जानिए डेंगू से जुड़ी ये 5 अनजानी बातें
डेंगू बुखार आजकल महामारी का रूप ले रहा है। आज हम आपको इससे जुड़ी कुछ अनजानी बातें बताते है जो आपको पहले किसी ने नहीं बताई होगी, इस बारे में विस्तार से जानने के लिए ये स्लाइडशो पढ़ें।

डेंगू संक्रामक नहीं होता है। ये एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलता है, बल्कि डेंगू वायरस से ग्रस्त मच्छर के दूसरे व्यक्ति को काट लेने से होता है। डेंगू चार प्रकार का होता है। एक बार में केवल एक ही तरह का डेंगू होता है। दूसरी बार डेंगू होने का मतलब दूसरी प्रकार का डेंगू होता है। डेंगू को लेकर लोगो में यह भ्रम होता है कि प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है। पर सच इससे अलग है। ज्यादातर मामलों में प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती केवल मरीज का प्लेटलेट्स काउंट 10,000 से कम होने लगें तो स्थिति जानलेवा हो सकती है।
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लोगो में एक भ्रम यह भी होता है कि प्लेटलेट्स की कमी के कारण मौत हो जाती है। पर डेंगू में मौत का असली कारण कैपिलरी लीकेज होता है। अगर मरीज को कैपिलरी लीकेज शुरू होती है तो मरीज को शरीर के प्रति किलो वजन के हिसाब से 20 मिलीलीटर प्रति घंटा तरल आहार देते रहना चाहिए। यह तब तक करते रहना चाहिए, जब तक हाई और लो ब्लड प्रेशर का अंतर 40 से ज्यादा न हो जाए या मरीज ठीक तरह से पेशाब ना करने लगे।
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डेंगू का मच्छर दिन के उजाले में घरों के अंदर या बाहर काटता है लेकिन अगर रात में लाइट जल रही हो तब भी ये मच्छर काट सकते हैं। खासकर सुबह सूरज उगते और शाम डूबते समय ये ज्यादा होते हैं। डेंगू के मच्छर के काटने की सबसे पसंदीदा जगह, कोहनी के नीचे या घुटने होते हैं। 15 से 16 डिग्री से कम तापमान में ये मच्छर पैदा नहीं हो पाते। जुलाई से अक्टूबर तक यह बीमारी चरम पर होती है।
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डेंगू मच्छर एक बार में 100 के करीब अंडे दे सकता है, और इसका जीवन लगभग 2 हफ्तों का होता है। इस मच्छर के द्वारा मनुष्य के शरीर में छोड़ा गया वायरस सीधे श्वेत रक्त कोशिकाओं में घुसकर सबसे पहले शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर आक्रमण करता है। इसके द्वारा महज एक बार काटा जाना किसी व्यक्ति को जानलेवा स्थिति में पहुंचने के लिए काफी है।
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दिल्ली स्वास्थ्य मंत्रालय की एक समीक्षा रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 41 फीसदी मच्छर प्लास्टिक के ड्रम और कंटेनर में पैदा होते हैं, जिनका इस्तेमाल मुख्य रूप से घरों और दुकानों में पानी जमा करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा कूलरों से 12 फीसदी और निर्माण स्थलों पर मुख्य रूप से इस्तेमाल होने वाले लोहे के कंटेनर में 17 फीसदी मच्छर पैदा होते हैं।
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