ऐसे दस रिश्तों से बचते हैं मानसिक रूप से मजबूत लोग
बहुत दुख देते हैं नाकाम रिश्ते। लेकिन, ये आपको जिंदगी का नया आयाम भी दिखाते हैं। बहुत कुछ सीख जाते हैं आप इस दौरान। रिश्तों के टूटने का मुख्य कारण कहीं न कहीं इनसानी स्वार्थ भी होता है। जब हम पर मैं भारी पड़ने लगता है, तो रिश्ते खराब होने लगते ह

रिश्तों के असफल होने से दुख होता है। लेकिन कुछ रिश्ते असफल होने के बाद बहुत कुछ सिखा जाते हैं। ये सबक रिश्तों की बेहतर समझ पैदा करते हैं। वैसे तो रिश्तों में दिमाग नहीं दिल की सुनी जाती है। लेकिन, स्वार्थ और पूर्वानुमानों पर टिके रिश्तों में दिमाग लगाना जरूरी हो जाता है। दिल और दिमाग का असंतुलन आपके हाथ में पछतावे के सिवा कुछ नहीं छोड़ता। इसलिए अगर आप मानसिक रूप से मजबूत हैं तो कुछ प्रकार के रिश्तों से दूर ही रहें।
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प्यार आपसी समझ और दो लोगों के दिलों का मिलन है। इसमें दो दिल एक साथ धड़कते हैं। किसी की मनमानी चलना ठीक नहीं। रिश्तों में तानाशाही की जगह नहीं। जिस रिश्ते की बागडोर किसी एक व्यक्ति के हाथ में हो उससे दूरी बनाने में ही भलाई है। लेकिन आरोप लगाने से पहले एक बार पूरी तरह से जांच लीजिए कि किन-किन मामलों में उनकी अधिक दखलअंदाजी होती है। क्योंकि एक स्वस्थ रिश्ता स्वतंत्रता प्रदान करता है न कि बंदिशें।
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आप जब किसी से मिलते हैं तो पाते हैं कि आप पहले से अधिक खुश हैं। उसके आने से आपकी जिंदगी के दुख दूर हो गये। और आप पहले से ज्यादा बिंदास और जिंदादिल हो गये हैं। लेकिन यह आपकी मजबूती नहीं बल्कि कमजोरी है, क्योंकि इस दुनिया में आपको आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। इसलिए अगर आपकी जिंदगी में पहले से दुख है तो उसे खुद दूर कीजिए। दूसरों के भरोसे न रहें, क्योंकि अगर वही आपकी जिंदगी में खुशियां लेकर आया है तो दुख भी उसके कारण हो सकता है।
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आपकी इच्छायें और जरूरतें दूसरों की मोहताज नहीं होनी चाहिये। यह तो रिश्ते के लिए विषबेल जैसा है। ऐसे में आप किसी भी काम के लिए दूसरे व्यक्ति पर निर्भर रहते हैं, चाहे वो कोई काम करने की इच्छा हो या फिर कहीं जाने की योजना, बिना दूसरे व्यक्ति की अनुमति के आप खुद से कोई कदम नहीं उठाते हैं।
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आदर्शवादी सोच के आधार पर रिश्तों को आगे बढ़ाना उस रिश्ते को खतरे में डालना है। अगर आपका रिश्ता भी आदर्शवादी उम्मीदों को पूरा करने के लिए बना हुआ है तो इसमें दरार पड़ सकती है। ऐसे रिश्ते अक्सर टूट जाते हैं क्योंकि वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। क्योंकि आप दोनों की सोच आदर्शवाद यानी कुछ निर्धारित उम्मीदों को पूरा करने की होती है। अगर आप रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो योजना न बनायें बल्कि रिश्ते को निभायें।
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जीवन में भूल सभी से होती हैं। गलतियों के बाद ही व्यक्ति सीखता और उसे न दोहराने की कोशिश करता है। ऐसी ही गलती अगर आपने अपने जीवन में पहले की है और वही बात बार-बार आपके सामने आती है तो यह रिश्ता अधिक दिन नहीं चलने वाला। पुरानी बातें उलाहनों और लड़ाइयों को बढ़ावा देती हैं। और पुरानी बातों को रखकर अपनी बात कहने वाले व्यक्ति की सोच भी उसी हिसाब से चलती है।
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विश्वास हर स्वस्थ रिश्ते की नींव होता है। झूठ की कैंची रिश्ते को काट तभी कमजोर होती है जब उसमें लगता है, एक झूठ को छुपाने के लिए व्यक्ति बार-बार झूठ बोलता है और झूठ की बुनियाद पर चलने वाला रिश्ता कमजोर ही नहीं होता बल्कि यह कभी भी ढह सकता है। इसलिए रिश्तों को लेकर ईमानदार रहिये और जितना हो सके रिश्ते को झूठ से बचाकर रखिये।
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माफ करने वाले का दिल हमेशा बड़ा होता है। टूटे हुए रिश्ते को जोड़ने में क्षमा और इच्छा की बहुत अहम भूमिका होती है। क्योंकि टूटा हुआ विश्वास जोड़ना इतना आसान नहीं होता। आप अगर किसी को दोबारा मौका देते हैं तो हो सकता है वह रिश्ता बाद में और भी अच्छा बन जायें, क्योंकि भूल तो सभी से होती है और उसे सुधारा भी जा सकता है। लेकिन उस रिश्ते का क्या जिसमें क्षमा और इच्छा का ही अभाव हो।
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अगर आपके रिश्ते में भी निष्क्रिय अक्रामकता है तो यह आपके आपसी संचार में बाधक बन सकती है। इस रिश्तें में आप अपनी बात को अच्छे से नहीं कह पाते हैं क्योंकि आपको हमेशा डर बना रहता है कि कहीं सामने वाला आप पर हावी न हो जाये। इस प्रकार के रिश्तें में सामने वाला बिना किसी बात पर भी आपके ऊपर हावी हो सकता है। इसमें सामने वाली की इच्छाओं का कभी पता नहीं चलता कि कब वह किसी मूड में आ जाये। जबकि स्वस्थ रिश्ते में सारी बाते और विचार खुले हुए होते हैं।
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भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने का मतलब यह कि जब किसी रिश्ते में व्यक्ति की इच्छाओं के खिलाफ दूसरा व्यक्ति उसे अपनी बात मनवाता है, अगर वह बात ना माने तो उसे अपने इमोशंस से उकसाता है। इस प्रकार के रिश्ते में आप अपनी इच्छाओं को दूसरे की भावनाओं के आगे समाप्त कर देते हैं। लेकिन अगर इस तरह के व्यवहार में किसी भी प्रकार का स्वार्थ न हो तो यह स्वस्थ संबंध का कारक भी बन सकत है। लेकिन जब भावनायें स्वार्थ के साथ मिल जाती हैं तब समस्या होती है।
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आप कितनी भी महत्वपूर्ण बात कीजिए लेकिन अगर सामने वाला उसे टाल रहा है और आपकी बात को पूरी तरह नजरअंदाज कर रहा है तो यह भी उस रिश्ते के लिए ठीक नहीं। क्योंकि रिश्ता तभी मजबूत होता है और जीवनपर्यंत तक चलता है जब उसमें दोनों की बातों और दोनों की इच्छाओं की भागीदारी समान रूप से हो।
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