आयुर्वेदिक उपचार से करें गर्भाशय फाइब्रॉएड का इलाज
आयुर्वेंदिक उपचार शरीर में हार्मोंन में संतुलन बनाकर ओवरियन के कामकाज में सुधार करता है। और ओवरियन का काम समन्वय बनाने और गर्भाशय के स्वास्थ्य को बनाए रखना होता है। इस तरह से गर्भाशय का काम होता है और फॉइब्राइड की संरचना को रोका जाता है।

फाइब्रॉएड एक नॉन-कैंसर ट्यूमर हैं, जो गर्भाशय की मांसपेशी की परतों पर बढ़ते हैं। इन्हें गर्भाशय फाइब्रॉएड के नाम से भी जाना जाता है। फाइब्रॉएड चिकनी मांसपेशियों और रेशेदार ऊतकों की विस्तृत रूप हैं। फाइब्रॉएड का आकार भिन्न हो सकता है, यह सेम के बीज से लेकर तरबूज जितना हो सकता है। लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं को पूरे जीवन में फाइब्रॉएड कभी न कभी जरूर प्रभावित करता है। 30 से 50 के बीच आयु वर्ग की महिलाओं को फाइब्रॉएड विकसित होने की आशंका सबसे अधिक होती है। सामान्य वजन वाली महिलाओं की तुलना में अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में फाइब्रॉएड विकासित होने का उच्च जोखिम होता है।
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फाइब्रॉएड तत्काल लक्षण नहीं होता हैं। लेकिन कुछ प्रारंभिक लक्षण फाइब्रॉएड से संबंधित हो सकते है। इसलिए रोगियों को फाइब्रॉएड की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए उचित जांच करवाने की सलाह दी जाती है। फाइब्रॉएड से जुड़े कुछ लक्षणों में पीठ में दर्द, कब्ज, हैवी और पेनफूल पीरियड्स, सेक्स के दौरान दर्द, प्रजनन संबंधी समस्याएं, कंसीव करने में कठिनाई, पेट के निचले हिस्से में सूजन और कई महिलाओं के पैरों में दर्द आदि शामिल है।
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आयुर्वेद प्राचीन भारतीय चिकित्सा व्यवस्था है, जिसमें प्रकृति में मौजूदा जड़ी बूटियों का उपयोग करते हैं। और इन जड़ी बूटियों में मौजूद निहित शक्ति का उपयोग हर्बल उपचार के रूप में करते है। आयुर्वेद का विश्वास है कि हर्बल उपचार प्राकृतिक रूप से प्रतिरक्षा में सुधार, शक्ति, धीरज और इच्छा प्रदान करता हैं। आयुर्वेद मानव शरीर पर अद्भुत परिणाम लाने के लिए प्राकृतिक जड़ी बूटियों के निहित शक्ति का उपयोग करता है। यह जड़ी बूटियों प्राकृतिक और 100 प्रतिशत सुरक्षित होती हैं। आयुर्वेद हर्बल तरीके से शरीर के कामकाज बढ़ाने में मदद करता है। यह जड़ी बूटी हर्बल और प्राकृतिक तरीके से फॉइब्राइड के कार्य में सुधार करने में मदद करती है। यह शरीर में हार्मोंन में संतुलन बनाकर ओवरियन के कामकाज में सुधार करती है। ओवरियन का काम समन्वय बनाने और गर्भाशय के स्वास्थ्य को बनाए रखना होता है। इस तरह से गर्भाशय का काम होता है और फॉइब्राइड की संरचना को रोका जाता है।
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चेस्टबेरी को दक्षिणी यूरोप और भूमध्य क्षेत्रों में पाया जाने वाला हर्ब है। यह हार्मोन संतुलन, एस्ट्रोजन के कम स्तर बनाए रखने और सूजन को कम करने का एक उत्कृष्ट हर्बल उपाय है। समस्या होने पर चेस्टबेरी हर्ब से बने मिश्रण की 25 से 30 बूंदों को दिन में दो से चार बार लें। हालांकि चेस्टबेरी पीरियड्स और ब्लीडिंग को नियमित करने में मदद करती है लेकिन जन्म नियंत्रण गोलियों के प्रभाव को कम कर देती हैं।
