इमोशनली स्ट्रॉन्ग

किसी की भी भावनाएं कंट्रोल में नहीं होती। भावनाओं को कंट्रोल करना पड़ता है। लेकिन भावनाओं को कंट्रोल करना इतना आसान नहीं। भावनात्मक रुप से कमजोर लोग भावनाओं को कंट्रोल नहीं कर पाते जबकि जो लोग इमोशनली तौर पर स्ट्रॉन्ग होते हैं वे अपनी भावनाओं को आसानी से कंट्रोल कर लेते हैं। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे कई बार आप ऐसे फैसले भी ले लेते हैं जो आपको नहीं लेना चाहिए। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भावनात्मक तौर पर स्ट्रॉन्ग लोग चाहकर भी ये जरूरी चीजें नहीं कर पाते।
फीलिंग्स को नहीं कर पाते इग्नोर

हर किसी के मन में पूरे दिन में बहुत सी भावनाएं आती हैं। कुछ लोग उसे इग्नोर कर देते हैं। कुछ लोग इग्नोर नहीं कर पाते। जबकि भावनात्मक रुप से स्ट्रॉन्ग लोग इन भावनाओं के कारणों को जानने की कोशिश करते हैं। इग्नोर ना करने के साथ ही भावनाओं के ओरीजिन का भी पता करने की कोशिश करते हैं। जैसे कि कोई इंसान जॉब बदलने से पहले दस बार सोचता है। लेकिन इमोशनली तौर पर स्ट्रॉन्ग लोग केवल एक बार सोचते हैं औऱ उसे नई जॉब पसंद आ रही होती है तो वो उसे तुरंत मान लेते हैं।
फिर भी फीलिंग्स नहीं होती नजरअंदाज

भावनात्मक रूप से स्ट्रॉन्ग लोगों की फीलिंग्स कई बार शरीर को भी प्रभावित करने लगती है फिर भी ये चाहकर भी फीलिंग्स को रोक नहीं पाते। दरअसल स्ट्रॉन्ग लोग जल्दी अपनी भावनाएं किसी के सामने नहीं दिखाते जिससे की दुख में वो अंदर ही अंदर डिप्रेस होते रहते हैं जिससे उनके शरीर पर भी अशर पड़ता है।
नहीं चिल्लाना

इन्हें अपनी भावनाओं को कंट्रोल करना अच्छी तरह से आता है। अगर ये ऑफिस या पब्लिक प्लेज़ में है और कोई इनकी फीलिंग्स को कितनी भी हर्ट करे फिर भी ये उनपर चिल्लाएंगे नहीं। इमोशनली तौर पर स्ट्रॉन्ग लोगों की यही खासियत उन्हें वर्क प्लेज़ पर सबसे ज्यादा अच्छा जरूर बनाती है लेकिन उन्हें अंदर ही अंदर परेशान भी कर देती है।
किसी को कुछ नहीं बोलना

ऐसे लोग अपनी भावनाओं के बारे में किसी से कुछ भी नहीं बताते। ऐसे लोग अपनी खुशी तो हर किसी से बांट लेते हैं लेकिन दुख किस से नहीं बांटते और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। ये इमोशनली स्ट्रॉन्ग इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी होती है जो कई बार ऐसे इंसान को अंदर ही अंदर बीमारी भी कर देती है।