शरीर को कुदरत से मिले इन तोहफों से अनजान है आप!

न्यूकासल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि पानी में रहने पर इसलिये सिकुड़ जाती हैं, ताकि उन्हें बेहतर ग्रिप मिल सके और वे फिसलें नहीं। है ना ये कितनी कमाल की बात जिस पर शायद आपने कभी गौर ही नहीं किया होगा। चलिये ऐसे ही कुछ और भी कुदरती प्राकृतिक सुरक्षा के तरीकों के बारे में जानते हैं जिन पर हमने पहले कभी गौर तो नहीं किया, लेकिन ये हैं बड़े कमाल के -
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कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, शर्माना या ब्लश करने को संचार के एक उत्पाद की तरह विकसित हुआ है और दूसरे इंसान के साथ सामाजिक संपर्क बनाने में सहायक है। यह दूसरों के लिये संकेत होता है कि हम परेशान या शर्मिंदा हैं, और उन्हें शायद हमें अकेला छोड़ देना चाहिए। तो अगली बार जब कोई व्यक्ति आपकी वजह से ब्लश कर रहा हो तो समझ जाइयेगा कि आपको क्या करना है।
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आप इन्हें पंसद करें या ना करें, सर्दी में होने वाले ये फनी छोटे छोटे दानों का उभरना हमारे लिये अच्छा होता है। ये हमें बेहद जल्दी गर्मी प्रदान करते हैं। साइंटिफिक अमेरिकन जर्नल के अनुसार ये उस वक्त की निशानी हैं, जब हम लोग पूरी तरह से फर से ढ़के हुआ करते थे।
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जब वायरस हमारे एयरवेज (वायु द्वारों) के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं तो सफेद बलगम एक अवरोधक (दरबान) का काम करता है और कीटाणुओं से छुटकारा पाने के लिए छिंकने का सहारा लेता है। लेकिन लोग केवल तब ही नहीं छइंकते हैं, जब उन्हें सर्दी लग गई हो। शरीर नें छींक को एलर्जी का मुकाबला करने के एक तरीके के रूप में विकसित किया है। आम धारणा के अनुसार हमारे छींक 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार की होती है, जबकि डिस्कवरी चैनल के मुताबिक छींक की रफ्तार औसतन 40 मील प्रति घंटा है। छींक की ही तरह पसीना आना, रोना और खुजली होना भी शरीर से संबंधित कुदरती रक्षा कवच ही होते हैं, और गहरे संकेत देते हैं।
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