बहरापन

सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होना बहरापन कहलाता है।कान सुनने की क्षमता धीरे-धीरे खोने लगते हैं, जन्मजात तीन-चार प्रतिशत यह समस्या देखने में आती है। कानों के कम सुनने की क्षमता किसी भी आयु में हो सकती है। कई बार ये चोट लग जाने या किसी तरह के संक्रमण के कारण भी हो जाती है। इसको लेकर लोगों के मन में कई तरह की गलत धारणा बी बैठ जाती है। इनके बारें में जानें। Image Source-getty
मिथ: सभी करते है साइन लैंग्वेज का प्रयोग

सच्चाई: सभी नहीं करे साइन लैंग्वेज का प्रयोग जरूरी नहीं है कि बहरेपन के सभी रोगी साइन लैंग्वेज का प्रयोग करे, या उन्हें समझ ही आती हो। बहरे रोगी की बातचीत बहरेपन की डिग्री पर निर्भर करती है। कुछ लोग सुनने वाली मशीन या फिर कर्णावर्त तंत्रिका इंप्लांट करा लेते है। सुनने की शक्ति और समस्या की प्रकृति पर निर्हर करता है कि बहरे लोग किस तरह से संवाद करते है। Image Source-getty
मिथ: आवाज तेज कर देने से सुनाई पड़ने लगेगा

सच्चाई: कुछ लोग आशिंक रूप से बहरेपन का शिकार होते है, जिनके लिए संभव है कि आवाज को थोड़ा तेज कतर देने पर उन्हें सुनाई पड़ जाए। जिनकी सुनने की क्षमता ज्यादा कमजोर होती है उनके साथ ये तरीका प्रभावकारी नहीं होता है। बहुत संभव है कि स्पीकर की तुलना में माइक्रोफोन से ज्यादा साफ सुन लें, पर मानव के जोर बोलने से साफ सुनाई देना जरूरी नहीं होता है। Image Source-getty
मिथ: सुनने की मशीन और इंप्लांट से सामान्य सुन सकते है

सच्चाई: सुनने की मसीन या इंप्लांट कराना ठीक वैसे ही है जैसे कमनजोर आंखों के लिए चश्मा पहनना होता है। ये ,सुनने की क्षणता को बढ़ा सकते है लेकिन सामान्य नहीं कर सकते है। किस परिस्थिति में व्यक्ति को कौन सा इंप्लांट लगेगा, इस संदर्भ में राय किसी ईएनटी विशेषज्ञ की योग्यता पर निर्भर करती है।Image Source-getty
मिथ:बहरे लोग बेवकूफ होते है

सच्चाई: बहरापन एक शारीरिक अंपगता है, इसका बौद्धिक स्तर से कोई संबंध नहीं होता है। जरूरी नहीं कि अगर किसी की सुनने की क्षमता कमजोर है तो बौद्धिक रूप से भी वह कमजोर होगा। सामान्य लोगो की तुलना में कई बार रेस्पॉस करने में धीमे होते है लेकिन क्षमता में कमी नहीं होती है।Image Source-getty