बच्चे की खुद से परवरिश करने के हैं ये फायदे
बच्चे का पालन-पोषण बेबीसीटर के बजाय खुद करें, क्योंकि बच्चों को पालन-पोषण के साथ प्यार की भी जरूरत होती है, इस स्लाइडशो में हम आपको बच्चों की खुद से देखभाल से होने वाले कई फायदों के बारे में बता रहे हैं।

बच्चे... जो होते हैं थोड़े कच्चे। इस कच्चेपन को पक्का करता है आपका प्यार। क्योंकि पालन-पोषण तो हर बच्चे का होता है। लेकिन मां-बाप का प्यार ही होता है जो बच्चे को पक्का बनाता है। लेकिन शहरीकरण लाइफस्टाइल में ये प्यार कहीं खो सा गया है और प्यार को कम्प्रेस कर बच्चों की परवरिश के लिए बेबीसिटिंग का चलन बढ़ गया है। बेबीसीटिंग में बच्चे का पालन-पोषण और उसकी देख-रेख की जिम्मेदारी आया करती है। बेबीसीटिंग का चलन आजकर हर फैमिली में चल गया है। जबकि बेबीसीटिंग से बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं।

बेबीसीटिंग में बच्चे का ख्याल तो काफी अच्छे से रखा जाता है लेकिन उन्हें अपनत्व का एहसास नहीं हो पाता जिससे बच्चे भावनात्मक नहीं हो पाते और चिड़चिड़े हो जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि बच्चे का पालन-पोषण खुद से करें। खासकर पहले के चार साल में। इन सालों में बच्चों का विकास होता है औऱ बच्चे देखकर नई चीजें सीखते हैं।

इन चीजों का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों की भावनाओं पर पड़ता है। बच्चे भावुक होते हैं और एक-दूसरे की फीलिंग्स की कद्र करना सीखते हैं। इससे बच्चे और मां-बाप का रिश्ता अच्छा बनता है। बच्चों में समझदारी आती है और वे जिद्दी नहीं बनते हैं। अपनी फीलिंग्स के साथ दूसरों की फीलिंग्स की कद्र करते हैं।

बच्चे पढ़ने में तेज होते हैं। माली की माताओं पर हुई स्टडी के अनुसार मां और बच्चे के बीच की कम्युनिकेशन बच्चे को चीजें सीकने में मदद करती है और ये अटैचमेंट थियोरी की रीढ़ होती है। यही कम्युनिकेशन बच्चे की आईक्यू लेवल को बढ़ाने का काम करती है।

मां-बाप का प्यार ही आधी परेशानी खत्म कर देता है और बच्चे मेंटली और फिजिकली खुश और स्वस्थ रहते हैं। अटैचमेंट थियोरी का आधार बच्चे और अभिभावकों के बीच के रिश्ते की प्रकृति पर निर्भर करता है। इस पर द्वितिय विश्वयुद्ध के दौरान शोध भी हो चुकी है। शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि द्वितिय विश्वयुद्ध के दौरान हॉस्पीटल और अनाथालय में रहने वाले विकलांग बच्चे और असहाय बच्चों को (जो अपने घर से अलग हो गए थे) केवल खाने और अन्य चीजों के बजाय सबसे अधिक प्यार की जरूरत होती है।

अटैचमेंट थियोरी बच्चे को तनवरहित रखते हैं। बच्चों का माता-पिता के साथ सोना उन्हें हर डर से दूर रखता है। इससे बच्चे को हमेशा अपने पास किसी की मौजूदगी का अहसास रहता है जो उन्हें डर और अनजाने वातावरण के बजाय फ्रीडम वाला वातावरण उपलब्ध कराते हैं। ऐसे में अगर कोई बाहर उन्हें परेशना करता है तो वो उस चीज के कारण अंदर-अंदर घुटने के बजाय मां-बाप को तुरंत बता देते हैं। इससे बच्चों में तनाव नहीं होता और बच्चे खुश रहते हैं।

दादा-दादी और बड़ी फैमिली में रहने के कारण बच्चे व्यवहारशील होते हैं। अपने मां-बाप को अपने दादी-दादी के साथ अदब से पेश आता हुआ देख आदर और अबद शब्द को जानने के साथ ही उसे अपने व्यवहार में उतारते हैं। इससे बच्चे की सोशल लाइफ अच्छी रहती है। मां-बाप के साथ सोने और उनके साथ चीजें शेयर करने के कारण बच्चे एडजस्टमेंट जैसे शब्दों से अपरिचित नहीं होते। साथ ही हर जगह आसानी से एडजस्ट कर लेते हैं।
इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।