भगवान कृष्ण से सीखें प्यार के ये पाठ
भगवान कृष्ण माता-पिता के प्रति समर्पण, भाई का आदर, स्त्री का सम्मान व मित्रों के साथ प्रेम भाव को व्यक्त करना बहुत अच्छी तरह से जातने थे। उन्होंने अपने किसी भी रिश्ते के साथ कभी कोई भेदभाव नहीं किया, बल्कि समानता व प्रेम के साथ हर रिश्ते को बांधा

भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार रूप माना जाता है और उन्हें प्यार, सम्मान, मानवतावाद, बहादुरी एवं शासन कला के लिए पूजा जाता है। इनका उल्लेख हमें महाभारत में मिलता है, जोकि विश्व का सबसे लंबा महाकाव्य है। इस महाकाव्य में भगवान कृष्ण बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। और उनकी लीलाओं को इस महाकाव्य में देखा व सुना जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन मनुष्य जाति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में ऐसी अनेक लीलाएं की, जिसमें बहुत ही गहरे सूत्र छिपे हैं। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया ज्ञान आज भी भगवत गीता के रूप में मौजूद है। यह ज्ञान न केवल जीवन जीने की कला नहीं सिखाता बल्कि मुश्किलों से बाहर निकलने का रास्ता भी दिखता है। भगवान कृष्ण अपने जीवन के भिन्न रिश्तों के साथ अलग भूमिकाओं को निभाते नजर आते हैं। शायद ही किसी रिश्तों को इतनी खूबी से निभाया हो।

भगवान कृष्ण यादवों के राजा और पांडवों के संरक्षक थे, न्याय की प्रतिमा और ज्ञान का भंडार थे। भूमि पर बढते अन्याय को समाप्त करने के लिए कृष्ण ने धरती पर अवतार लिया था। इससे स्पष्ट है, कि वे धरती मां से कितना प्यार करते थे। महाभारत का युद्ध ना हो इसके लिए उन्होंने पांडवों की मांग को दुर्योधन के सामने रखा था। श्री कृष्ण से हमें भी सीखने को मिलता है, यह धरती हमारी मां हैं और हमें इसकी रक्षा के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

भगवान कृष्ण प्रेम और न्याय का अवतार थे। उन्होंने कानून और न्याय का शासन स्थापित करने के लिए अपने ही लोगों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अगर आपने महाभारत पढ़ी है तो आपको पता होना चाहिए कि उन्होंने युद्ध में पांडवों का समर्थन किया थ। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि पांडव न्याय के पक्ष में थे।
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भले ही श्री कृष्ण देवकी व वासुदेव के पुत्र कहलाए जाते हैं, लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा व नंद ने किया था। भगवान कृष्ण ने देवकी व यशोदा दोनों मांओं को अपने जीवन में बराबर का स्थान दिया एवं दोनों के प्रति अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया। इस तरह कृष्ण ने दुनिया को यह सिखाया कि हमारे जीवन में मां-बाप का अहम रोल है इसलिए हमें हमारा जीवन अपने माता-पिता की सेवा में समर्पित कर देना चाहिए। भगवान कृष्ण से सीखने का यह सबसे अच्छे सबक में से एक है।
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भगवान विष्णु का अवतार रूप होने के बावजूद, श्री कृष्ण के मन में अपने गुरुओं के लिए बहुत सम्मान था। अपने अवतार रूप में वे जिन भी संतों से मिले उनका उन्होंने पूर्ण सम्मान किया।
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भगवान श्री कृष्ण दोस्ती का बहुत ही अच्छा उदाहरण है। आज भी लोग उनकी दोस्ती की कसमें खाते है। सुदामा, कृष्ण के बचपन के मित्र थे। वह बहुत ही गरीब व्यक्ति थे, लेकिन कृष्ण ने अपनी दोस्ती के बीच कभी धन व हैसियत को नहीं आने दिया। वे अर्जुन के भी बहुत अच्छे मित्र थे और द्रौपदी के भी बहुत अच्छे सखा थे।
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कृष्ण बुदिमान व शक्तिशाली दोनों ही थे। परंतु फिर भी उन्होंने कभी खुद को अपने बडे भाई बलराम से श्रेष्ठ नहीं समझा। बचपन में कृष्ण और बलराम दोनों ने कई कठिनाइयों का सामना किया। इसी कारण दोनों एक दूसरे की क्षमताओं को बहुत अच्छे से जानते थे। कृष्ण अपने बडे भाई का बहुत आदर करते थे।
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कृष्ण के बहुत सारे प्रशंसक और प्यार करने वाले थे। लेकिन वृंदावन में राधा के प्रति उनका प्यार जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जहां वह नंद और यशोदा द्वारा लाये गये थे। वृंदावन में कृष्ण ने राधा के साथ प्रेम लीला रचाई। केवल राधा ही कृष्ण की दीवानी नहीं थी बल्कि वृंदावन की कई गोपियां कृष्ण को मन ही मन ही मन अपना मान चुकी थी। वे राधा व गोपियों के साथ मिलकर रास लीला रचाते थे। कृष्ण इनसे प्यार के साथ-साथ सम्मान भी करते थे। आज के प्रेमियों को श्री कृष्ण के प्यार और प्रेमिकाओं के प्रति सम्मान से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
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