सीओपीडी में फिजियोथेरेपी से ऐसे पाएं आराम
सीओपीडी की समस्याओं से छुटकारा दिलाएंगे ये फिजियोथेरेपी एक्सरसाइज।

सीओपीडी मतलब क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज। इस बीमारी की वजह से ब्रोन्कीअल ट्यूब में सूजन हो जाती है जिसके वजह से फेफड़ों में बलगम की समस्या शुरू हो जाती है और हमेशा मरीज को खांसी रहती है। फिजियोथेरेपी ट्रीटमेंट के द्वारा इस सूजन में कमी करवाई जाती है, जिससे की सीओपीडी के लक्षणों में कमी आ सके। फिजियोथेरेपिस्ट चेस्ट फिजिशियन और रिहैब स्पेशलिस्ट के साथ मिलकर एक्सरसाइज्स प्रक्रियाओं की पूरी रूटीन लिस्ट बनाते हैं जिनके द्वारा फेफड़ों में जरूरी मात्रा में हवा पहुंचाई जाती है।

इस चेस्ट फिजियोथेरेपी तकनीक को सीओपीडी के लिए विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल ब्रोन्कीअल या फेफड़ों में जमे कफ को कम करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा ये एक्सरसाइज सांस लेने में होने वाली तकलीफों से जुड़ी सारी समस्याओं से राहत दिलाने का भी काम करती है। पोस्ट्युरल ड्रेनेज के द्वारा फिजियोथेरेपिस्ट फेफड़ों से तरल पदार्थों को निकालने का काम करते हैं जिससे मरीजों को काफी आराम मिलता है। यह सीओपीडी के सारे मरीजों के लिए जरूरी है।

इसमें हाथों की क्लैपिंग करने के बजाय छाती की क्लैपिंग की जाती है। मतलब चेस्ट पर थपकियां दी जाती है। इस एक्सरसाइज में थेरेपिस्ट फेफड़े से बलगम निकालने के लिए हाथों की अंजुली बनाकर या पर्कसर (percussor) द्वारा चेस्ट को झंझोड़ते हैं जिससे कि फेफड़ों में जमा बलगम या कफ ढीला हो जाता है और वह आसानी से मरीज के शरीर से बाहर निकल जाता है। अगर मरीज को खांसने में समस्या होती है और शरीर से कफ निकलने में परेशानी होती है तो इंटरमिटेंट पॉजिटिव प्रेशर ब्रीदिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

फेफड़ों में जमे बलगम को निकालने के लिए ब्रीदिंग एक्सरसाइजे काफी फायदेमंद है। ये आप घर पर भी कर सकते हैं। इस एक्सरसाइज के दौरान जैसे-जैसे आप सांस लेते हैं वैसे-वैसे फेफड़ों में सांस भरती जाती है जो बलगम को फेफड़ों से निकालने में आवश्यक होती है। इसी तरह पर्स्ड लिप ब्रीदिंग एक्सरसाइज भी की जा सकती है। यह तकनीक काफी देर तक चलती है और यह ऐसे मरीज़ों के लिए फायदेमंद है जो फेफड़ों में आसामान्य एयरस्पेस या एम्फिसिमेटस बुले से पीड़ित हैं।

बैठने का तरीका भी सीओपीडी पर काफी प्रभाव डालता है। इस तकनीक में मरीजों को सही से बैठने और चलने-फिरने के टिप्स दिए जाते हैं। इसकी हिदायत सीओपीडी के शुरुआती समय में दी जाती है। थेरेपिस्ट शरीर को सही मुद्रा या पॉस्चर में रखने के तरीके बताता है। इसमें छाती के ऊपरी भाग और छाती के निचले हिस्से की गतिविधियों के बीच सही तीरके से सामंजस्य बैठाया जाता है। मरीज़ को सर झुकाने या कंधों को सिकोड़ने से मना किया जाता है।
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