क्या आपका स्मार्टफोन बना रहा है आपको बुद्धू
हाल में हुए एक शोध के अनुसार वे लोग जो रात 9 बजे के बाद देर रात तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल अधिक तरते हैं, अगले दिन उसका प्रभाव उनका कार्यक्षमता और रचनात्मकता पर नकारात्मक हो सकता है।

स्मार्टफोन बना रहा है आपको डम्ब
ये ज़मान सिर्फ मोबाइल फोन का नहीं बल्कि स्मार्टफोन का है। बाजार में इनके बढ़ते विकल्पों और कम कीमतों के चलते इन दिनों लगभग हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन दिखाई देता है। तकनीकी रूप से उन्नत फीचर और ऐप्स के चलते स्मार्टफोन आपके लिए बहुत सी सहूलियतें तो जुटाता है लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं। स्मार्टफोन के ऊपर लोगों की बेतरतीब निर्भरता की वजह से कई बार लोग कुछ बेवकूफी भरी चीज़ें कर बैठते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो
आपका स्मार्टफोन आपको सफी हद तक बुद्धू बना रहा है। चलिये जानें कैसे -
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हर एक बात पर नोटिफिकेशन
आपका स्मार्टफोन आपको हर छोटी-बड़ी बात का नोटिफिकेशन देता है। जिससे आपको बार-बार अपनी जेब या पर्स से फोन निकालकर चेक करने की आदत पड़ जाती है। कई बार तो ये आदत इतनी खराब हो जाती है कि जब फोन वाइब्रेट नहीं भी होता है तब भी आपको उसका वाइब्रेशन महसूस होता है।
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जबड़ा लटक जाने का खतरा
मोबाइल और लैपटॉप जैसी आधुनिक टेक्नोलॉजियों के दीवानों का जबड़ा लटक जाने का खतरा है। इसकी वजह है कि यह लोग बहुत समय तक अपना सिर झुकाए काम करते हैं। जिससे चेहरे की मसल्स और त्वचा लचीले हो जाते हैं। इसलिये इस फिनोमिना को 'स्मार्टफोन फेस' कहा गया है। शायद इसी की वजह से स्किन टाइटनिंग ट्रीटमेंट्स और चिन इम्प्लांट्स का दौर जोरों पर है।
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दिशाएं और जरूरी नंबर न याद रहना
लोग इन दिनों जीपीएस पर इतने निर्भर हो गए हैं कि कहीं जाने से पहले न रास्ते के बारे में पूछना जरूरी समझते हैं और न ही रास्तों को याद करना। बस फोन का जीपीएक ऑन किया और सपर चालू। और फिर हर मोड़ जीपीएस के हिसाब से लेने लगते हैं। लोकिन कई बार जीपीएस काम न करने या फोन किसी वजह से बंद हो जाने पर आप रास्ता भटक सकते हैं।
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चीज़ें याद रखने की क्षमता में कमी
शायद ही अब हममें से किसी को भी एक दो से ज्यादा फोन नंबर याद हो पाते हैं। हम सारे नंबर फोन में फीड रखते हैं, दिमाग में नहीं। तो इस तरह से हमारा स्मार्टफोन हमरी याद्दाश्त को भी कमजोर बना रहा है।
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कार्यक्षमता कम हो जाती है
स्मार्टफोन पर जो लोग देर रात तक अपने ऑफिस का या दूसरे काम करते हैं, वो अपने दिमाग को इतना अधिक बोझिल कर देते हैं कि अगले दिन की कार्यक्षमता अपने आप ही कम हो जाती है और हम अगले दिन कम काम कर पाते हैं या काम को लेकर अधिक रचनात्मक नहीं हो पाते हैं।
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स्मार्टफोन को लोगों से ज्यादा अहमियत देना
इस तरह की बेवकूफी लगभग हम सभी करते हैं। हम अपने आसपास के लोगों को भूल जाते हैं और अगर कुछ ध्यान रहता है तो बस अपना स्मार्टफोन। सोशल मीडिया कई लोगों को करीब जरूर लाया है लेकिन करीबियों के बीच इसकी वजह से दूरीयां भी बढ़ी हैं।
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कई और फोबिया
पहले से चर्चा में चल रहे मोबाइल फोन से होने वाले रेडिएशन से इतर अन्य कई चिंताओं से भी स्मार्टफोन से जुड़े नए फोबिया जन्म ले रहे हैं। जैसे मोबाइल के कवरेज एरिया से बाहर चले जाना, सोशल नेटवर्किंग और मोबाइल पर बातचीत के चलते असली दुनिया से कट जाना जो अकेलेपन और अवसाद की ओर ले जाता है।
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