योग मुद्राएं

योग प्राचीन कला है जिसके फायदे और महत्व को आज देश ही नहीं पूरी दुनिया मानती है। यह आधुनिक विज्ञान के साथ अध्यात्म ज्ञान को जोड़कर हमें स्‍वास्‍थ्‍य लाभ पहुंचाता है।योग में ना सिर्फ आसन बल्‍कि मुद्राएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन योग मुद्राओ से आप कई रोगों का निदान व बचाव कर सकते हैं। हर योग मुद्रा विशिष्ट है प्रत्येक में गहरा रहस्‍य छिपा है। यदि नियमित रूप से इन मुद्राओं को किया जाए तो, शरीर में वायु संबंधी बीमारियां नहीं होती। तो चलिये जानें क्या हैं ये योग मुद्राएं और इनके लाभ।
ज्ञान मुद्रा

यह मुद्रा ज्ञान और ध्यान के लिये प्रसिद्ध है। इसे करने के लिए पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं (अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगाएं और बाकी तीनों अंगुलियों को सीधा रखें)। ध्यान लगाने के लिए इसी मुद्रा को किया जाता है। ज्ञान मुद्रा मस्तिष्क के स्नायुओं को बल देती है और स्मरण शक्ति, एकाग्रता शक्ति, संकल्प शक्ति को बढ़ाती है। इसके नियमित अभ्यास से अनिद्रा दूर होती है तथा क्रोध को काबू करने की क्षमता बढ़ती है।
वायु मुद्रा

वायु मुद्रा करने के लिए तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर हल्का सा दबाएं और बाकी की सारी उंगलियों को सीधा कर दें। इस मुद्रा में बेठए हुए रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। वायु मुद्रा मुद्रा वात रोगों बेहद लाभकारी होती है। साथ ही यह साइटिका, कमर दर्द, गर्दन दर्द, पार्किंसन, गठिया, लकवा, जोड़ों का दर्द व घुटने का दर्द में भी लाभ देती है।
आकाश मुद्रा

आकाश मुद्रा करने के लिए मध्यमा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगा लें और बाकी की अंगुलियों को बिल्कुल सीधा कर लें। इस मुद्रा को नियमित रूप से करने से कान के रोग, बहरेपन, कान में लगातार व्यर्थ की आवाजें सुनाई देना व हड्डियों की कमजोरी आदि दूर होती हैं।
रज हस्त मुद्रा

रज हस्त मुद्रा विशेष रूप से स्त्रियों के लिए है। लेकिन इस मुद्रा का लाभ केवल स्त्रियों को ही नहीं बल्कि यदि पुरुष इस मुद्रा को करता है तो उनके वीर्य संबंधी रोग दूर होते हैं। इसे करने के लिए बाकि तीनों उंगलियों को सीधी रखते हुए कनिष्ठा (छोटी अंगुली) अंगुली को हथेली की जड़ में मोड़कर लगाएं। इससे रज मुद्रा बन जाती है।
शून्य मुद्रा

शून्य मुद्रा करने के लिए मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल से लगाकर अंगूठे से हल्का सा दबाएं और बाकी उंगलियों को सीधी कर लें, शून्य मुद्रा बन जाएगी। इससे गले के रोग व थाइराइड आदि में लाभ होता है, साथ ही दांत मजबूत बनते हैं और कान की बीमारियां दूर होती हैं।
शंख मुद्रा

शंख मुद्रा बनाने के लिए बाएं हाथ के अंगुठे को दाएं हाथ की हथेली में स्थापित करें और मुठ्ठी बंद कर लें। अब उंगलियों को दाहिने हाथ के अंगूठे से छुलाएं। इस मुद्रा से हाथों की आकृति शंख जैसी हो जाती है, इसीलिए भी इसे शंख मुद्रा कहा जाता है। यदि आप जैसे शंख बजाते हैं वैसे ही बजाने की कोशिश करेंगे तो हाथों की इस मुद्रा में भी शंख के समान आवाज आएगी। इस मुद्रा को करने से गले से जुड़े रोग ठीक होते हैं।
सहज हस्त मुद्रा

सहज हस्त मुद्रा बनाने के लिए दोनों हाथों के अंगूठे के पहले पोर को सबसे छोटी अंगुली के प्रथम पोर से मिलाने पर सहज मुद्रा बन जाती है। बाकी की सारी उंगलियां को आपस नहीं मिलाया जाता है। इस मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर सुंदर और कोमल बनता है, शरीर का रुखापन दूर होता है और त्वचा संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
पृथ्वी मुद्रा

पृथ्वी मुद्रा बनाने के लिए अनामिका अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियां को सीधा कर लें। यह मुद्रा शरीर की दुर्बलता को दूर कर वजन बढ़ाने में मदद करती है, यह शरीर में खून के दौरे को ठीक कर शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेज उत्पन्न करती है और मासपेशियों में मजबूती लाती है।
सूर्य मुद्रा

सूर्य मुद्रा में आने के लिए अपनी अनामिका अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से हल्का दबाकर बाकी अगुलियों को सीधा करके रखना होता है। सूर्य मुद्रा करने से मोटापा कम होता है, शरीर में उष्णता बढ़ाती है और मधुमेह व लीवर के रोगों में लाभ पहुंचाती है। इस मुद्रा को गर्मीयों में अधिक न करें।