योगा (Yoga)

योगा हजारों साल पहले भारत में पैदा होने वाली वह प्रथा है जो दुनियाभर में प्रचलित हो चुकी है। योग न केवल योग है बल्कि यह हड‍्डियों और मांसपेशियों को मजबूत रखने में मदद करता है। योग में ध्यान और सांस-कार्य अभ्यास तनाव को कम करने, रक्तचाप को कम करने, रक्त परिसंचरण में वृद्धि और चयापचय को उत्तेजित करने में विशेष रूप से सहायता करता है। योग, सांस पर ध्यान देने के साथ, ऊतकों के ऑक्सीजन में सुधार और कोर्टिसोल के स्तर में कमी लाता है। जिससे लोग तनाव मुक्‍त जीवन जी सकते हैं।
तेल का कुल्ला (Oil Pulling)

आयुर्वेद में मुख का देखभाल आधुनिक दंत चिकित्सा देखभाल जैसी कुछ नहीं है। 5000 साल पहले की बात करें तो भारतीय लौंग चबाकर, दातून कर और यहां तक कि मुंह के देखभाल के लिए तेल से कुल्‍ला करते थे। आमतौर पर टूथपेस्‍ट वह एक भूरा पाउडर है न कि पैकेट में बंद सफेद रंग का वह पेस्‍ट, जो अब ज्‍यादातर घरों में देखने को मिलता है, खासकर जब नियमित ब्रसिंग की बात की जाती है तब। आयुर्वेद के अनुसार, तेल का कुल्‍ला शुष्क मुंह, हालिटोसिस, खराब पाचन और जीनिंगविटाइट को रोकने में मदद करता है और मसूड़ों को मजबूत बनाता है। मुंह में अम्लता को कम करता है। इसके अलावा यह मुंह के विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में मदद कर सकता है। आज भले ही यह क्रिया भारत में कम लोग करते हों लेकिन इसका प्रयोग दूसरे देशों में ज्‍यादा देखने को मिलता है।
नेटी पौट (Neti pots)

नेटी पौट विशेष उद्देश्य से प्रयोग की जाने वाली एक हांडी होती हैं जो चाय की केतली के समान ही लगती है। इन्हें नाक की सिंचाई (nasal irrigation)के लिए प्रयोग किया जाता है। स्वस्थ्य और शोधन शासन में इसे जाली नेटी भी कहा जाता है, जिसे एशिया में अधिकतर प्रयोग किया जाता है। जबकि कई पश्चिमी लोगों का कहना है कि यह ब्रश से दांत साफ़ करने के समान है। परन्तु इसका प्रयोग भारत में दैनिक प्रकार से स्वच्छता के लिए किया जाता है।
जीभ छीलना (Tongue Scraping)

आयुर्वेदिक चिकित्सकों का मानना है कि जीभ पर जमीं परत और दुर्गंध युक्‍त सांस पाचन विषाक्त पदार्थों की उपस्थिति का संकेत दे सकती है। जीभ पर किसी भी विषाक्त पदार्थ को हटाने से बैक्टीरिया निकल जाते हैं। इससे पाचन में भी सुधार होता है। रातभर में पनपे विषाक्त पदार्थों को जीभ से हटाने के लिए स्‍क्रैपिंग करना जरूरी होता है। जीभ स्क्रैपिंग चयापचय प्रक्रिया में सुधार करने में मदद करती है और आपको अपने खाद्य पदार्थों को बेहतर तरीके से स्वाद लेने की अनुमति देती है। यह काम भारतीय पहले दातून से या अलग-अलग तरीके से करते थे, जिसे अब दुनियाभर में लोग किसी विशेष औजार की मदद से करते हैं।
मसाज (Self-Massage)

खुद से तेल मालिश या मसाज की परंपरा भी हजारों साल पुरानी है। इससे मांसपेशियों का दर्द दूर होता है और रक्‍त परिसंचरण को बढ़ावा मिलता है। त्वचा पर तेल का उपयोग करके अपने चेहरे, गर्दन, कंधे, बाहों, धड़ या पैरों को मालिश करना एक सामान्य आयुर्वेदिक अभ्यास है जो मांसपेशियों को आराम करने, परिसंचरण और शांत नसों को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। "स्व-मालिश अच्छे परिसंचरण को बढ़ावा देता है और ऊतकों से विषाक्त पदार्थों को मुक्त करता है, जो सूजन को कम करता है और उन्मूलन को बढ़ाता है, साथ ही बेहतर पसीने के रिलीज के लिए मृत त्वचा और खुले छिद्रों को हटाता है। इसे भी पढ़ें: मुंहासों से लेकर कैंसर तक का खात्‍मा करता है नीम का ऐसा प्रयोग