टेरर अटैक का मनोवैज्ञानिक असर

आंख के बदले आंख दुनिया को अंधा बना देगी। पेरिस आतंकवादी हमले का जवाबी हमला इस वाक्य को सच करता है। बच्चे डरे हुए हैं, घर में बैठी महिलाएं चिंतित है लेकिन आतंकवादी हमले रुक नहीं रहे। जान-माल के अलावा इसका एक नुकसान और हुआ है जो इन हमलों से भी ज्यादा खतरनाक है और वो है इन हमलों से होने वाला मनोवैज्ञानिक असर। ये मनोवैज्ञानिक असर स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। जहां भी ये हमले होते हैं लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है। आइए इस स्लाइडशो में इन प्रभावों के बारे में विस्तार से पढ़ें।
स्कूल जाने में डर

क्या आप अपने बच्चे को ऐसे स्कूल में भेजना चाहेंगे जहां आपका बच्चा गेट पर मेटल डिटेक्टर से गुजरकर क्लास रुम जाने तक अपने बैग की दो बार जांच करा चुका हो। प्रेयर क्लास में आतंकवाद से बचने के लिए सुरक्षा ड्रील हो। स्कूल चारों तरफ से सीसीटीवी कैमरे से घिरा हो जिसमें बच्चे की एक-एक हरकत रिकॉर्ड हो रही हो। जरा सोचिए इस माहौल का आपके बच्चे पर क्या असर पड़ेगा। महफूज के लिए बनाई गई चीज कहीं इनडायरेक्टली उन्हें जेल का अनुभव नहीं करा दे। क्या बच्चे इस माहैल में खुश होंगे?
घरवाले खाना नहीं खा रहे

हमले की खबर सुनते ही घरवालों के हलक से एक निवाला तक नीचे नहीं उतरता। उतरे भी कैसे जब ये पता हो कि उसके घर का एक सदस्य बाहर मार्केट गया है और मार्केट के बगल में आतंकवादी हमला हुआ है या हो सकता है। ऐसी सोच के साथ दिमाग तो परेशान होगा ही भूख भी मर जाएगी जिससे स्वास्थ्य पर असर पड़ना लाज़िमी है।
सुरक्षा उपकरण की खरीद शुरू

हर एक आतंकवादी हमले के बाद दुनिया में सीसीटीवी और मेटल डिटेक्टर की बिक्री बढ़ गई है। 2008 में छपी 'बिजनेस स्टैंडर्ड' अखबार की रिपोर्ट बताती है कि सुरक्षा उपकरणों का बाज़ार 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। मतलब हर एक इंसान दूसरे इंसान को शक की निगाह से देख रहा है और अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर रहा है। कहां जाएगा ऐसा शकी और हमले के डर से पीड़ित समाज।
शक की निगाह

पिछले साल देश की एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी के छात्रों को शक होने पर गिरफ्तार कर लिया गया था। छात्र गलत है कि नहीं ये बाद का विषय है। लेकिन इस एक गिरफ्तारी ने हर एक इंसान को दूसरे की नजर में अपराधी घोषित कर दिया। ऐसे अपराधी नजर ने सबसे ज्यादा अगर कोई रिश्ता दरकाया है तो वह है दोस्ती का।