हमारा डर

हम रोज किसी न किसी डर का सामना करते हैं। लेकिन कमाल की बात है डर कहीं बाहर नहीं होता, वह हमारे भीतर ही होता है। स्वार्थ की अधिकता और आत्मविश्वास की कमी और अज्ञानता के कारण हम डरते हैं। इसलिए यदि आपको अपने डर को जीतना है, तो पहले खुद को जीतना पड़ेगा। डर से भागो मत, उसका डट कर सामना करो। जितना डर से डरकर भागोगे, डर उतना ही पीछे भागेगा। Image courtesy: © Getty Images
मदद मांगने से डर

कहते हैं अकेला चना भाढ़ नहीं फोड़ सकता, और ये बात सच भी है, हमारा समाज एक दूसरे की मदद से ही चलता है। लेकिन जब मन में ये डर का भाव आ जाए कि आप मदद मांगने से कमजोर साबित होंगे तो यह एख व्यर्थ का डर है। Image courtesy: © Getty Images
आप आगे, डर पीछे

दूसरे हमसे ज्यादा खुश हैं और सारी परेशानियां हमारी ही तकदीर में लिखी हैं, ये सोच एक डर का रूप ले लेती है और हमारा पीछा करना शुरू कर देती हैं। इसी के चलते हम मुश्किलों का सामना करने के बजाय उनसे भागने लगते हैं। इस डर को भी आपको दूर करना होगा। Image courtesy: © Getty Images
कमजोर होने का डर

जिससे लड़ न पाओ, उससे दूर भाग जाना ही विकल्प है। वैसे, हम चाहें भी तो असफलता के डर से दूर नहीं भाग सकते, क्योंकि डर कहीं बाहर से नहीं आता, वह हमारे मन के अंदर ही बैठा रहता है। जैसे ही हम किसी चीज से भागना शुरू करते हैं, और खुद ही सोच लेते हैं कि हम कमजोर हैं और इस चीज के काबिल नहीं हैं। Image courtesy: © Getty Images
जिम्मेदारियों का डर

अमूमन अपनी असफलता, परेशानियों के लिए हम दूसरों को जिम्मेदार और दोषी मान लेने की कोशिश करते हैं, जबकि कुछ जिम्मेदारियां तो हमारी भी होती होंगी। ये जिम्मेदारियों का डर ही तो है। इस समस्या से बचने के लिए जो काम कल पर छोड़ा था, जिससे डर रहे थे, उसे उसी वक्त कर डालें।Image courtesy: © Getty Images
असफलता का डर

कोई भी ज़ीवन जीने की रूल बुक लेकर पैदा नहीं होता। माता, पिता, शिक्षको और बड़ो की उपयोगी सलाह के बावजूद, हम में से सबको को दुनिया में, अपने कई सबक खुद से सीखने पडते हैं। इसलिए न कि गलतियों से डर कर बैठ जाने के हमें गलतियां करके, उनसे सीख लेकर अपने रास्ते खुद ही बनाने चाहिए।Image courtesy: © Getty Images
स्वागत करें

इससे पहले कि डर आपको शर्मीला बना दे, अपने डर को स्वीकारें। उसे अपने शरीर में महसूस करें। उस पर बात करें। उसको कोई नाम देकर कहें कि डर आपका स्वागत है। Image courtesy: © Getty Images
माफी मागने से डर

कई बार लोगों ये समझने लगते हैं कि वे पारंगत हो चुके हैं और गलतियां करने की गुंजायिश ही नहीं बची है। ऐसे में वे न जाने क्यूं किसी से माफी मागने से डरने लगते हैं। उन्हें इसमें खुद के स्वभिमान को चोट पहुंचती दिखती है। जबकी माफी मांगना तो खुद को बेहतर बनाने के रूप है। Image courtesy: © Getty Images
खोजाने का डर

लोग अनायस ही कुछ खओ बैठने के डर में जीनें लगते हैं। जैसे कहीं मेरी नौकरी तो नहीं चली जाएगी, मेरा कोई अपना तो मुझे किसी कारण से नहीं छोड देगा, भविष्य में क्या होगा, आदि अनेक काल्पनिक भय। लेकिन ये पूरी तरह निर्थक होते हैं। बस सही तरह से काम करें और अपनी जिम्मेजारियों का वहन करें, सब ठीक ही होगा। Image courtesy: © Getty Images
याद करें

इससे पहले कि अपनी अक्षमताओं का डर आपको भीतर से कमजोर और अकेला कर दे, अपनी पिछली उपलब्धियों के बारे में सोचें। अपनी क्षमताओं को पहचानें और काम को करना शुरू कर दें। इसके साथ ही अपने काम को महत्वपूर्ण बनाएं और स्वस्थ रहें। फोकस की कमी या लगातार सेहत का ठीक न रहना भी कमजोर बनाता है। सबसे जरूरी सर्वश्रेष्ठ का इंतजार नहीं, बस गिल लगाकर काम करें और जीवन को खुल कर जियें। Image courtesy: © Getty Images