एड्स को कैसे रोकें

एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस एक ऐसा वायरस है, जिसकी वजह से एड्स होता है। यह वायरस एक इनसान से दूसरे इनसान में फैलता है। जिस इनसान में इस वायरस की मौजूदगी होती है, उसे एचआईवी पॉजीटिव कहते हैं।

एचआईवी पॉजीटिव होने पर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है और शरीर पर तरह तरह की बीमारियां और इन्फेक्शन पैदा करने वाले वायरस अटैक करने लगते हैं। अगर आप इसकी चपेट में आने से बचना चाहते हो तो इसे रोकने के उपायों के बारे में जरुर जानकारी हासिल करें। स्लाइड शो में दिए गए उपायों द्धारा रोकिये एड्स को फैलने से-

संक्रमित पार्टनर के साथ एक बार के असुरक्षित सेक्स से भी एड्स फैल सकता है। अत: एड्स और एचआईवी संक्रमण को रोकने के लिए, हमेशा संबंध बनाते वक्त कंडोम का उपयोग करें। जो सबसे उत्तम उपाय है।

अपने साथी के साथ वफादार रहें। यह हमेशा अच्छा होता है। अपने जीवनसाथी के प्रति हमेशा वफादार रहें। बिना प्रोटेक्शन के अलग अलग पार्टनर के साथ सेक्स संबंध बनाने से यह संक्रमण जल्द फैलता है।

संक्रमित खून चढ़ाने के कारण एड्स होने के मामले लगभग 2.57 प्रतिशत हैं। इसलिए किसी भी तरह का इंजेक्शन लगवाने से पहले लें कि उसकी सुई नयी हो नहीं तो खून से भी एड्स फैल सकता है। यदि कोई व्यक्ति एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो वह रक्तदान कभी ना करें।

कई लूब्रकन्ट में रसायन और तेल का प्रयोग होता है जिससे कंडोम के फटने का डर होता है। हमेशा वॉटर बेस लूब्रकन्ट का ही प्रयोग करें। कई बार कंडोम को गलत तरीके से प्रयोग करने से भी वह कट-फट जाता है और वायरस आपको जकड़ लेता है। इसलिए इस बात का भी ध्यान रखें कि कंडोम का प्रयोग सही तरीके से ही करें। साथ ही नॉनक्सीनल-9 युक्त कंडोम का इस्तेमाल करें, जो एड्स के वायरस को नाकाम कर देता है।

ज्यादातर मामलों में एचआईवी इन्फेक्शन का पता दो हफ्ते के बाद टेस्ट कराने पर ही पता चल पाता है उससे पहले नहीं। कई मामलों तो इसमें छह महीने भी लग जाते हैं। एचआईवी को शरीर में ऐक्टिव होने में छह महीने तक लग सकते हैं। इसलिए तीसरे और छठे महीने बाद एक बार फिर एच.आई.वी परीक्षण अवश्य दोहरायें।

यूएस हेल्थ एंड सर्विस डिपार्टमेंट के अनुसार,मां के दूध में भी एचआईवी वाइरस हो सकते हैं इसलिये यदि किसी को एड्स हो गया है तो उसे बच्चे को स्तनपान नहीं करवाना चाहिए। इसके लिए एचआईवी पॉजीटिव माताएं बच्चे को अपना दूध न पिलाकर तथा एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी के उपयोग से बच्चे के संक्रमित होने के जोखिम को कम कर सकती है।
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