सीखें जीवन से जुड़े ये पाठ

भगवान शिव निश्चित रूप से कई मायनों में एक प्रेरणादायक है। वह शिव योगी और परिवारिक दोनों है। वह शांत रहते हैं लेकिन जब बुरी ताकतों को नष्‍ट करने की बात आती है तो वह भड़कने लगते हैं। वास्‍तव में, भगवान ब्रह्मा सृष्टिकर्ता, भगवान विष्‍णु रक्षक और भगवान शिव अंतक है। शिव हमेशा अपने साथ त्रिशूल (उनका हथियार), डमरू (उनका संगीत यंत्र) रखने के साथ और रूदाक्ष की माला पहनते हैं। शिव शक्ति, बल, विनाश और ज्ञान की मूर्ति है। इसके साथ ही वह शारीरिक फिटनेस, आत्‍मनियंत्रण, ध्‍यान और लचीलेपन की भी मिसाल है। इन सबके साथ वह ने‍तृत्‍व गुणों के प्रतीक है। इन्‍हीं लक्षणों के कारण लगभग हर कोई उनके जैसे बनना चाहता हैं। आइए ऐसे ही कुछ पाठ के बारे में चर्चा करते हैं जो हमें भगवान शिव से सीखने चाहिए। Image Source : deviantart.net
शक्तिशाली दृष्टिकोण

दृष्टि की प्रतीक शिव की तीसरी आंख साधारण से परे है। भगवान शिव की तीसरी आंख आपको सीखाती है कि जिंदगी में समस्या से दूर हटकर ये समझना चाहिए आखिर ये वास्तव में है क्या और फिर जाने कि इसे कैसे काबू किया जा सकता है।
भौतिकवादी सुखों से दूर

भगवान शिव को धन से बिल्‍कुल भी मोह नहीं था। वह सोने के गहने और महंगे कपड़े नहीं पहनते थे। प्रबुद्ध आत्‍मा के कारण वह भौतिक संपत्ति की कमी को लेकर परेशान नहीं होते थे। उन्‍हें भौतिकवादी दुनिया से दूर आध्‍यात्मिक क्षेत्र से कहीं ज्‍यादा खुशी मिलती थी। वह हमें भी यहीं सीखते हैं कि शांत मन सबसे ज्‍यादा जरूरी है।
धैर्य, दृढ़ता और शांति का प्रतीक

शिव एक योगी है, जो एक साथ कई घंटों तक बैठकर ध्‍यान साधना करते हैं। धैर्य, विचार और ज्ञान की स्‍पष्‍टता एक शांत दिमाग की उपज है, जो ध्‍यान का ही परिणाम है। भोलेनाथ की ध्यान की मुद्रा शांति का ज्ञान देती है और रोजमर्रा की जंग से लड़ना सीखाती है। साथ ही ये जिंदगी की समस्याओं को सुलझाने पर भी जोर देती है। इसतरह से हमें भगवान शिव से मन को शांत रखने के लिए ध्‍यान करने की प्रेरणा मिलती है।
नकारात्मक ऊर्जा को दबाने की सीख

शिव ऐसे है जो जहर का सेवन करते है और दर्द के बावजूद इसे अंदर दबाकर रखते है। वास्‍तव में, इस कारण से उनका नाम नीलकंठ भी पड़ा। भगवान शिव का नीलकंठ गुस्से का दमन सीखाता है। इसके अनुसार किसी पर गुस्सा निकालने या दर्द पहुंचाने की बजाए गुस्से को एक संरचनात्मक रूप में मोड़ दे देना चाहिए। वास्तव में, यह क्रोध प्रबंधन का एक बड़ा सबक है।
महिलाओं का सम्मान

शिव अपनी अर्धागिनी पार्वती को अपने बराबर समझते थे। वह एक शरीर में दो आत्‍माओं की तरह रहते थे। भगवान शिव के नाम में से एक अर्ध-नागेश्‍वर था और यह इस अवधारणा का प्रतीक है कि शिव और शक्ति अविभाज्‍य और अनन्‍त है। Image Source : Getty