क्यों घर की याद आती है

शहरीकरण के दौर ने लोगों को अपनों से जुदा कर दिया है। कोई पढ़ने के लिए घर छोड़ रहा है तो कोई नौकरी के लिए घर से बाहर निकल दूसरे शहर जा रहा है। लेकिन बाहर जाकर कुछ नए लोगों से मुलाकात होती है, नए दोस्त बनते हैं, फिर भी घर की याद है कि सताना बंद ही नहीं करती। वहीं जब घर पर रहते थे तो लगता था कि बाहर कब निकले। अकेले होते तो ये करते, वहां घूमने जाते, ये खाते और जब अकेले घर से दूर रहने को मिला है तो घर की याद में ही दिन गुजर जाता है। आखिर ऐसा क्यों? इस क्यों का जवाब ये पूरा स्लाइड शो पढ़कर जानें।
मां के हाथ का खाना

पहला और सबसे जरूरी कारण- मां के हाथ का खाना। बाहर पिज्जा खा लो, फाइव स्टार में खाना खा लो लेकिन मां के हाथ के खाने की भूख कहीं नहीं मिटती। मालुम नहीं, ऐसा क्या डालती थी मां साधारण से आलू भुझिया और रोटी में कि उसकी याद तो सबसे ज्यादा सताती है जो स्कूल के दौरान टीफिन में दिया करती थी।
बिल चुकाना

कपड़े धोने का, बिजली का, फोन का, पानी का, सब का बिल जब खुद चुकाते हैं तो मालुम चलता है कि खुद अकेले का ही खर्च कितना है जिसको चुकाते-चुकाते पूरी सैलेरी कम पड़ जाती है लेकिन ये बिल हैं कि कम ही नहीं होते। बिल चुकाते-चुकाते पैसा भी हाथ से गया और मन का भी कुछ नहीं कर पाए तो दिल दुखेगा नहीं तो क्या होगा।
पिज्जा खाकर पिज्जा की तरह फैलना

पहला दिन- क्या आज थक गए हैं। कोई नहीं पिज्जा का कॉम्बो पैक मंगा लो। सस्ता और ज्यादा भी। दूसरा दिन- आज भी मन नहीं कर रहा खाना बनाने का। पिज्जा मंगा लेती हूं। तीसरा दिन- आज बहुत लेट हो गई हूं। पिज्जा ही ठीक रहेगा। ऐसे ही करते-करते हफ्ते के पांच दिन पिज्जा पर गुजर जाएंगे और आप अच्छे खाने को तरस जाएंगे। ऐसे में घर की याद नहीं आएगी तो क्या होगा। जहां घर घुसते ही मां खाना कर के रख देती थी। अपना काम था खाकर सो जाना। अकेले तो कुछ भी नहीं??? और इसके विपरीत पिज्जा खा-खाकर शरीर फैल गया है।
बिस्तर की चादर नहीं बदली

तीन महीने से बिस्तर की चादर नहीं बदली। चूहे भी महक कहें या दुर्गंध कहें, अब आपकी चादर से दूर भागने लगे हैं। अब खुद दूर कब भोगोगे? इतनी गंदी चादर देखकर घर की याद आना लाजिमी है मेरे दोस्त। घर में हर पांच दिन बाद चादर बदल दी जाती थी और हमेशा चादर से खुशबू ही आते रहती थी और यहां है कि तीन महीने बाद भी यही सोच रहे हैं कि अभी तो एक महीने और चल जाएगी।
दोस्त हैं कि दुश्मन

नया शहर- हां। नई जगह- हां। नए लोग- हां। अच्छे दोस्त -नहीं। पूरा दिन ऑफिस में गुजर जाता है, वीकेंड आराम करने में और पर्सनल काम में, ऐेसे में लोगों को अच्छा दोस्त बनाने का वक्त कब मिलेगा? बीमार हो, खाना खाया की नहीं, काम हुआ की नहीं, खैर-खबर पूछने के लिए जब कोई आस-पास नहीं होता तो घर की याद आएगी ही और अकेलापन महसूस होगा ही।