विश्व पार्किंसंस दिवस : आयुर्वेदिक उपचार से संभव है इस घातक रोग का इलाज
पार्किंसंस रोग का उपचार प्राकृतिक तरीके से करने के लिए आप आयुर्वेद की मदद ले सकते हैं। आयुर्वेंदिक उपचार की मदद से बीमारी से छुटकारा पाने के साथ-साथ आपका शरीर भी पूरी तरह स्वस्थ रहता है।

पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्पन्न होती है।

पार्किसन के लिए ब्राह्मी को वरदान माना जाता है। यह दिमाग के टॉनिक की तरह काम करती है। भारत में सदियों से कुछ चिकित्सक इसका उपयोग स्मृति वृद्धि के रूप में करते आ रहे हैं। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर के अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी मस्तिष्क में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने के साथ मस्तिष्क कोशिकाओं की रक्षा करती है। पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के द्वारा किए एक अन्य अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी के बीज का पाउडर पार्किंसंस के लिए बहुत बढि़या इलाज है। यह रोग को दूर करने और मस्तिष्क की नुकसान से रक्षा करने करने का दावा करती है।

भारत में लोकप्रिय जड़ी बूटी काऊहेग या कपिकछु देश भर में तराई के जंगलों की झाड़ियों में पाया जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर ने काऊहेग के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें लेवोडोपा या एल-डोपा, दवा में मौजूद एल-डोपा की तुलना में पार्किसंस रोग के उपचार में बेहतर तरीके से काम करता है।

हल्दी एक ऐसा हर्ब है, जिसमें मौजूद स्वास्थ्य गुणों के कारण हम इसे कभी अनदेखा नहीं कर पाते। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बसीर अहमद भी इसके बहुत बड़े प्रशंसक है। उन्होंने एक ऐसी शोधकर्ताओं की टीम का नेत्तृव भी किया, जिन्होंने पाया कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन नामक तत्व पार्किंसंस रोग को दूर करने में मदद करता है। ऐसा वह इस रोग के लिए जिम्मेदार प्रोटीन को तोड़कर और इस प्रोटीन को एकत्र होने से रोकने के द्वारा करता है।

जिन्कगो बिलोबा को पार्किंसंस से ग्रस्त मरीजों के लिए एक लाभकारी जड़ी-बूटी माना जाता है। मेक्सिको में न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी के राष्ट्रीय संस्थान में 2012 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, जिन्कगो पत्तियों के सत्त पार्किंसंस के रोगी के लिए फायदेमंद होता है। पत्तियों के सत्त ने मध्यमस्तिष्क डोपामाइन न्यूरॉन क्षति के खिलाफ न्यूरोप्रोटेक्टिव और न्यूरोरिकवरी के प्रभाव को दिखाया। तब शोधकर्ताओं ने घोषणा की, "ये अध्ययन भविष्य में पीडी उपचार के एक विकल्प के रूप में सुझाव देता हैं।"
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