व्यायाम संबंधी ये 8 मिथ हैं भारतीयों के स्वास्थ्य में बाधक
भारतीयों में फिटनेस को लेकर कई भ्रांतियां हैं, हम फिटनेस को लेकर जागरुक हैं लेकिन सही तरीके से फिटनेस के नियमों को पालन नहीं करते जिसके कारण हम खुद को पूरी तरह से फिट रखने में सफल नहीं होते।

हमारे अच्छे और बुरे स्वास्थ्य के लिए हम ही जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि हमारी सोच और हमारे व्यायाम का तरीका ही हमें अस्वस्थ बनाता है। हमें लगता है कि रोज एक घंटे व्यायाम करना काफी है, या वेट लिफ्टिंग से हम बॉडी-बिल्डर जैसे दिखते हैं। कई और भी मिथक हैं जो भारतीयों के स्वास्थ्य में बाधक हैं।
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भारतीयों में सबसे बड़ा भ्रम इस बात का है जो लोग डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर आदि की समस्याओं से ग्रस्त होते हैं उनके लिए ही व्यायाम है। सामान्य जीवन यापन करने वाले लोग जब तक बीमारी का शिकार नहीं हो जाते नियमित रूप से व्यायाम नहीं करते, युवाओं की संख्या इसमें सबसे अधिक है। युवाओं को लगता है कि व्यायाम बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए और वे शारीरिक रूप से फिट हैं।
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भारतीय कैलोरी की गिनती के साथ व्यायाम करते हैं, वे यह सोचते हैं कि आप अगर उतनी मात्रा में कैलोरी लेते हैं और उसी मात्रा में उसे जलाते हैं तो आप फिट रहते हैं, जबकि यह सही नहीं है। कुछ लोगों को लगता है कि केवल टहलने मात्र से ही पूरा शरीर फिट रहता है, जबकि वास्तविकता यह है कि पूरे शरीर को फिट रखने के लिए टहलना ही पर्याप्त नहीं है।
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भारतीयों को लगता है कि शरीर को फिट रखने की परंपरा हमारे यहां नहीं है। जबकि सच यह है कि हम हजारों साल पहले से योग और सांस्कृतिक नृत्यों का अभ्यास करते आ रहे हैं जो हमारे शरीर को फिट रखने के लिए ही था।
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हमारे शरीर को फिट रहने के लिए रोज एक घंटे का वर्कआउट पर्याप्त है, लेकिन इसके साथ-साथ हमारे शरीर की अन्य गतिविधियों का असर भी हमपर पड़ता है। अगर आप रोज वर्कआउट करते हैं और एक ही जगह घंटों बैठकर जॉब करते हैं तो यह आपके फिटनेस के लिए ठीक नहीं। एक जगह 30 मिनट से ज्यादा बैठने से मधुमेह, दिल की बीमारियों, मोटापा, आदि का खतरा अधिक होता है।
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भारतीय घरेलू महिलाओं को लगता है कि उनके शरीर को फिट रखने के लिए घरेलू काम ही बहुत है, यह उनकी रोज की एक्सरसाइज की कमी को पूरा करता है। जबकि नियमित व्यायाम से ही शरीर को फिट रखा जा सकता है और बीमारियों से मुक्त रखा जा सकता है।
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कार्डियो वर्कआउट केवल दिल और फेफड़ों को मजबूत बनाता है। यानी अगर आप रोज 40-60 मिनट तक कार्डियो वर्कआउट करते हैं तो इससे आपके जोड़, हड्डियां, लिगामेंट्स आदि मजबूत होंगे, यह आपके मांसपेशियों के लिए बिलकुल भी असरकारी नहीं होगा। इसलिए कार्डियो के साथ-साथ स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी बहुत जरूरी है।
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लोगों को लगता है कि यदि वे स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करेंगे तो वे बॉडी-बिल्डर की तरह दिखेंगे। यानी हम फिल्मों में, इंटरनेट पर, तस्वीरों में बॉडी बिल्डरों की भयानक तस्वीरें देखकर डर जाते हैं और हमें लगता है कि यदि हम वेट ट्रेनिंग करेंगे तो हमारा शरीर भी ऐसा ही हो जायेगा, इसलिए हम वेट ट्रेनिंग से घबराते हैं। इसके अलावा हमारे अंदर यह भी मिथ है कि वेट ट्रेनिंग से वजन बढ़ता है।
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हमें लगता है अच्छे फिटनेस ट्रेनर और योग के शिक्षक केवल सेलीब्रेटीज के लिए होते हैं, हम उनकी तरफ ध्यान नहीं देते हैं और किताबों में पढ़कर या नेट पर देखकर व्यायाम करते हैं जो हमेशा गलत होता है। इसलिए अपने फिटनेस के उद्देश्यों को पाने के लिए जरूरी है कि किसी अच्छे ट्रेनर से संपर्क कीजिए और उसके निर्देशन में ही व्यायाम कीजिए।
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