शिकायत की भावना क्यों पलती है दिल में और इसे कैसे दूर करें
हमें जीवन में कभी न कभी किसी से छोटी और बड़ी बातों को लेकर शिकायत रहती है, इसके कारण संबंध विच्छेद होता है और दिमाग भी प्रभावित होता है, इसलिए जीवन को दोबारा खुशहाल बनाने के लिए जरूरी है एक नई शुरूआत करें।

हमें जीवन में कभी न कभी किसी से छोटी या बड़ी बातों को लेकर शिकायत रहती है। कुछ लोग इसके कारण ईर्ष्या भी रखते हैं और कुछ लोगों के बीच यह शत्रुता का कारण भी बनता है और आपस में खटास आ जाती है। लेकिन अगर बात परायों की हो तो शिकायत को पकड़कर बैठे रहना सही माना जा सकता है लेकिन उन लोगों से क्यों शिकायत जो अपने हैं और हमेशा उनके साथ रहना है। आगे की स्लाइडशो में जानिये हम शिकायत को पकड़कर क्यों बैठ जाते हैं और उसे कैसे दूर करें।
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जीवन में उतार-चढ़ाव होना सामान्य बात है, इसे मानव की प्रकृति भी कहा जा सकता है। लेकिन इन उतार-चढ़ावों के बीच जिंदगी निरंतर चलती रहती है, वह कभी नहीं रुकती। ऐसे में हमारा संपर्क कई लोगों से होता है और उनके साथ हम रहते हैं, कुछ परिवार के लोग होते हैं और कुछ हमारे संपर्क में बाद में आते हैं। जरूरी नहीं कि संबंध हमेशा सकारात्मक और खुशहाल तरीके से आगे बढ़ता है, इसमें किसी न किसी बात को लेकर असहमति भी हो सकती है और इसके कारण संबंधों में दरार पड़ना स्वाभाविक है।
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अहंकार और न झुकने की प्रवृत्ति, मानव स्वभाव का ऐसा स्याह पहलू है जो शिकायत को हमेशा पकड़े रहने और इसके कारण ईर्ष्या पैदा करने के लिए भी जिम्मेदार होता है। हमें कई बार ऐसा भी लगता है कि हम गलत हैं, लेकिन हम फिर भी झुकने और समझौता करने के लिए तैयार नहीं होते हैं, क्योंकि इससे हमारा आत्मसम्मान कम होता है।
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पुरानी बातें और पुरानी यादें हमेशा हमारे पीछे एक साये की तरह होती हैं। हम चाहकर भी न तो इनसे उबर पाते हैं और न ही इनको भूल पाते हैं, इसके कारण हमारे मन में शिकायत की भावना हमेशा जिंदा रहती है। यह कम नहीं होती और हम ईर्ष्या से भरे रहते हैं।
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शिकायत करना, ईर्ष्या रखना, द्वेष की भावना रखना आदि बातें एक-दूसरे की पूरक हैं। हम वास्तव में इससे निकलकर पुरानी कड़वी बातों को भूलकर वर्तमान में जीने की इच्छा रखते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं कर पाते हैं, क्योंकि हम हमेशा दूसरे से अपेक्षा रखते और यही चाहते हैं कि वह खुद आकर एक नई शुरूआत के लिए और हमारे संबंधों को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करे।
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जीवन एक बार मिलता है बार-बार नहीं और किसी बात या दुर्घटना के बाद यह रुकता भी नहीं, बल्कि निरंतर चलता रहता है। तो हम उन बातों को लेकर क्यों परेशान हों और उनके कारण अपने वर्तमान और भविष्य को दांव पर लगायें। इसलिए अगर आप पुरानी बातों से बाहर निकलकर एक नई शुरूआत करना चाहते हैं तो सबसे पहले पुरानी बातों को भूलने की कोशिश करें।
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जब भी हमारे साथ कोई बुरी घटना होती है तो इसके पीछे कोई सख्स जिम्मेदार होता है। वो सख्स आप भी हो सकते हैं, या फिर सामने वाला। लेकिन अगर किसी बात के लिए आप जिम्मेदार हैं तो इसे स्वीकार कीजिए और आगे बढ़कर शिकायत दूर करने की कोशिश कीजिए।
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पुरानी बातें और पुरानी यादें अच्छी हों तो वर्तमान भी खुशहाल होता है, लेकिन अगर पुरानी बातें और यादें कड़वी हों तो इसका असर वर्तमान के साथ भविष्य पर भी पड़ता है और इसके कारण आपका मानसिक संतुलन अनियंत्रित होता है। लेकिन अगर आप इन बातों को भूलकर एक नई शुरूआत करें तो जाहिर सी बात है इसके कारण आपके जीवन में बदलाव आयेगा और इससे आपका जीवन खुशहाल भी होगा।
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