एडीएचडी के लिए हर्ब्स
बहुत सी ऐसी परंपरागत उपचार विधियों भी है, जिनका इस्तेमाल कर इस समस्या से बचा जा सकता है। यह प्राकृतिक जड़ी बूटियां बहुत प्रभावी और आसानी से उपलब्ध होने वाली है।

एडीएचडी यानि अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर दिमाग से संबंधित विकार है। यह रोग किसी को भी हो सकता है। लेकिन बच्चों में इस रोग के होने की आशंका ज्यादा होती है। इस बीमारी के होने पर आदमी का व्यवहार बदल जाता है और याद्दाश्त कमजोर हो जाती है।

हालांकि एडीएचडी के विशिष्ट लक्षण अलग-अलग होते है, लेकिन बहुत जल्दी विचलित, अधिक बेचैन व्यवहार, ज्यादा देर बैठने में असमर्थ, बिना सोचे-समझे काम करना, काम में लापरवाही बरतना आदि इसके सामान्य लक्षण हैं। इसके अलावा बच्चों में क्लास में चिल्लाने, शिक्षकों या माता पिता की आज्ञा की अवहेलना करने, केंद्रित न रहना, होमवर्क टाइम पर या अच्छे से न कर पाने जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं।

एडीएचडी के इलाज के लिए कई चिकित्सा पद्धतियां उपलब्ध हैं। लेकिन, इनका इस्तेमाल बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं करना चाहिए। डॉक्टरी सलाह से यदि इन दवाओं और चिकित्सा पद्धतियों को अपनाया जाए, तो इस समस्या से बचा जा सकता है। ये प्राकृतिक जड़ी बूटियां बहुत प्रभावी और आसानी से उपलब्ध होने वाली हैं। एडीएचडी के लिए जड़ी बूटियों की सूची इस प्रकार है।

ब्राह्मी भारत के जंगलों में आसानी से उपलब्ध होने वाला पौधा है। इसकी पत्तियां और तना दोनों का उपयोग औषधियों के रूप में किया जाता है। इसके अलावा ब्राह्मी से बना काढ़ा मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ाने और सेहत सुधारने में मदद करता है। इस जड़ी-बूटी को एडीएचडी रोगियों के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है।

जिन्कगो बिलोबा ऐसे लोगों के लिए बहुत लाभकारी होता है जो अपनी याददाश्त में सुधार या मानसिक कुशाग्रता बढ़ना चाहते हैं। वर्ष 2011 में किए गए अध्ययन के अनुसार, एडीएचडी की समस्या से पीडि़त जिन लोगों ने जिन्कगों के संयोजन वाले हर्बल उत्पाद का इस्तेमाल किया उन लोगों को सकारात्मक परिणाम का अनुभव हुआ। अध्ययन में पाया कि इन प्रतिभागियों में कम से कम 44 प्रतिशत में सामाजिक व्यवहार में सुधार हुआ और लगभग 74 प्रतिशत सक्रियता के स्तर में सुधार पाया गया।

यह जड़ी-बूटी चीन से आती है। यह जड़ी-बूटी मस्तिष्क के कार्य के साथ ऊर्जा उत्पादन के लिए भी जानी जाती है। 2011 के अध्ययन में जिनसेंग लेने वाले प्रतिभागियों कहा कि उन्होंने इसको लेने के बाद अपने व्यक्तित्व, सोच और यहां तक कि अपने सामाजिक कार्य में भी परिवर्तन पाया।

यह जड़ी-बूटी दक्षिण अफ्रीका, एशिया और दक्षिण प्रशांत में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। गोटू कोला नामक यह जड़ी-बूटी पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें पोषक तत्व जैसे विटामिन बी 1, बी 6 और बी 2 शामिल होते हैं। यह मस्तिष्क के स्वस्थ विकास के लिए बहुत आवश्यक होती है। क्योंकि गोटू मानसिक स्पष्टता को बढ़ाने और चिंता के स्तर कम करने में मदद करती है, इसलिए यह एडीएचडी के रोगियों के लिए अच्छी तरह से काम करती हैं।

ग्रीन ओट्स अपरिपक्व ओट्स है जो तंत्रिकाओं को शांत करने, अशांत मन और शरीर को राहत देने में मदद करता है। हाल ही में हुए अध्ययन के अनुसार, ग्रीन ओट्स ध्यान को अच्छी तरह बढ़ाने के साथ-साथ एकाग्रता को बढ़ाने में भी मदद करता है। इसलिए इसे एडीएचडी के रोगियों के लिए उपयोगी माना जाता है।

गुअरना के बीज को प्राकृतिक उत्तेजक के नाम से भी जाना जाते है। इस जड़ी बूटी में कान्टीने एल्कलॉइड्स (xanthine alkaloids) के रूप में थियोब्रोमाइन, कैफीन और थियोफिलाइन पाया जाता है, जो एडीएचडी के लिए बनने वाली उत्तेजक दवाओं में मिलाया जाता है।

1998 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि एडीएचडी से पीडि़त बच्चों को नींद आसानी से नहीं आती। ऐसे बच्चों के लिए हर्बल टी काफी फायदेमंद होती है। इसमें मौजूद पुदीना, कैमोमाइल या लेमन ग्रास और अन्य ऐसी ही जड़ी-बूटियां अति सक्रिय मांसपेशियों को शांत करने में मदद करती हैं।

यह जड़ी-बूटी फ्रांसीसी समुद्री पाइन पेड़ से निचोड़ कर निकाली जाती है। सकनोजेनोल, सक्रियता को कम करने के साथ ही एकाग्रता और ध्यान में सुधार लाने के लिए जानी जाती है। 2006 के एक अध्ययन के अनुसार, सकनोजेनोल एडीएचडी से पीडि़त लोगों में न्यूरोस्टिमूलेंट डोपामाइन को लगभग 11 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

कुछ अध्ययनों के अनुसार, विभिन्न जड़ी बूटियों का संयोजन बच्चों और व्यस्कों दोनों में एडीएचडी के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। इसके लिए आपको अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए और विभिन्न विकल्पों जिन पर आप विचार कर रहें हैं उनसे बात करनी चाहिए।
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