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अधिक हार्मोंन बनने से गर्भाशय फाइब्रॉएड की समस्या होती है। और सिंहपर्णी जैसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटी गर्भाशय फाइब्रॉइड के लिए सबसे अच्छे उपचारों में से एक है। यह लिवर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त कर शरीर से अतिरिक्त एस्ट्रोजन को साफ करता है। इसे बनाने के लिए 2-3 कप पानी लेकर उसमें सिंहपर्णी की जड़ की तीन चम्मच मिलाकर, 15 मिनट के लिए उबालें। फिर इसे हल्का ठंडा होने के लिए रख दें। इसे कम से कम 3 महीने के लिए दिन में 3 बार लें।
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यह आयुर्वेदिक उपचार मेटाबॉल्जिम की मदद कर अतिरिक्त एस्ट्रोजन से छुटकारा पाने में मदद करता है। एस्ट्रोजन प्रजनन हार्मोंन है, जो योगदान वृद्धि कारकों को जारी करने के लिए कोशिकाओं को उत्तेजित करता है, और इससे फाइब्रॉइड में वृद्धि होती है। समस्या से बचने के लिए जड़ी बूटी से बने मिश्रण की 10 से 25 बूंदों को दिन में तीन बार तीन से चार महीने के लिए लें।
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इस अद्भुत जड़ी-बूटी का इस्तेमाल आमतौर पर खांसी के लिए किया जाता है, लेकिन यह गर्भाशाय फाइब्रॉएड के इलाज के लिए भी बहुत फायदेमंद होती है। गर्भाशय में रक्त के प्रवाह और परिसंचरण को बढ़ावा देने में इस्तेमाल किया जाता है। बढा हुआ सर्कुलेशन गर्भाशय, अंडाशय या फैलोपियन ट्यूब की सूजन को कम करने में मदद करता है।
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गुग्गुल कफ, वात, कृमि और अर्श नाशक होता है। इसके अलावा इसमें सूजन और जलन को कम करने के गुण भी होते हैं। गर्भाशय से जुड़ें रोगों के लिए गुग्गुल का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। गर्भाशय में फाइब्रॉएड की समस्या होने पर आप गुग्गुल को सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करना चाहिए। अगर रोग बहुत जटिल है तो 4 से 6 घंटे के अन्तर पर इसका सेवन करते रहना चाहिए।
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बरडॉक रक्त को शुद्ध करने वाली जड़ी-बूटी है। यह लिवर का समर्थन कर अतिरिक्त एस्ट्रोजन को डिटॉक्स कर गर्भाशय फाइब्रॉएड को कम करने में मदद करता है। इसमें मौजूद मूत्रवर्धक गुण के कारण यह शरीर को डिटॉक्स कर सूजन को कम करने में मदद करता है। जब बरडॉक की एंटी-इंफ्लेमेंटरी गुण फाइबॉएड को हटाने में मदद करती है तो एक्टिव संघटक आर्कटिगेनिन ट्यूमर वृद्धि पर प्रतिबंध लगाता है।
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यह आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी में एंटीबॉयोटिक, एंटी मॉइक्रोबिल और एंटी-इंफ्लेमेंटरी गुणों से भरपूर होती है। गोल्डनसील टिश्यु की वृद्धि से होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में मदद करता है। सूजन में कमी स्कॉर टिश्यु और आसंजन गठन को रोकने में मदद करती है। इस जडी़-बूटी में बहुत अधिक मात्रा में अल्कलॉइड बेर्बेराइन नामक तत्व पाया जाता है, जो गर्भाश्य के टिश्यु को टोन कर फाइब्रॉएड के विकास को रोकता है। इसलिए इसकी 400 मिलीग्राम खुराक नियमित रूप से लेने के लिए कहा जाता है। लेकिन इसका इस्तेमाल लंबे समय तक नहीं किया जाना चाहिए।
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