इबोला वायरस से जुड़ी बातें जिनकी जानकारी है जरूरी
इबोला एक संक्रामक बीमारी है जो जानलेवा साबित हो रही है। पर्याप्त जानकारी ना होने के कारण लोग इस बीमारी केे चपेट में आ रहे हैं। जानिए इबोला वायरस से जुड़ी बातें जो आपको इससे बचाने में मददगार साबित हो सकती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इबोला एक वायरल बीमारी है। इस बीमारी की शुरुआती अवस्था में अचानक बुखार, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में खराश की शिकायत होती है। इसके बाद उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव भी हो सकता है।

मनुष्यों में इसका संक्रमण संक्रमित जानवरों, जैसे, चिंपांजी, चमगादड़ और हिरण आदि के सीधे संपर्क में आने से होता है। एक दूसरे के बीच इसका संक्रमण संक्रमित रक्त, द्रव या अंगों के संपर्क में आने से होता है। यहां तक कि इबोला के शिकार व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी खतरनाक हो सकता है। शव को छूने से भी इसका संक्रमण हो सकता है।

इबोला वायरस का जिनोम 19 केबी लंबा होता है। इसके जिनोम में सात स्ट्रक्चरल प्रोटीन होते हैं। लेकिन समस्या यह है कि इबोला की जेनेटिक्स लगातार बदलती रहती है, इसलिए इसे पढ़ पाना बेहद मुश्किल है। इसमें नेगेटिव सेंस आरएनए होते हैं। इस बीमारी के लक्षण सामने आने में 2 दिन से लेकर तीन हफ्ते तक का समय लग सकता है।

संक्रमण के चरम तक पहुंचने में दो दिन से लेकर तीन सप्ताह तक का समय लग सकता है। इससे संक्रमित व्यक्ति के ठीक हो जाने के सात सप्ताह तक संक्रमण का खतरा बना रहता है। इसलिए विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है।

जैसे ही आपको सिरदर्द, बुखार, दर्द, डायरिया, आंखों में जलन अथवा उल्टी की शिकायत हो, फौरन चिकित्सीय सहायता लें। समय पर ली जाने वाली सहायता किसी भी बीमारी को समय रहते पकड़ने में मदद करती है। इससे इलाज में काफी मदद मिलती है।

अपने हाथों को हमेशा साबुन और साफ पानी से धोएं। हाथों को सुखाने के लिए साफ तौलिए का इस्तेमाल करें। वायरस को मारने का यह सबसे असरदार तरीका है। हाथ धोने के लिए किसी खास साबुन की जरूरत नहीं होती है।

शिकार करने और जानवरों को छूने से बचें। बंदर, चिंपैंजी, चमगादड़ का मांस नहीं खाएं क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्यों में इसका संक्रमण इन्हीं जानवरों के संपर्क में आने से हुआ। इसके साथ यह भी सुनिश्चित करें कि खाने को ठीक से पकाया गया है।

इबोला वायरस से बचने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं एवं मेडिकल स्टाफ को दस्ताने, मास्क एवं बाडी सूट जैसे सुरक्षात्मक उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए। इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले स्वस्थ व्यक्तियों को भी दस्ताने व मास्क जरूर पहनने चाहिए।

आपके आसपास कई ऐसे लोग हैं, जो इंटरनेट, टीवी अथवा खबरों के अन्य स्रोतों का इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे लोगों तक जरूरी जानकारी पहुंचाने का काम करें। इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरुक बनाकर आप इसे फैलने से रोकने में अपना योगदान दे सकते हैं।

इबोला का पता लगाने के लिए कई तरह की जांच करायी जाती है जिनमें एलिसा ( एंटीबॉडी-कैप्चर एंजाइम पोलीमेरेज चेन रिएक्शन), एंटीजेन डिटेक्शन टेस्ट, सीरम न्यूट्रलाइजेशन टेस्ट आदि मुख्य है। इनके जरिए रोगियों में इबोला वायरस की पुष्टि की जा सकती है।

इबोला संक्रमण में मरीज को बिल्कुल अलग जगह पर रख कर उसका इलाज किया जाता है, ताकि संक्रमण बाकी जगह न फैले। मरीज में पानी की कमी नहीं होने दी जाती। उसके शरीर में ऑक्सीजन स्तर और ब्लड प्रेशर को सामान्य रखने की कोशिश की जाती है।

इबोला वायरस का संक्रमण लाइलाज है, अब तक इसकी वैक्सीन भी नहीं खोजी जा सकी है, इबोला संक्रमण के 90 फीसदी मामलों मौत तय मानी जाती है। यही वजह है कि इबोला के महामारी बन जाने के खतरे से दुनिया डरी हुई है, लेकिन इबोला के इलाज की कोशिशें भी तेज हो गई हैं। हालांकि जापान में इस बीमारी का इलाज खोजे जाने का दावा किया है। और उम्मीद है कि जल्द ही इसका इलाज बाजार में आ जाएगा।
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