
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एंटीकॉलिनर्जिक का इस्तेमाल उच्च रक्तचाप, अनियमित धड़कन, माइग्रेन और ग्लूकोमा की दवाओं में भी होता है। इसके अलावा लंबी फेफड़ों संबंधी बीमारी, कोलेस्ट्रॉल स्तर कम रखने वाली और कुछ पेट संबंधी बीमारियों के इलाज में दी जाने वाली दवाओं में भी इस तत्व का प्रयोग होता है। कई अध्ययनों में देखा गया है कि इन दवाओं का अत्यधिक सेवन करने वाले लोगों मे डिमेंशिया के लक्षण देखे गए और जब उन्होंने इन दवाओं का सेवन बंद किया तो उनकी हालत में सुधार हुआ। इन सब समस्याओं से बचने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि दवाओं का सेवन संयमित मात्रा में और हमेशा डॉक्टर की सलाह से करें। नियमित और संतुलित जीवन शैली अपनाएं और मानसिक व्यायाम करें जिसके लिए योग का सहारा लिया जा सकता है।
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