पहले शिशु की देखभाल

जहां एक ओर पहले बच्चे के जन्म के साथ घर में ढेर सारी खुशियां आती हैं, वहीं माता-पिता की जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। पहले बच्चे के जन्म के साछ ही हर मां चाहती है कि उसका नन्हा-मुन्ना सुंदर, बुद्धिमान व हष्ट-पुष्ट बने। इसके लिए वो तरह-तरह के जतन करती है। शिशु बहुत नाजुक व कोमल होते हैं इसलिए उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है।
संक्रमण से रखें अपने शिशु को दूर

पहले के समय में प्रसव के बाद मां और शिशु दोनों को अलग एक कमरे में रखा जाता था, जहां पर किसी भी मित्र या घर के सदस्‍यों का जाना मना था। यह मां और शिशु को किसी रोग या संक्रमण से बचाने के लिए किया जाता था। आज भी अपने शिशु को संक्रमण से दूर रखना अतना ही जरूरी होता है। इसलिए फसव के बाद घर में शिफ्ट होने से पहले पूरी साफ-सफाई करा लें, और हो सके तो अपना बिस्तर अलग करा लें।
शिशु की मालिश

शिशु के जन्म के 20 दिन बाद से ही मालिश शुरू करनी चाहिए। ध्यान रहे मालिश हल्के हाथों से और कोमलता से करनी चाहिए। तेज मालिश करने पर शिशु की मांसपेशियां खिंच सकती हैं और उसकी मुलायम हडि्डयां भी टूट सकती है। सर्दी के मौसम में शिशु की मालिश उसे धूप में लिटाकर करनी चाहिए, ताकि उनके शरीर को विटामिन डी मिल सके। डॉक्टर की सलाह पर मालिश के लिए विटामिन `डी´ और `ई´ युक्त तेल का ही प्रयोग करें।
मालिश के बाद शिशु को जरूर नहलाएं

मालिश के बाद शिशु को नहलाने का समय भी होना चाहिए नहीं तो तेल त्वचा में लगा रहेगा और उसमें धूल, गन्दगी आदि चिपक कर त्वचा व शरीर में संक्रमण हो सकता है। रात में शिशु की मालिश न करें।
नवजात शिशु का पहला टीका है जरूरी

नवजात का समय-समय पर वैक्सिनेशन (टीकाकरण) होता है। नवजात को पैदा होने से लेकर दस साल तक की आयु के बीच में अलग-अलग बीमारियों के अलग-अलग वैक्सीन दिए जाते हैं। शिशु के जन्म के बाद लगने वाला पहला टीका 'बीसीजी' होता है। जो बच्चे के जन्म से लेकर दो सप्ताह तक के भीतर लग जाना चाहिए। यह टीका समय से लगना बेहद जरूरी होता है।
देखभाल के लिए अपनाएं परंपरागत तरीके

नवजात शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने के कारण उसे संक्रमण का खतरा अधिक होता है। ऐसे में शिशु को बिना हाथ साफ किए नहीं छूना चाहिए। घर के बड़े-बुजुर्ग के पास शिशु की देखभाल के लिए काफी कारगर तरीके होते हैं, उनकी सहायता लें। बिना हाथ पैर धोए मां और शिशु के कमरे में न जाएं। अपने चप्पल-जूते कमरे के बाहर ही उतारें। सेनेटाइजर का प्रयोग करें।
कंगारू देखभाल

नवजात और उसके माता-पिता के बीच त्वचा से त्वचा के संपर्क को कंगारू देखभाल कहा जाता है। यह नवजात की देखभाल का बड़ा कारगर तरीका है। कंगारू देखभाल माता या पिता-किसी के भी द्वारा दी जा सकती है। इसमें केवल एक डायपर में शिशु, माता-पिता के नंगे सीने से लगया जाता है। कंगारू देखभाल के तहत बच्चे को एक दिन में इस तरह से 4 घंटे लगभग 20 से 25 मिनट के लिए पकडा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, बच्चे की पीठ को एक कंबल से जरूर ढक लेना जाना चाहिए। यह प्रक्रिया काफी कुछ कंगारू थैली की तरह होती है, इसलिए इसे कंगारू देखभाल कहाते हैं।
नाखून काटते समय रखें खयाल

नवजात के नाखून तेजी से बढ़ते हैं इसलिए उनके नाखूनों को हफ्ते में कम से कम एक बार व पैरों को नाखूनों को महीनें में कम से कम एक बार जरूर काटना चाहिए। लेकिन नाखून काटने के लिए बच्चों के लिए बनाए गए नेलकटर्स का ही प्रयोग करें। यदि शि‍शु के नाखून उसे नहलाने के तुरंत बाद काटे जाएं तो असानी रहती है। नाखून काटने के बाद उसे नेल फाइल के सहारे नुकीले किनारों को समतल बनाएं, ताकि वे खुद को चोट न पहुंचा लें।
इतना बुरा भी नहीं शिशु का रोना

शिशु के रोने का हमेशा ये मतलब नहीं कि वह किसी तकलीफ में है। बल्कि देखा जाए तो यह शिशु के लिए अच्छा अभ्यास है। हां थोड़ा सचेत रहना हमेशा जरूरी होता है, लेकिन रोने पर उसे डांटना या मारना तो कतई नहीं चाहिए। यदि शिशु रोए तो उसे प्यार से चुप कराना चाहिए। इससे वह भावनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित महसूस करता है। सामान्यतः शिशु अधिक तब रोते हैं जब उनके पेट में तकलीफ होती है। यदि बच्‍चा बहुत ज्‍यादा रो रहा हो तो, तो यह किसी अन्‍य तकलीफ का लक्षण भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में उसे डॉक्‍टर दिखाएं।
ध्यान से उठायें

शिशु के सिर और गर्दन बेहद नाजुक होते हैं, इसलिए अपने नवजात शिशु को उठाते समय उसके सिर और गर्दन का खास खयाल रखने की जरूरत होती है। शिशु को उठाते समय उसे सिर के नीचे सपोर्ट जरूर दें। जब भी बच्‍चे को गोद में उठायें उसके सिर के नीचे हाथ जरूर रखें।